बतंगड़ बेतुक : उनकी शहादत नहीं हत्या थी
झल्लन ने हमारी ओर तांका जैसे आंखों के जरिए हमारे दिमाग में झांका, बोला, ‘ददाजू, कभी-कभी हमें आप पर शक होने लगता है, आप जैसा इंसान भी पत्थर में धान बोने लगता है।
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किसान आंदोलन के चलते सात सौ किसानों की शहादत हुई और आप कह रहे हो उनकी हत्या हुई। ऐसी बेतुकी बात आपके मुंह से अच्छी नहीं लगती, आपके मन में अपने इस कुतर्क के प्रति जुगुप्सा नहीं जगती?’
हमने कहा, ‘राजनीतिबाजों, दलीय प्रवक्ताओं, किसान नेताओं और उनके अपने-अपने आकाओं में से तू ये बता कि आखिर कौन ऐसा है जो तर्क कर रहा है और तू कुतर्क का आरोप हमारे सर धर रहा है। हम हवा में नहीं बह रहे हैं, हमें जो दिखा है और जो हमारी समझ में आया है वही कह रहे हैं।’ झल्लन बोला, ‘वही तो हम कह रहे हैं कि आप सही नहीं कह रहे हैं बल्कि किसान विरोधी भावना में बह रहे हैं।’
हमने कहा, ‘चल बता जो किसान मरे उनकी मौत कैसे हुई, क्या सरकार ने उन पर डंडे बरसाए, क्या उन पर जेल में जुल्म ढाए, क्या उन पर गोलियां चलवाई और क्या उनके खाने-पीने, ओढ़ने-बिछाने की सुविधाएं तुड़वाई? जो किसान मरे वे नयी-पुरानी बीमारी से मरे, दिल के दौरों से मरे, ठंड की लहर से मरे और सड़क दुर्घटना के कहर से मरे। अब बता इन मौतों के लिए कौन जिम्मेदार हुआ, वे जो बूढ़े-बीमार लोगों को आंदोलन में आने से रोक नहीं पाये या वे जो इन्हें घरों से जबरन निकाल कर आंदोलन में ले आये? अगर बूढ़े-बीमार बेइलाज मरे तो किसकी लापरवाही, क्रूरता से मरे और किनकी उपेक्षा और अनदेखी से मरे?’ झल्लन बोला, ‘तो आप कहना चाहते हैं कि किसान नेता ऐसे अशक्त लोगों को आंदोलन में तो ले आये पर उनकी बीमारी, सुरक्षा और स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाये।’
हमने कहा, ‘हां, हम यही बात कह रहे हैं, जो अस्वस्थ थे, शारीरिक रूप से अक्षम और कमजोर थे, जो मौसम की मार झेलने में असमर्थ थे उन्हें आंदोलन में आने से मना किया जा सकता था, उनको घर पर ही रहने का निर्देश देकर उनका जीवन बचाया जा सकता था और आंदोलन उनके बगैर भी चलाया जा सकता था। उन्हें तो उकसाकर, भड़काकर, बरगलाकर आंदोलन में लाया गया और जानबूझकर बलि का बकरा बनाया गया। अब बता, इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराना चाहिए, हमारी समझ से तो इनकी हत्या हुई है और इनकी हत्या का मुकदमा किसान नेताओं पर चलाया जाना चाहिए।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम समझ नहीं पा रहे हैं कि इसे सही तर्क मानकर आपकी बात को सही ठहराएं या इसे कुतकरे की दुनिया का नया महाकुतर्क बताएं। पर ददाजू, आप पहले इंसान हो जो उल्टी गंगा बहा रहे हो और किसान नेता जिसे मुआवजेदार शहादत बता रहे हैं, आप उसे हत्या बता रहे हो। बहुत से किसान आंदोलन में आते-जाते सड़क दुर्घटनाओं में मारे गये, उनके बारे में क्या राय जताओगे, क्या उन्हें भी हत्या बताओगे?’ हमने कहा, ‘सच कहें तो हमें लगता है कि उन्हें भी हत्या ठहरा दें और उनका आरोप भी किसान नेताओं पर लगा दें, लेकिन चल हम उन्हें हत्या नहीं बताएंगे पर इन मौतों के लिए हम आंदोलन विरोधियों और सरकार को भी जिम्मेदार नहीं ठहराएंगे। इन दुर्घटनाओं की इबारत सरकार ने नहीं लिखवाई बल्कि आंदोलनकारियों की अफरातफरी, यातायात नियमों की खुली अवज्ञा और उनकी घनघोर बेपरवाही ने करवायीं। किसान नेताओं ने आंदोलन को अनुशासनबद्ध और शांत नहीं रहने दिया, उल्टे उसे झुंड़ों और अनियंत्रित भीड़ में बदल दिया। इसी का परिणाम था कि बहुतों ने अपनी निदरेष जानें गंवा दीं, अकाल मौत की वेदी पर चढ़ा दीं।’
झल्लन बोला, ‘पर ददाजू, ऐसी अकाल मौतों पर परिजनों को मुआवजा तो बनता है, मुआवजे की मांग से किसी का क्या बिगड़ता है?’ हमने कहा, ‘मुआवजा मांगिए, जितना मांग रहे हो उससे दस गुना ज्यादा मांगिए, सात सौ लोगों के लिए नहीं सात हजार लोगों के लिए मांगिए, पर आंदोलन में और आंदोलन के कारण हुई अकाल मौतों के लिए अपने आपको भी तो जिम्मेदार मानिए।’ झल्लन बोला, ‘कैसी बात करते हो ददाजू, हमारे आज के लोकतंत्र में क्या कोई अपनी गलती-जिम्मेदारी मानता है, गलती भले खुद ने की हो पर बंदूक हमेशा दूसरे पर तानता है।’
हमने कहा, ‘किसानों की मौत के मामले में भी यही हो रहा है, इसी से तो हमारा मन रो रहा है।’ झल्लन बोला, ‘पर ददाजू, लखीमपुर खीरी में जो किसानों को कुचलकर मार दिया गया उस पर क्या कहेंगे, उस पर कोई टिप्पणी नहीं करेंगे?’ हमने कहा, ‘वह घृणित था, असह्य था, भयावह अमानवीय था और हर दृष्टि से निंदनीय था। कोई सभ्य इंसान इसके पक्ष में नहीं बोल सकता, हत्यारों के बचाव में अपनी जुबान नहीं खोल सकता, पर इससे जुड़ी घटना यह भी थी कि बदले में किसानों ने जिन गैर-आंदोलनकारियों को पीट-पीटकर मार दिया उनके उतने ही डरावने कृत्य पर किसान नेताओं ने मौन साध लिया। कुछ ने तो किसानों के इस दुष्कृत्य को एकदम जायज ठहरा दिया और उसे गुस्से में आये किसानों का त्वरित न्याय बता दिया।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम इस पर बोल सकते हैं पर अभी बहस नहीं करेंगे, जो कहना होगा अगली मुलाकात में कहेंगे।’
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