कला जगत : फिर लौटे सांस्कृतिक महोत्सव

Last Updated 24 Oct 2021 02:23:06 AM IST

कलाकारों को अपने जिन महोत्सवों की प्रतीक्षा थी, उत्तर प्रदेश में वे अपनी पूरी भव्यता से लौट आए हैं। कोरोना काल में लंबे समय तक बंद रहे इन सांस्कृतिक महोत्सवों के फिर शुरू होने से जहां कलाकारों को मंचों पर प्रस्तुतियों का अवसर मिला है वहीं उनको आर्थिक सुरक्षा भी मिली है।


कला जगत : फिर लौटे सांस्कृतिक महोत्सव

प्रदेश के विभिन्न नगरों में अचानक बड़ी तेजी से हो रहे महोत्सवों के आयोजनों से लगता है कि कलाकारों की मुश्किलें कम होने लगेंगी और पुराना दौर लौटने लगा है।
प्रदेश में हाल के दिनों में जिन आयोजनों में बड़ी संख्या में कलाकारों की भागीदारी हुई है, उनमें मुख्यत: रामायण कॉन्क्लेव, बुद्धिस्ट  कॉन्क्लेव, आजादी का अमृत महोत्सव, नवरात्रि महोत्सव तथा विख्यात गायिका गिरिजा देवी की स्मृति में आयोजित पुष्पांजलि शामिल हैं। प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति विभागों तथा उनकी विभिन्न अकादमियों एवं संस्थानों द्वारा आयोजित किए जा रहे इन महोत्सवों में कलाकारों की मंचीय प्रस्तुतियां शुरू हो गई हैं। रामायण कॉन्क्लेव के आयोजन की जब रूपरेखा तैयार हुई थी तो इसके ऑनलाइन आयोजन पर ही विचार किया गया था, लेकिन कोरोना के कम होते संक्रमण को देखते हुए इसे दर्शकों के सामने मंचों पर महोत्सव के रूप में आयोजित किए जाने का निर्णय ले लिया गया। 29 अगस्त से एक नवम्बर के मध्य इसे 16 नगरों में आयोजित किया गया, जिनमें लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर, बलिया, विंध्याचल, चित्रकूट, श्रृंगवेरपुर, अयोध्या, बिठूर, ललितपुर, गढ़मुक्तेर, बिजनौर, गाजियाबाद, बरेली, सहारनपुर, मथुरा जैसे नगर शामिल हैं। कहीं एक और कहीं दो दिनों के इस महोत्सव में बड़ी संख्या में कलाकारों को कार्यक्रमों के अवसर मिले जिनमें स्थानीय कलाकारों के साथ ही अतिथि कलाकार भी थे।

विख्यात शास्त्रीय-उपशास्त्रीय गायिका गिरिजा देवी की स्मृति में वाराणसी, इलाहाबाद एवं लखनऊ में होने वाले पुष्पांजलि का आयोजन वाराणसी में 23 अक्टूबर से आरंभ हुआ तो इसमें अप्पा जी की शिष्याओं के साथ ही कई अन्य कलाकारों की प्रस्तुतियां भी हो रही हैं। वाराणसी के राजेन्द्र प्रसाद घाट का मंच भी अपने पुराने दिनों को याद करता हुआ सुर-ताल से गूंज उठा। सात  से 15 अक्टूबर तक यहां नवरात्रि संगीत महोत्सव के आयोजन का उद्देश्य ही स्थानीय कलाकारों को कार्यक्रमों का अवसर प्रदान करना था, और ऐसा हुआ भी।  हालांकि स्थानीय कलाकारों के साथ ही बाहर से भी आए कई कलाकारों की यहां प्रस्तुतियां हुई। कुशीनगर के बुद्धिस्ट कॉन्क्लेव और लखनऊ के आजादी के अमृत महोत्सव में भी कलाकारों को खूब अवसर मिले।
प्रदेश और देश के दूसरे नगरों में भी इसी प्रकार आयोजनों की शुरुआत हुई है। आकाशवाणी ने भी संगीत कलाकारों की रिकार्डिंग शुरू कर दी है। हालांकि अचानक ढेर सारे कार्यक्रम संभव हो पाने का बड़ा कारण अब तक इन विभागों के कार्यक्रमों के बजट का उपयोग न हो पाना भी है। आयोजनों के न हो पाने से कार्यक्रमों के लिए निर्धारित इन विभागों के बजट की बड़ी धनराशि खर्च नहीं हो पाई थी। यह भी याद किया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में जल्द ही चुनाव होने हैं, और कुछ ही महीनों में यहां चुनाव आचार संहिता भी लग सकती है, लेकिन कारण जो भी हो लंबे समय से मंचीय प्रस्तुतियों का इंतजार कर रहे कलाकारों के लिए महोत्सवों का यह माहौल सुखद है। इन सबके बीच संस्कृतिकर्मिंयों की कुछ शिकायतें भी हैं। कई कलाकारों का कहना है कि सरकारी विभाग या संस्थान अपने महोत्सव एवं दूसरे कार्यक्रम तो कर रहे हैं, लेकिन निजी संस्थाओं को कार्यक्रमों की अनुमति नहीं दी जा रही है। लखनऊ तथा दूसरे कई नगरों में सरकारी आयोजनों के लिए तो प्रेक्षागृह मिल जाते हैं, लेकिन अगर कोई निजी संस्था की ओर से कार्यक्रमों के लिए प्रेक्षागृह लेने जाता है, तो उसे कोरोना के मद्देनजर प्रशासनिक अनुमति न होने का हवाला दिया जाता है। ज्यादातर प्रेक्षागृहों में कार्यक्रम करने के लिए प्रशासन से अनुमति लेनी आवश्यक होती है। इसमें संस्कृतिकर्मिंयों को पुलिस, प्रशासन, अग्निशमन सहित कई विभागों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, जो स्वत: में जटिल प्रक्रिया है। अभी कार्यक्रमों के लिए इनसे अनुमति नहीं मिल रही है, जिससे प्रेक्षागृह नहीं मिल पा रहे हैं। इससे सबसे अधिक रंगमंच प्रभावित हुआ है। महोत्सवों में संगीत के कार्यक्रम तो हो जाते हैं, लेकिन रंगकर्मिंयों के लिए होने वाले सरकारी आयोजन पहले भी कम होते थे। प्रेक्षागृह न मिलने से लंबे समय से रंगकर्म की धारा अवरूद्ध है। नाटकों के मंचन कम हो रहे हैं। संभवत: जल्द ही शासन का ध्यान इस ओर जाए और प्रेक्षागृह आवंटित होने लगें।
वैसे भी जब बाजार, मॉल, मल्टीप्लेक्स, विद्यालय, ट्रेन-बस और मांगलिक आयोजनों की अनुमति है, तो केवल सभागारों के आवंटन को रोके जाने का औचित्य नहीं दिखता। आयोजनों की वापसी के बीच यह अवसर इस बात के विचार का भी है कि भविष्य में कभी आयोजन फिर बंद होते हैं, तो उसका क्या विकल्प हो सकता है, और कलाकारों को आर्थिक सुरक्षा कैसे मिल सकती है? विकल्प न होने से कोरोना की दोनों ही लहरों में कलाकारों को काफी मुश्किलें उठानी पड़ी हैं!

आलोक पराड़कर


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