सरोकार : कोरोना से नेपाल में मातृ मृत्यु दर बढ़ी, और भारत में भी

Last Updated 18 Jul 2021 12:07:54 AM IST

पड़ोसी देश नेपाल से बुरी खबरें आई हैं। और यह भारत की सच्चाई भी हो सकती है। खैर, नेपाल में अप्रैल से कोविड-19 के मामले लगातार बढ़ रहे हैं।


सरोकार : कोरोना से नेपाल में मातृ मृत्यु दर बढ़ी, और भारत में भी

13 जुलाई को 657,139 मामले और 9,400 मौतें दर्ज हुई थीं। महामारी ने सिर्फ  संक्रमित मरीजों को ही परेशान नहीं किया है, लोगों को दूसरी तरह भी प्रभावित किया है। नेपाल में इस समय प्रसव के दौरान बड़ी संख्या में महिलाओं की मौत हो रही है क्यों वे अस्पताल नहीं जा रहीं। संक्रमण का डर मन में समाया हुआ है लेकिन घर पर डिलिवरी भी सुरक्षित नहीं है।

ऑक्सिलियरी नर्स जटिल मामलों को संभाल नहीं पातीं और कई मामलों में बच्चे और मां, दोनों की मौत हो जाती है। नेपाल में स्वास्थ्य सेवाएं महामारी से पहले भी लचर थीं खासकर महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य के लिहाज से। प्रशिक्षित दाइयां हैं ही नहीं। कोविड-19 के बाद प्रसव संबंधी जटिलताओं से महिलाओं की मौतों का आंकड़ा बढ़ने लगा। नेपाल के स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार मार्च, 2020 और जून, 2021 के बीच 258 महिलाएं प्रसव या गर्भावस्था से जुड़ी समस्याओं के कारण मौत का शिकार हुई। इनमें से 31 संक्रमित थीं। मार्च, 2020 से पहले के एक वर्ष में मातृत्व संबंधी समस्याओं के कारण 51 महिलाओं की मौत हुई थी। 2000 से पहले नेपाल का मातृ मृत्यु अनुपात प्रति एक लाख जीवित जन्म पर 500 से अधिक का था। पिछले दो दशकों में यह संख्या घटकर 186 हो गई है।

संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक इस आंकड़े को 70 करने का लक्ष्य रखा है। लेकिन नेपाल के स्वास्थ्यकर्मी मौत के इन आंकड़ों से चिंतित हैं। उनका मानना है कि संक्रमण की दूसरी लहर में मातृ मृत्यु दर उस स्तर तक पहुंच जाएगी, जिसे देश में इस शताब्दी में कभी नहीं देखा गया। महामारी के दौरान नवजात शिशुओं की मौत का आंकड़ा भी बढ़ा है। पहले लॉकडाउन के दौरान प्रत्येक एक हजार जीवित जन्म पर 40 मौतों का आंकड़ा दर्ज किया गया था। इसके विपरीत महामारी से पहले नेपाल में शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार जीवित जन्म पर 13 की थी। लेकिन महामारी ने हालात बदले हैं, और लोग घबराए से स्वास्थ्य केंद्रों में जाने से कतरा रहे हैं। आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल से 90 फीसद गर्भवती महिलाओं ने स्वास्थ्यकर्मिंयों से संपर्क किया ही नहीं।

यही हालत भारत में भी है। यूनीसेफ, विश्व स्वास्थ्य संगठन और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या निधि ने एक संयुक्त रिपोर्ट जारी की है-‘दक्षिण एशिया में कोविड-19 वैश्विक महामारी और उससे निपटने के तरीकों के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष असर’। इसमें कहा गया है कि महामारी के कारण भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर जो असर पड़ा है, उसके चलते पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों और साथ ही जच्चा की मौत के सबसे अधिक मामले सामने आएंगे। आईसीएमआर ने कहा कि कोविड-19 की पहली और दूसरी लहर में मातृ मृत्यु दर दो फीसद रही। दोनों लहरों के दौरान मातृ मृत्यु दर के आंकड़ों का तुलनात्मक विश्लेषण करने से साफ होता है कि अधिकांश की मौत निमोनिया और दम घुटने से हुई। दरअसल, जच्चा-बच्चा मृत्यु दर के बढ़ने की प्रवृत्ति निम्न और मध्यम आय वर्ग वाले देशों में ज्यादा देखी गई। जिन देशों में संसाधनों की कमी है, वहां सामान्य परिस्थितियों में भी जच्चा-बच्चा की देखभाल के लिए पर्याप्त सुविधाएं मौजूद नहीं हैं। ऐसे में महामारी के दौरान तो सारे संसाधनों को एक ही दिशा की तरफ मोड़ दिया गया। ऐसे में नेपाल और भारत की हालत कमोबेश एक सरीखी है।

माशा


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