काशी : गंगा तेरा पानी अमृत

Last Updated 27 Dec 2021 12:24:51 AM IST

काशी विश्वनाथ मंदिर कोरिडोर बन जाने से विदेशों में रहने वाले भारतीय और देश में रहने वाले कुछ लोग बहुत उत्साहित हैं।


काशी : गंगा तेरा पानी अमृत

वे मानते हैं कि इस निर्माण से नरेन्द्र मोदी ने मुस्लिम आक्रांताओं से हिसाब चुकता कर दिया। नये कोरिडोर का भव्य द्वार और तंग गलियों को तोड़कर बना विशाल प्रांगण अब पर्यटकों के लिए बहुत आकर्षक और सुविधाजनक हो गया है। वे इस प्रोजेक्ट को मोदी की ऐतिहासिक उपलब्धि मान रहे हैं।
वहीं, काशीवासी गंगा मैया की दशा नहीं सुधारने से बहुत आहत हैं। जिस तरह गंगा मैया में मलबा पाटकर गंगा के घाटों का विस्तार काशी कोरिडोर परियोजना में किया गया है, उससे गंगा के अस्तित्व को ही खतरा उत्पन्न हो गया है। हजारों करोड़ रुपया ‘नमामी गंगे’ के नाम पर खर्च करके भी गंगा आज भी मैली है। मल-मूत्र से युक्त ‘अस्सी नाला’ आज भी गंगा में बदबदा कर गिर रहा है। लोगों का कहना है कि मोदी जी के डुबकी लगा लेने से गंगा निर्मल नहीं हो गई। पिछली भाजपा सरकार में गंगा शुद्धि के लिए मंत्री बनीं उमा भारती ने कहा था, ‘अगर मैं गंगा की धारा को अविरल और इसे प्रदूषण मुक्त नहीं कर पाई तो जल समाधि ले लूंगी।’ आज वे कहां हैं?

