रंग राग : कलाकारों की पीर को समझते हुए

Last Updated 11 Jul 2021 01:23:09 AM IST

कलाकारों की पीड़ा को समझते हुए कुछ संस्थाएं अब आगे आ रही हैं और वे उनके लिए धन एकत्र करने में लगी हैं।


रंग राग : कलाकारों की पीर को समझते हुए

एक वर्ष से अधिक समय हो गए, सांस्कृतिक गतिविधियां ठप हैं और उन कलाकारों के सामने गंभीर आर्थिक संकट है, जिनके पास कोई नौकरी नहीं है और जिनके आय का साधन मंचीय प्रस्तुतियां ही रही हैं। निश्चय ही कोरोना के खतरे को देखते हुए सरकार अभी ऐसे आयोजनों की अनुमति नहीं देगी, लेकिन सरकार ने उन कलाकारों के लिए मंचीय प्रस्तुतियों के विकल्प के तौर पर कुछ सोचा भी नहीं है। अगर तीसरी लहर आती है तो यह संकट और भी गहरा ही होता जाएगा, ऐसे में किसी ठोस योजना की आवश्यकता है, लेकिन फिलहाल ऐसी योजना पर कहीं विचार नहीं हो रहा है।
एक प्रसिद्ध कलाकार ने पिछले दिनों मुझसे बातचीत में कहा था कि आपकी दैनिक जरूरतें तो खत्म नहीं होतीं, पैसे की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है। इस बीच परिवार के सदस्यों के कोरोना से संक्रमित होने, लंबे समय तक अस्पताल में रहने और फिर मृत्यु हो जाने से संचित धनराशि भी खर्च हो गई। करीब 15 महीनों से कार्यक्रम बंद हैं और कोई आय नहीं हो सकी है। किसी से कुछ मांगने में आत्मसम्मान को ठेस लगती है, लेकिन क्या सरकार और संस्थाओं को खुद इस बारे में नहीं सोचना चाहिए। उनकी तरह देश में बड़ी संख्या में कलाकार हैं, जो संगीत से, कला से, रंगमंच से, लोककलाओं से जुड़े हैं। उनके परिवार की आर्थिक जरूरतें मंचीय प्रस्तुतियों से ही पूरी होती रही हैं, मगर किसी ने अब तक ढंग से यह सोचने की जहमत नहीं उठाई है कि इस संकट के दौर में उनका खर्च कैसे चल रहा है और आगे भी जब तक ये समारोह बंद रहते हैं, इसका विकल्प क्या हो सकता है? अभी यह तय नहीं है कि इन समारोहों की शुरुआत कब हो सकेगी। ऐसे समारोहों में दर्शकों की बड़ी संख्या होती है और निश्चय ही कोरोना के खतरों के बीच लोगों को इस प्रकार जुटाने की अनुमति जल्द नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन जिन कलाकारों का जीवन ऐसे समारोहों पर आश्रित है, उनके लिए काम करने वाले विभागों, संस्थानों को कोई रास्ता भी निकालना चाहिए।

आकाशवाणी और दूरदर्शन जैसी संस्थाओं के पास कार्यक्रमों के लिए बड़ा बजट होता है। इसी प्रकार संस्कृति और पर्यटन विभागों तथा उनसे जुड़े संस्थानों, अकादमियों के पास भी आयोजनों के लिए प्रत्येक वित्तीय वर्ष में बड़ी धनराशि का प्राविधान सरकार द्वारा किया जाता है। आकाशवाणी के एक बड़े अधिकारी ने पिछले दिनों अनौपचारिक बातचीत में बताया था कि चूंकि कोरोना काल में स्टूडियो रिकार्डिंग पर रोक थी और किसी समारोह का तो सवाल ही नहीं था, तो इस बजट की बड़ी धनराशि का उप्रयोग ही नहीं हो सका। यही हाल ज्यादातर सरकारी विभागों, अकादमियों, संस्थानों का है। ये संस्थाएं गतिविधियों के नाम पर यदा-कदा वेबिनार कर लेती हैं, लेकिन प्रतिवर्ष आयोजनों पर खर्च किए जाने के लिए मिलने वाले बजट की धनराशि का कोरोना काल में उपयोग नहीं हो पा रहा है और सरकार को वापस हो जा रही है। यह कैसी विडम्बना है कि एक ओर कलाकार मंचीय प्रस्तुतियां न होने के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और दूसरी ओर सरकारी संस्थाओं के पास कलाकारों के लिए आवंटित बजट बिना प्रयोग के वापस हुआ जा रहा है! वास्तव में जरूरत इस बात की है कि कलाकारों की पीर को समझते हुए सरकारी संस्थाएं इस पर नये ढंग से विचार करें और कोरोना की तीसरी लहर की आशंका को देखते हुए ठोस योजना तैयार की जाए। आकाशवाणी और दूरदर्शन जैसी संस्थाएं चाहें तो कलाकारों से घर में रिकार्ड किए गए आडियो और वीडियो मंगाकर उन्हें मानदेय देने की व्यवस्था कर सकती हैं। निश्चय ही इनकी गुणवत्ता स्टूडियो रिकार्डिंग जैसी तो नहीं होगी, लेकिन पुराने कार्यक्रमों को बार-बार बजाने की जगह इन्हें बजाना ज्यादा अच्छा होगा और इससे कलाकारों का भला भी होगा। वे फोन पर कलाकारों से बातचीत, वार्ताएं, संस्मरण भी रिकार्ड कर सकती हैं और इसका कलाकारों को भुगतान कर सकती हैं।
जब तक स्टूडियो में रिकार्डिंग बंद हैं, तब तक यह एक विकल्प हो सकता है। यही काम संस्कृति, पर्यटन के विभागों और उनके संस्थानों-अकादमियों को भी करना चाहिए। वे कलाकारों से वीडियो मंगाकर अपनी वेबसाइटों या दूसरे सोशल मंचों पर प्रदर्शन कर सकती हैं, अपने अभिलेखागार में संग्रह कर सकती हैं और कलाकारों को मानदेय दे सकती हैं। वे इन मंचों पर लाइव कार्यक्रमों के जरिए भी कलाकारों को जोड़कर कलाकारों को कार्यक्रमों की तरह ही पारिश्रमिक दे सकती हैं। देश के विभिन्न विविद्यालयों और शिक्षा संस्थानों के कला, संगीत या रंगमंच से जुड़े विभागों को भी ऐसा करना चाहिए। पहली लहर के लॉकडाउन में सोशल मीडिया पर काफी सक्रियता देखी गई थी, लेकिन कलाकारों की शिकायत थी कि ऐसे ज्यादातर आयोजनों में मानदेय की कोई व्यवस्था नहीं थी। कलाकारों के लिए ही ये सारे विभाग और संस्थान हैं, लेकिन कलाकारों की मुसीबत की घड़ी में उन्हें अकेला छोड़ दिया गया है!

आलोक पराड़कर


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment