सामयिक : सुविधावाद और हिंदू

Last Updated 11 Feb 2022 01:41:36 AM IST

हिंदू धर्म काफी लचीला माना जाता है। इसमें कहा जाता है कि अंत समय भी यदि किसी के मुंह से सिर्फ ‘राम नाम’ भर निकल जाए तो उसे मुक्ति मिल जाती है।


सामयिक : सुविधावाद और हिंदू

इस्लाम में पांच वक्त की नमाज पढ़ना जरूरी समझा जाता है। ईसाइयत में हर रविवार की सुबह लोग नियम से चर्च में इकट्ठा होकर अपने आराध्य को नमन करते हैं। हिंदुत्व में ऐसा कोई बंधन नहीं है कि आपको किसी समय विशेष पर किसी विशेष मंदिर में पहुंचना ही है।
फ्रांस की एक पत्रिका का कार्यालय सिर्फ  इसलिए तहस-नहस कर दिया जाता है, क्योंकि उस पत्रिका में किसी मजहब से जुड़ा एक कार्टून प्रकाशित कर दिया जाता है, जबकि चित्रकार एम.एफ. हुसैन हिंदू देवी-देवताओं की भद्दी तस्वीरें बनाकर भी कलात्मक आजादी के पतले गलियारे से बच निकलते हैं। रमजान के दिनों में हिंदू नेताओं द्वारा गोल टोपियां लगाकर रोजा इफ्तारी के लिए इधर-से-उधर चक्कर काटना सेक्युलरिज्म माना जाता है, और करवाचौथ पर हिंदू महिलाओं का निराजली व्रत ढोंग करार दे दिया जाता है, और कोई कुछ नहीं कहता। क्योंकि हिंदू धर्म लचीला है। यह तो रही सामान्य जीवन में हिंदुत्व को मनमर्जी से मानने की बात। राजनीति में यही हिंदुत्व थोड़ा और सुविधावादी हो जाता है, जिसके दर्शन आजकल होने लगे हैं। ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब महाराष्ट्र का एक राजनीतिक दल शिवसेना अपने प्रखर हिंदुत्व के लिए जाना जाता था। उसके संस्थापक शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे को ‘हिंदू हृदय सम्राट’ कहा जाता था। उनके हिंदुत्ववादी तेवरों को देखते हुए यह सभी को स्वीकार्य भी था। उन्हें जो कहना होता था, सीना ठोककर कहते थे, और अपनी कही गई बात को कभी वापस नहीं लेते थे। इसीलिए उनका सम्मान था।

