वैश्विकी : काबू में आएं दोनों वायरस

Last Updated 02 Jan 2022 02:11:11 AM IST

वर्ष 2022 की शुरु आत दुनिया में कोरोना वायरस के नये रूप ओमीक्रोन के खतरे के बीच हो रही है।


वैश्विकी : काबू में आएं दोनों वायरस

इसे चिकित्सा विशेषज्ञ संक्रमण की सुनामी की संज्ञा दे रहे हैं। इसके बावजूद पिछले वर्ष की तुलना में दुनिया में अधिक आत्मविश्वास और संकल्प नजर आ रहा है। इसका कारण है कि आज हम इस वायरस के बारे में पहले से अधिक जानते हैं और इसका मुकाबला करने के लिए हमारे पास पर्याप्त मात्रा में चिकित्सा संसाधन भी उपलब्ध हैं। भारत में ओमीक्रोन संक्रमण बड़े पैमाने पर फैलता है, तो भी देश में वैसी अफरा-तफरी फैलने की संभावना नहीं है जैसे कि महामारी की दूसरी लहर में देखने को मिली थी। भारत में आबादी का बड़ा हिस्सा संक्रमण के खिलाफ नैसर्गिक प्रतिरोध शक्ति (इम्युनिटी) से लैस है तथा आधी से अधिक आबादी का पूरी तरह टीकाकरण हो गया है।
पिछले वर्ष का एक अन्य प्रमुख घटनाक्रम अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा था। इस अप्रत्याशित घटनाक्रम के कारण भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में आतंकवाद के नये खतरे की घंटी बज गई थी लेकिन करीब 5 महीनों के तालिबानी कब्जे के बाद अफगानिस्तान से किसी नये खतरे का संकेत नहीं मिल रहा है। इसका कारण यह है कि रूस के नेतृत्व में पड़ोसी मध्य एशियाई देशों ने एक प्रभावी रणनीति अपनाई है। तालिबान शासकों को यह भी पता है कि उनके किसी दुस्साहस का माकूल जवाब दिया जाएगा। भारत की विदेश नीति दुनिया को यह समझाने में सफल रही है कि तालिबान को तब तक राजनयिक मान्यता न दी जाए जब तक कि वह अंतरराष्ट्रीय नियमों और कानूनों के अनुसार सभ्य समाज जैसा आचरण न करे।  हाल की घटनाओं से पता चलता है कि तालिबान हुकूमत पाकिस्तान के लिए ही सिरदर्द साबित हो रही है। पाकिस्तान सरकार और खुफिया एजेंसी आईएसआई की तालिबान को भारत के खिलाफ मोड़ने की रणनीति अभी तक असफल सिद्ध हुई है। यही नहीं डूरंड रेखा पर पाकिस्तानी सेना और तालिबानी लड़ाकुओं के बीच तनातनी की रिपोर्टे आ रही हैं। भारत ने अफगान अवाम को मानवीय सहायता उपलब्ध कराने में भी उदारता का परिचय दिया है। शनिवार को ही उसने अफगानिस्तान को वैक्सीन की पांच लाख खुराक उपलब्ध कराई हैं। यह सामग्री काबुल स्थित इंदिरा गांधी चिकित्सालय को सौंपी गई है। जहां तक तालिबान की मजहबी विचारधारा का सवाल है, इसमें कोई मूलभूत अंतर नजर नहीं आता। बालिकाओं के लिए माध्यमिक शिक्षा के दरवाजे अभी तक बंद हैं। अफगानिस्तान के अनेक इलाकों में प्रदर्शन हो रहे हैं कि बालिकाओं की माध्यमिक शिक्षा बहाल की जाए। वास्तव में पिछले दो दशकों के दौरान अफगान अवाम ने आधुनिक जीवन शैली की जो उपलब्धियां हासिल की हैं, वह उन्हें गंवाना नहीं चाहता। यदि अंतरराष्ट्रीय दबाव कायम रहता है, तो तालिबान शासकों को अपनी मध्ययुगीन सोच से बाहर  निकलना होगा।

इस्लामी देशों में भी उदारवाद की एक नई लहर शुरू होने के संकेत मिल रहे हैं। सऊदी अरब के वास्तविक शासक मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) इस लहर की अगुवाई कर रहे हैं। एमबीएस ने इस्लाम की जन्मभूमि में जिन सुधारों की शुरुआत की है, उनके बारे में कुछ वर्ष पूर्व तक कोई सोच भी नहीं सकता था। कभी कट्टरपंथी वहाबी विचारधारा को दुनिया में फैलाने वाला देश आज इस्लामिक जगत  में सांस्कृतिक क्रांति का पैरोकार बनकर उभरा है। सार्वजनिक जीवन में महिलाओं को अधिकार दिए जा रहे हैं, मनोरंजन के क्षेत्र को कट्टरपंथी शरियत नियमों से मुक्त किया जा रहा है। अभी पिछले दिनों राजधानी रियाद के बाहरी इलाके में ‘साउंडस्ट्रॉर्म’ संगीत समारोह का आयोजन हुआ जिसमें सात लाख से अधिक दर्शकों ने हिस्सा लिया था। इसके साथ ही सरकार ने मजहबी प्रचार और धर्म परिवर्तन में लगी तब्लीगी जमात और दावा जैसी संस्थाओं की नकेल कसना शुरू कर दिया है। मक्का-मदीना की सरजमीं से शुरू हुई इस उदारवादी बयार से पाकिस्तान और भारत के कट्टरपंथी तत्व सकते में आ गए हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में मजहबी कट्टरपंथी सऊदी अरब से  प्रेरणा लेता था तथा उसे वहीं से आर्थिक संसाधन भी हासिल होते थे। अब एकाएक उनके शक्ति स्रोत सूखने के संकेत हैं। यदि एमबीएस के सुधार जारी रहे तो भारतीय उपमहाद्वीप में भी कट्टरपंथी मजहबी विचारधारा कमजोर होने की संभावना है। वर्ष 2022 कोरोना वायरस और मजहबी कट्टरता के वायरस पर काबू पाने का वर्ष साबित हो, यही वि मानवता की कामना है।

डॉ. दिलीप चौबे


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