पिछले दो दशकों में गंगा की देखरेख की बात तो हुई, लेकिन कर कोई कुछ खास नहीं पाया। यह बात अलग है कि इतना बड़ा अभियान शुरू करने से पहले जिस तरह के सोच-विचार और शोध की जरूरत पड़ती है, उसे तो कभी किया ही नहीं जा सका। विज्ञान और तकनीक के इस्तेमाल की जितनी ज्यादा चर्चा होती रही, उसे ऐसे काम में बड़ी आसानी से इस्तेमाल किया जा सकता था जबकि जो कुछ भी हुआ, वो ऊपरी तौर पर और फौरी तौर पर हुआ। नारेबाजी ज्यादा हुई और काम कम हुआ। इससे पता चलता है कि देश की धमनियां मानी जाने वाले गंगा-यमुना जैसे जीवनदायक संसाधनों की हम किस हद तक उपेक्षा कर रहे हैं। इससे हमारे नजरिये का भी पता चलता है। यहां यह दर्ज कराना महत्त्वपूर्ण होगा कि बिना यमुना का पुनरोद्धार करे गंगा का पुनरोद्धार नहीं होगा क्योंकि अंततोगत्वा प्रयाग पहुंच कर यमुना का जल गंगा में ही तो गिरने वाला है। इसलिए अगर हम अपना लक्ष्य ऐसा बनाएं, जो सुसाध्य हो, तो बड़ी आसानी से निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि यमुना शुद्धीकरण को ही गंगा शुद्धि अभियान का प्रस्थान ¨बदु माना जाए। यहां से होने वाली शुरुआत देश के जल संसाधनों के पुनर्नियोजन में बड़ी भूमिका निभा सकती है।
देश के सामने समस्या यह है कि एक हजार किमी. से ज्यादा लंबी यमुना के शुद्धीकरण के लिए कोई व्यवस्थित योजना हमारे सामने नहीं है। मतलब साफ है कि यमुना के लिए हमें गंभीरता से सोच-विचार के बाद एक विश्वसनीय योजना चाहिए। ऐसी योजना बनाने के लिए मंत्रालयों के अधिकारियों को गंगा और यमुना को प्रदूषित करने वाले कारणों और उनके निदान के अनुभवजन्य समाधानों का ज्ञान होना चाहिए। ज्ञान की छोड़ो कम से कम तथ्यों की जानकारी तो होनी ही चाहिए। समस्या जटिल तो है ही लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम शुतुरमुर्ग की तरह रेत में सिर दे दें। अगर दावा किया जा रहा है कि आज हमारे पास संसाधनों का इतना टोटा नहीं है कि हम अपने न्यूनतम कार्यक्रम के लिए संसाधनों का प्रबंध न कर सके तो गंगा-यमुना के पुनरोद्धार के लिए किसी भी अड़चन का बहाना नहीं बनाया जा सकता।
एक ओर गंगोत्री के पास विकास के नाम पर हिमालय का जिस तरह नृशंस विनाश हुआ है, जिस तरह वृक्षों को काटकर पर्वतों को नंगा किया गया है, जिस तरह डायनामाइट लगा कर पर्वतों को तोड़ा गया है, और बड़े-बड़े निर्माण किए गए हैं, उससे नदियों का जल संग्रहण क्षेत्र लगातार संकुचित होता गया। इसलिए स्रोत से ही नदियों में जल की भारी कमी हो चुकी है। नदियों में जल की मांग करने से पहले हमें हिमालय को फिर से हरा-भरा बनाना होगा। वहीं, दूसरी ओर मैदान में आते ही गंगा कई राज्यों के शहरीकरण की चपेट में आ जाती है, जो इसके जल को बेदर्दी से प्रयोग ही नहीं करते, बल्कि भारी क्रूरता से इसमें पूरे नगर का रासायनिक व सीवर जल प्रवाहित करते हैं। इस सबके बावजूद गंगा इन राज्यों को इनके नैतिक और कानूनी अधिकार से अधिक जल प्रदान कर उन्हें जीवनदान कर रही है पर काशी तक आते-आते उसकी कमर टूट जाती है। गंगा में प्रदूषण का काफी बड़ा हिस्सा केवल कानपुर और काशीवासियों की देन है। जब तक गंगा जल के प्रयोग में कंजूसी नहीं बरती जाएगी और जब तक उसमें गिरने वाली गंदगी को रोका नहीं जाएगा, तब तक उसमें निर्मल जल प्रवाहित नहीं होगा।  
आज हर सरकार की विश्वसनीयता, चाहे वो केंद्र की हो या प्रांतों की, जनता की निगाह में काफी गिर चुकी है। अगर यही हाल रहे तो हालत और भी बिगड़ जाएगी। देश और प्रांत की सरकारों को अपनी पूरी सोच और समझ बदलनी पड़ेगी। देशभर में जिस भी अधिकारी, विशेषज्ञ, प्रोफेशनल या स्वयंसेवी संगठनों ने जिस क्षेत्र में भी अनुकरणीय कार्य किया हो, उसकी सूचना जनता के बीच, सरकारी पहल पर, बार-बार, प्रसारित की जाए। इससे देश के बाकी हिस्सों को भी प्रेरणा और ज्ञान मिलेगा। फिर सात्विक शक्तियां बढ़ेंगी और लुटेरे अपने बिलों में जा छुपेंगे। अगर राजनेताओं को जनता के बढ़ते आक्रोश को समय रहते शांत करना है, तो ऐसी पहल यथाशीघ्र करनी चाहिए।
वैसे सारा दोष प्रशासन का ही नहीं, उत्तर प्रदेश की जनता का भी है। यहां की जनता जाति और धर्म के खेमों में बंट कर इतनी अदूरदर्शिता  वाली हो गई है कि उसे फौरी फायदा तो दिखाई देता है, पर दूरगामी फायदे या नुकसान को नहीं देख पाती। इसलिए सरकार के सामने बड़ी चुनौतियां हैं पर पिछले चुनाव प्रचार में जिस तरह उन्होंने मतदाताओं को उत्साहित किया, अगर इसी तरह अपने प्रशासनिक तंत्र को पारदर्शी और जनता के प्रति जवाबदेह बनाते, विकास योजनाओं को वास्तविकता के धरातल पर परखने के बाद ही लागू होने के लिए अनुमति देते और प्रदेश के युवाओं को दलाली से बचकर शासन को जवाबदेह बनाने के लिए सक्रिय करते, तो जरूर इस धारा को मोड़ा जा सकता पर उसके लिए प्रबल इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है, जिसके बिना न प्रदेश आगे बढ़ता है, और न बन सकेगा गंगा का पानी अमृत।

विनीत नारायण


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