योगी सरकार : गांठ दर गांठ गन्ना हुआ मीठा
सूबे के करीब 65 लाख किसान गन्ने की खेती से जुड़े हैं। किसानों की इतनी बड़ी संख्या के नाते गन्ने से जुड़े मुद्दे खासकर भुगतान बेहद संवेदनशील मामला है।
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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो कई लोगों की राजनीति की बुनियाद ही गन्ना है। फिलहाल, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों के हितों के प्रति प्रतिबद्धता साबित करते हुए अब तक के अपने कार्यकाल में रिकॉर्ड भुगतान कर ऐसे लोगों की राजनीति ही खत्म कर दी। यह भुगतान बसपा और सपा के 10 साल के कार्यकाल से अधिक है। पिछले साल का एक पाई भी बकाया नहीं है। इस साल पेराई सत्र जारी है।
यकीनन सरकार का प्रयास होगा कि सत्र खत्म होने के साथ/साथ 100 फीसद भुगतान भी हो जाए। गन्ने का रकबा, चीनी की रिकवरी, उत्पादन, मिलों के संचलन की अवधि, एथनॉल और सैनिटाइजर के उत्पादन में भी यूपी देश में नंबर वन है। कोरोना काल में सभी मिलों के संचालन का रिकॉर्ड भी यूपी के ही नाम है। योगी सरकार के अब तक के कार्यकाल में करीब एक लाख 45 हजार करोड़ रु पये के गन्ना मूल्य का भुगतान हो चुका है। यह आजादी के बाद से अब तक का रिकॉर्ड है। यही नहीं, यह बसपा और सपा के कार्यकाल की तुलना में अधिक है।
पहले गन्ना पर्ची बड़ी समस्या थी। इस पर गन्ना माफिया का कब्जा था। इसको तकनीक और गन्ना उत्पादक किसानों की खतौनी से जोड़कर माफिया के सट्टे खत्म कर सरकार ने गन्ना माफिया की कमर तोड़ दी गई है। अब किसानों के पास सीधे उनके मोबाइल पर एसएमएस से पर्ची जाती है। बसपा और सपा के कार्यकाल में या तो बेशकीमती चीनी मिलों को कौड़ियों के भाव बेचा गया या बंद किया गया। मौजूदा सरकार ने अत्याधुनिक और एकीकृत नई मिलें लगवाई। कई मिलों का क्षमता विस्तार करवाया। बची मिलों का भी आधुनिकीकरण कर क्षमता विस्तार की योजना पाइपलाइन में है। मालूम हो कि 2007-12 तक के अपने कार्यकाल में बसपा ने 19 मिलों को बंद किया और 21 को बेच दिया। मौके पर उपलब्ध बेशकीमती जमीनों के लिहाज से इनको कौड़ियों के भाव बेचा गया। इनकी सीबीआई जांच चल रही है। इसी तरह सपा ने भी 2012-17 तक के अपने कार्यकाल में 10 चीनी मिलों पर ताला लगवा दिया था।
भाजपा सरकार के कार्यकाल में पिपराइच, मुंडेरवा और रमाला में अत्याधुनिक नई मिलें लगीं। छत्तीस मिलों की क्षमता का विस्तार हुआ। वर्षो से बंद बुलंदशहर की वेव, चंदौसी की वीनस और सहारनपुर की दया शुगर मिल को चालू कराया गया। 2017 में सालाना पेराई क्षमता 68 करोड़ क्विंटल की थी। आज यह बढ़कर 112 करोड़ क्विंटल से अधिक हो गई है। मुख्यमंत्री का साफ निर्देश है कि जब तक खेत में किसान का गन्ना है, तब तक मिलें चलनी चाहिए। पिछले पेराई सत्र में मुजफ्फरनगर की मंसूरपुर चीनी मिल 23 जून तक चली थी।
वैश्विक महामारी कोरोना के दौरान जब देश की आधी से अधिक मिलें बंद हो गई थीं, तब कोरोना प्रोटोकाल का अनुपालन करते हुए प्रदेश की सभी 119 मिलों को चलाया गया। यही नहीं, इन मिलों ने कोरोना की जंग में सबसे प्रभावशाली हथियारों में से शुमार सैनिटाइजर का रिकॉर्ड उत्पादन किया। प्रदेश की जरूरतों के बाद इनकी आपूर्ति 20 अन्य राज्यों और विदेशों में भी की गई। मौजूदा समय में 55 मिलें हेवी मोलेसिस से एथनॉल बना रही हैं। गन्ने के रस से सीधे एथनॉल बनाने वाली पिपराइच चीनी मिल उत्तर भारत की पहली मिल होगी। फिलहाल, एथनॉल के उत्पादन में भी यूपी देश में नंबर वन है। चीनी मिलों के साथ ही सरकार खांडसारी क्षेत्र को भी प्रोत्साहित कर रही है। खांडसारी इकाइयां लगाने की प्रक्रिया को आसान कर सरकार ने किसानों को बाजार का एक नया विकल्प दिया। साथ ही, स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर भी मुहैया कराए। 25 साल बाद किसी सरकार ने इस ओर ध्यान दिया। पहले किसी मिल से 15 किमी. (एयर डिस्टेंस) की दूरी पर खांडसारी की इकाई लग सकती थी।
सरकार ने इस दूरी को आधा कर दिया। 264 से अधिक इकाइयों को लाइसेंस जारी किया जा चुका है। इनकी कुल पेराई क्षमता करीब 60 हजार टीसीडी की है। यह करीब नौ मिलों की क्षमता के बराबर है। इसी मकसद से मुजफ्फरनगर और लखनऊ में गुड़ महोत्सव का भी आयोजन कराया गया। इस सबके आधार पर कह सकते हैं कि योगी सरकार के कार्यकाल में गांठ दर गांठ किसानों के लिए गन्ना मीठा होता गया।
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