दिल्ली : शराब, राजस्व और सरकार का खेल
दिल्ली में अब शराब की दुकान लगभग हर वार्ड में है। जहां नहीं है, वहां तेजी से खुलने का सिलसिला जारी है।
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नई आबकारी नीति के तहत अब शराब बेचने का पुराना सिस्टम खत्म कर दिया गया है। 17 नवम्बर, 2021 से दिल्ली में शराब की प्राइवेट दुकानें खोलने को मंजूरी दी गई है। पहली खेप में 849 दुकानें खोलने का निर्णय लिया गया। इनमें ज्यादातर खुल चुकी हैं। शराब के शौकीनों के लिए अब सब कुछ सहज है। शराब वही है मगर दुकानें नई-नई। शराब के शौकीनों को ज्यादा दूर तक भटकना नहीं पड़ रहा है। शराब उनके घर के आसपास ही उपलब्ध है, न कोई भीड़भाड़ और न लाइन में खड़े होने का चक्कर।
इन दुकानों पर करीब 200 ब्रांडों की 10 लाख लीटर से ऊपर शराब का स्टॉक रोजाना मौजूद रहता है। नई आबकारी नीति से अब शराब की दुकान के ऊपर सरकार का औपचारिक हस्तक्षेप हट गया है। शराब के शौकीन सस्ती-महंगी की उलझनों में नहीं पड़ते। उन्हें सही समय पर सहज और मन मुताबिक चीजें मिल जाएं, इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है। शायद इसीलिए प्राइवेट दुकानों पर शराब के कई ब्रांड आंशिक रूप से महंगे हो जाने के बावजूद उनकी बिक्री पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा। सही बात है कि शराब बेचने के काम में पैसा बहुत मिलता है। राज्य की आमदनी बढ़ती है। बिना राजस्व किसी भी राज्य का वांछित विकास संभव नहीं होता। मगर जिस प्रकार दिल खोलकर शराब की दुकानें खोली जा रही हैं, उसका समाज पर कितना सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा? दोनों पहलुओं पर गौर किया जाना चाहिए। इसलिए कि जहां शराबबंदी को लेकर देश की कई जगहों पर आंदोलन चलाए जा रहे हैं, तो कई जगहों पर धरना-प्रदशर्न भी हो रहे हैं। ऐसे में दिल्ली की संस्कृति और स्वभाव पर सवालिया भी निशान लगने लगे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मुताबिक शराब की दुकान स्कूल-कॉलेज, अस्पताल या धार्मिंक स्थानों से 100 मीटर दूर होनी चाहिए परंतु दिल्ली में कई दुकानें हैं, जो 50 मीटर के दायरे से भी कम में चल रही हैं। जंगपुरा का एक मामला तो कोर्ट तक पहुंच गया जिसके बाद दिल्ली सरकार को उसका लाइसेंस रद्द करना पड़ा। बताया गया कि वहां शराब की दुकान के पास ही धार्मिंक स्थल, स्कूल और अस्पताल, तीनों थे। कई जगहों पर शराब की दुकानों का जमकर विरोध किया जा रहा है। मंगोलपुर खुर्द और मंगोलपुर कलां में इसके विरोध में पंचायत हुई। पालम 360 खाप ने रिहायशी इलाके में ठेके खोले जाने पर कड़ा प्रतिरोध जताया। दिल्ली के विभिन्न इलाकों में आरडब्ल्यूए या अन्य सामाजिक संगठनों ने धरना-प्रदशर्न शुरू कर दिए हैं। महिलाओं का मानना है कि उनका तथा छात्र-छात्राओं का चलना दूभर हो गया है। कई दुकानों के आसपास विरोध में भजन-कीर्तन शुरू कर दिया गया। माता की चौकी और जागरण आयोजित होने लगे और सामाजिक संगठनों के लोगों ने कहा कि शराब की दुकान के आगे वह अब सुलभ शौचालय का निर्माण करेंगे। सवाल है कि क्या दिल्ली सरकार ने रिहायशी इलाकों में व्यावसायिक गतिविधियों के लिए कानूनी रूप से खुद को तैयार कर लिया है? सवाल कई हैं, जिनमें शराब की दुकान खोले जाने संबंधी नियम एवं प्रावधानों का उल्लंघन चिंता का विषय है। कांग्रेस दिल्ली सरकार पर दिल्ली को ’उड़ती दिल्ली’ बनाने का आरोप लगाती है तो भाजपा दिल्ली के युवाओं को शराबी बनाने के। आरोप यह भी है कि दिल्ली सरकार ने शराब माफिया को फायदा पहुंचाने के लिए आबकारी नीति बदली। पहले दुकानें शॉपिंग सेंटर या मॉल में खोलने की अनुमति थी, मगर अब ये गली-मोहल्लों में भी खुलने लगीं। सामाजिक मानदंडों को नजरअंदाज करते हुए शराब की दुकानें खुल रही हैं, इससे महिलाओं में असुरक्षा की भावना बढ़ रही है। भाजपा ने नई आबकारी नीति के खिलाफ हस्ताक्षर अभियान शुरू कर दिया है। 31 दिसम्बर तक 15 लाख लोगों से हस्ताक्षर कराने का लक्ष्य है। उसका दावा है कि दिल्ली में 70 प्रतिशत इलाके हैं, जहां मास्टर प्लान या एमसीडी के नियमों का उल्लंघन किया गया है।
बेशक, शराब से प्राप्त राजस्व से सरकार ने विकास के लिए धन संग्रह की योजना बनाई है, मगर यह जिद उचित नहीं कि उसका हर फैसला पत्थर की लकीर हो जाता है। वह जो भी कर रही है, वह बिल्कुल गलत नहीं है। केजरीवाल सरकार कुछ बेहतर तरीके से सोच सके तो अच्छा होगा। इस मसले पर विपक्षी दलों को भी विरोध की राजनीति नहीं करनी चाहिए। मेरे हिसाब से इस मुद्दे पर दिल्ली सरकार का नजरिया संतुलित होना चाहिए। ऐसा नहीं कि आज हम जिन पर उंगली उठा रहे हैं, कल को उनकी तरफ से कई उंगलियां उठने लगें। केजरीवाल सरकार को ऐसी व्यवस्था कायम करनी चाहिए जिससे यह तोहमत न लगे कि उसने हर किसी को शराब पिला दी है।
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