न सिर्फ महाराष्ट्र, बल्कि महाराष्ट्र के बाहर भी अनेक लोग उनकी तस्वीर और भगवा झंडा लेकर एकलव्य की भांति उनकी शैली वाले हिंदुत्व के साधक बन जाते थे, लेकिन अब उन्हीं की अगली पीढ़ी को खुद को हिंदुत्ववादी सिद्ध करने के लिए तरह-तरह के तर्क गढ़ने पड़ रहे हैं। कभी श्रीराम मंदिर के लिए हुए संघर्ष की, तो कभी किसी और घटना की याद दिलानी पड़ रही है। हास्यास्पद यह है कि शिवसेना को ये बातें इन दिनों सत्ता में रहने के लिए याद दिलानी पड़ रही हैं। उस दल के साथ सत्ता में रहने के लिए जिसके विरु द्ध हिंदू हृदय सम्राट बालासाहब ठाकरे अपने जीवन के अंत तक लड़ते रहे। वह दल आज भी बालासाहब ठाकरे को उनकी जयंती पर याद करना तक जरूरी नहीं समझता। इसके उलट शिवसेना के ही कंधे पर बंदूक रखकर बार-बार ऐसे अवसर पैदा किए जाते हैं, जिनका जवाब शिवसेना को भी देते नहीं बनता। हाल ही में मुंबई में एक क्रीड़ा संकुल का नामकरण मैसूर के पूर्व शासक टीपू सुल्तान के नाम पर किया गया। यह क्रीड़ा संकुल शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के ही मंत्रिमंडल के एक सदस्य एवं कांग्रेस विधायक असलम शेख द्वारा अपनी विधायक निधि से किया गया है।
असलम शेख टीपू सुल्तान को भारत का ऐसा एकमात्र शासक बताते हैं, जो अंग्रेजों से लड़ते हुए मारा गया था। शायद शिवसेना को अब स्मरण नहीं होगा कि 2015 में जब कर्नाटक की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती मनाने की पहल की थी और अभिनेता गिरीश कर्नाड ने टीपू की तुलना छत्रपति शिवाजी महाराज से की थी, तो शिवसेना सांसद अरविंद सावंत ने इस पर तगड़ी आपत्ति उठाते हुए कांग्रेस सरकार को विभाजनकारी राजनीति करने वाला करार दिया था। सावंत ने तब साफ कहा था कि टीपू सुल्तान एक निर्दयी एवं क्रूर शासक था। उसने न सिर्फ  मंदिरों एवं चर्च का विध्वंस किया, बल्कि बड़ी संख्या में हिंदुओं का कत्ल भी करवाया। उसकी निगाह में इस्लाम के अलावा किसी और धर्म का अस्तित्व ही नहीं था। और वे उसे अच्छा शासक बता रहे हैं! सावंत ने तब स्वतंत्रता के इतने वर्षो बाद अचानक टीपू को याद किए जाने पर भी आश्चर्य जताया था। सावंत ने टीपू की तुलना छत्रपति शिवाजी महाराज से करने पर भी आपत्ति जताई थी। उन्होंने कहा था कि छत्रपति शिवाजी ने कभी कोई गलत काम नहीं  किया। उनके राज में कभी धार्मिंक स्थल का अपमान नहीं किया।
किसी महिला के सम्मान से खिलवाड़ नहीं किया। उनकी तुलना टीपू सुल्तान जैसे व्यक्ति से कैसे की जा सकती है? यहां तक कि खुद बालासाहब ठाकरे भी टीपू सुल्तान के महिमामंडन के खिलाफ रहे थे। आश्चर्य है कि आज छत्रपति शिवाजी महाराज को ही मानने वाले राज्य महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में बालासाहब ठाकरे द्वारा स्थापित पार्टी के शासनकाल में टीपू सुल्तान के नाम पर एक क्रीड़ा संकुल का उदघाटन हो रहा है, और इस क्रीड़ा संकुल का विरोध होने पर शिवसेना के ही एक सांसद उसके बचाव में खड़े होकर निस्संकोच यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि हमें भाजपा से सीखने की जरूरत नहीं है। भाजपा को लगता है कि उन्हें ही इतिहास का ज्ञान है। वे नया इतिहास लिखने बैठे हैं। ये इतिहासकार इतिहास बदलने आए हैं। हम टीपू सुल्तान के बारे में सब जानते हैं।
सवाल यह उठता है कि क्या टीपू सुल्तान का यह इतिहास उस इतिहास से अलग था, जिसकी चर्चा 2015 में शिवसेना के ही दूसरे सांसद अरविंद सावंत कर रहे थे? रहा होगा। क्योंकि शिवसेना तो शायद अपने संस्थापक के मूल विचारों और शब्दों को भी भूल गई लगती है। जो समय-समय पर कांग्रेस और उसकी अध्यक्ष सोनिया गांधी की आलोचना करते आए थे। शिवसेना की कांग्रेस-राकांपा के साथ वाली सत्ताजनित मजबूरी तो इसके सत्ता में आने के तुरंत बाद ही दिखाई दे गई थी, जब पालघर में दो साधुओं को पीट-पीटकर मार दिया गया था। सर्वविदित है कि इस हत्याकांड में उसके ही एक सहयोगी दल के कुछ नेताओं के नाम सामने आए थे, लेकिन तब मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का वह हिंदुत्व सुप्त ही नजर आया था, जिससे वह असली हिंदुत्व बताते नहीं थकते।

आचार्य पवन त्रिपाठी


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment