राजनीति : असंभव वादों का पिटारा

Last Updated 11 Feb 2022 01:36:26 AM IST

उत्तर-प्रदेश में चुनाव प्रचार बंद होने के ठीक पहले यहां के प्रमुख प्रतिद्वंद्वी दल भाजपा ने संकल्प-पत्र और सपा ने वचन-पत्र के जरिए मतदाताओं को लुभाने के लिए असंभव वादों का पिटारा खोल दिया है।


राजनीति : असंभव वादों का पिटारा

भाजपा ने होली-दीवाली पर दो गैस सिलेंडर, 60 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं को सरकारी बस में मुफ्त यात्रा, प्रावीण्य सूची में आने वाली छात्राओं को स्कूटी और किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली एवं गन्ना भुगतान में 14 दिन से ज्यादा देरी होने पर चीनी मिलों से ब्याज दिलाने का वचन दिया है।
यही नहीं, यह पहली बार देखने में आया है कि भाजपा ने कानूनी वादे की घोषणा कर ‘लव-जिहाद’ कानून के तहत 10 साल की कैद और 1 लाख रु पये जुर्माने का भी वचन दिया है। वहीं अखिलेश यादव ने 88 पृष्ठीय, ‘समाजवादी वचन-पत्र’ में पांच साल में एक करोड़ नौकरी, दो गैस सिलेंडर, 300 यूनिट बिजली, बारहवीं पास को लैपटॉप, लड़कियों को मुफ्त शिक्षा व नौकरी में 33 प्रतिषत आरक्षण और किसान आंदोलन में मृतकों के परिजनों को 25-25 लाख रु पए देने का वादा किया है। किसानों को हर साल दो बोरी डीएपी खाद एवं यूरिया की पांच बोरी मुफ्त देने के साथ, सभी प्रकार की फसलों पर एमएसपी निष्चित करने और गन्ना किसानों का भुगतान 15 दिन में भुगतान करने की भीष्म प्रतिज्ञा की है। यही नहीं, सपा आम आदमी के दो पहिया वाहनों को हर माह एक लीटर, ऑटो चालकों को तीन लीटर पेट्रोल या 6 किलो सीएनजी भी देगी। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी भी इसी तरह के बढ़-चढ़कर वादे अपने-अपने घोषणा-पत्रों में कर चुके हैं। बहरहाल पांचों राज्यों में सभी राजनीतिक दलों ने घोषणाओं का इतना बड़ा पहाड़ खड़ा कर दिया है कि जीवन गुजर जाए, तब भी वादे पूरे होने वाले नहीं हैं। अतएव मुंगेरीलाल के हसीन सपने दिखाने वाले ये असंभव वादे आखिरकार निराशा ही पैदा करेंगे।

रियासत की इतनी रेबड़यिां बांटी हैं कि मामूली समझ रखने वाला नागरिक भी इन वादों पर भरोसा करने वाला नहीं है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि युवाओं को रोजगार देने के पुख्ता उपाय और सरंचनागत विकास का ढांचा खड़ा करने के वादों की बजाय, ऐसे कार्यों के लिए सरकारी खजाने का मुंह खोलने की बात कही गई है, जिसके कारण देश व राज्यों पर आर्थिक बोझ बढ़ाने वाले हैं। क्योंकि वाहनों को मुफ्त ईधन देंगे तो आयात की मात्रा बढ़ानी पड़ेगी, जो विदेशी मुद्रा के लिए संकट बनेगी। इन अफलातूनी घोषणाओं के चलते मुफ्त योजनाओं के बजट का आकार नियमित बजट के आकार से बड़ा होता जा रहा है। बावजूद इसमें कोई दो राय नहीं कि यह भ्रष्ट आचरण नहीं है, लेकिन यह चुनावों की निष्पक्षता को जरूर प्रभावित करता है। जरूरतमंद गरीबों को निशुल्क राशन बिजली, पानी और दवा देने में किसी को कोई ऐतराज नहीं होता, लेकिन वोट पाने के लिए पल्रोभन देना मतदाता को लालची बनाने का काम तो करता ही है, व्यक्ति को आलसी एवं परावलंबी बनाने का काम भी करता है।  हालांकि अब मतदाता इतना जागरूक हो गया है कि वह वादों के खोखले वचन-पत्रों के आधार पर मतदान नहीं करता? यदि भाजपा के 2017 विधानसभा चुनाव के वचनों की बात करें तो वे आज तक पूरे नहीं हुए हैं। 14 दिन में किसानों को गन्ना राशि के भुगतान का वादा किया था, जो पूरा नहीं हुआ। छह इलाकों में फूड पार्क बनाने का वादा भी अधूरा है। सपा ने जो असंभव वादे किए हैं, उनकी बात तो छोड़िए जब वह उत्तर-प्रदेश की सत्ता में थी, तब मुफ्त डीजल-पेट्रोल तो क्या बालिकाओं को प्रोत्साहन करने की दृष्टि से भी कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया। शिक्षा, स्वास्थ्य और कानून व्यवस्था में भी सपा पिछड़ी रही। इसी तरह कांग्रेस का घोषणा-पत्र लोक-लुभावन वादों से भरा है। छात्राओं को स्कूटी, महिलाओं को गैस सिलेंडर, पुलिस में महिलाओं की भर्ती का प्रतिशत बढ़ाने और तीन नई महिला बटालियन खड़ी करने के अलावा उत्तर-प्रदेश की लोकसेवा आयोग की परीक्षा समेत अन्य सभी परीक्षाओं में महिलाओं की भागीदारी 25 प्रतिशत करने का वादा किया है, लेकिन हकीकत में कांग्रेस और बसपा चुनावी परिदृश्य से लगभग बाहर हैं। सभी राजनीतिक दलों ने हर साल करोड़ों नये रोजगार देने के वादे तो किए हैं, लेकिन रोजगार के अवसर कैसे पैदा किए जाएंगे, इसका कोई हवाला दृष्टि-पत्रों में नहीं है। दरअसल, हमारे यहां केंद्र की सरकार हो अथवा राज्य सरकार ईमानदारी से रोजगार के अवसर पैदा करने के उपाय किए ही नहीं किए गए हैं।
इस बहाने प्राकृतिक संपदा के दोहन का सिलसिला तेज करने की जरूर कोशिशें की जाती रही हैं, जबकि हकीकत हैं कि अंतत: आधुनिक और औद्योगिक विकास का पूरा अजेंडा कृषि और खनिज पर टिका है, परंतु विडंबना देखने में आ रही है कि खेती घाटे का सौदा हो गया है और किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। हकीकत तो यह है कि मुफ्त उपहार बांटे जाने के वादे राज्यों की आर्थिक बदहाली का सबब बन रहे हैं। मतदाता को ललचाने के ये अतिवादी वादे, घूसखेरी के दायरे में आने के साथ, मतदाता को भरमाने का काम भी  करते हैं। लिहाजा ये आचार संहिता का खुला उल्लघंन हैं। मुफ्तखोरी की आदत डालकर एक बार चुनाव तो जीता जा सकता है, लेकिन इससे राज्य और देश का स्थाई रूप से भला होने वाला नहीं है।

प्रमोद भार्गव


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