पंजाब : इस साजिश को खत्म करना जरूरी

Last Updated 03 Nov 2020 04:15:11 AM IST

पिछले कुछ वर्षो में पंजाब में आतंकवादियों द्वारा पुलिस एवं सेना तथा एक धर्म विशेष के नेताओं पर किये जा रहे हमलों के बाद अब शौर्य चक्र विजेता बलविन्द्र सिंह की हत्या से यह तो स्पष्ट हो गई है कि पंजाब में एक बार फिर से माहौल बिगाड़ने की कोशिश की जा रही है।


पंजाब : इस साजिश को खत्म करना जरूरी

रेफरेंडम 2020 की घोषणा, दीवारों पर खालिस्तानी नारों का लिखा जाना एवं खालिस्तानी झंडो का फहराया जाना, सोल मीडिया पर खालिस्तानी संबंधी पुरानी क्लिपिंग डालकर लोगों की भावनाओं से खिलवाड़ करना आदि घटनाएं इतनी तेजी से घट रही है कि पंजाब में लॉ एंड आर्डर भले ही ऊपर से शांत दिख रहा हो परन्तु पानी के नीचे गहरी तली पर हलचल दिखाई देने लगी है।
लोगों को अब भी याद होगा कि 1980 के दशक में खालिस्तानी आतंकवाद ने लोगों को आंसुओं, पीड़ा और दुखों के सिवा कुछ भी नहीं दिया था। पाकिस्तान समर्थित खालिस्तानी आतंकवाद ने पंजाब में सिखों एवं हिंदुओं के बीच नफरत की दीवार खड़ी करने की कोशिश की थी, जिसमें लगभग 30 हजार  लोगों की जान गई थी। वर्षो बाद आज जब पंजाब तरक्की एवं नये विकास के मार्ग पर है तो फिर से कुछ लोग विदेशी धरती पर खालिस्तानी आंदोलन को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसका सीधा असर पंजाब में देखने को मिलता है।
यद्यपि पाकिस्तान को भी एहसास है कि कुछ मुठ्ठी भर सिरफिरे लोगों की मदद से भारत की एकता, अखंडता एवं अभिन्नता को कभी भी भंग नहीं किया आ सकता है, परन्तु इसके बावजूद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई खालिस्तान की  इस आग को हवा देने में लगी है। यह एजेंसी कनाडा, अमेरिका, इग्लैंड, जर्मनी आदि देशों मे चलने वाले खालिस्तानी आंदोलन को पैसा एवं हथियार दोनों उपलब्ध करवा रही है। विदेशी धरती पर रहने वाले इन सिख युवाओं को यह समझाना होगा कि पाकिस्तान का मकसद सिर्फ लोगों की आस्थाओं से खिलवाड़ करना है ताकि भारत में अशांति और असंतोष को फैलाया जा सके। पाकिस्तान की यह मंशा उसी समय जाहिर हो गई थी जब करतारपुर कारिडोर खोलने के समय आने वाले सिख श्रद्वालुओं के स्वागत के लिए जो थीम सॉग तैयार किया गया था जिसमें 3 ऐसे आतंकवादियों को दिखाया गया था जो 1984 के आपरेान ब्लू स्टार के दौरान मारे जा चुके थे। आज का पंजाब चंद मुठ्ठी भर लोगों को अपने स्वाथरे की राजनीति को सफल नहीं होने देगा क्योंकि 1980 के दशक वाले पंजाब एवं 2020 के पंजाब में जमीन आसमान का अंतर है। यद्यपि लोगों में जागरूकता बढ़ी है; इसके बावजूद पंजाब के युवा खालिस्तानी समर्थकों के बहकावे में न आ पाये इसके लिए राज्य सरकार के साथ-साथ भारत सरकार को भी ऐसी ताकतों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी होगी, जिससे फिर से इस विचारघारा का बीजारोपण न हो सके। इसके लिए सर्वप्रथम पंजाब में नशाखोरी के खिलाफ एक जनआंदोलन की शुरुआत करनी होगी एवं युवाओं के रोजगार पर विशेष ध्यान देना होगा, जिससे वह नशाखोरी की आदतों से दूर हो सके।

विदेशों से आने वाली फंडिंग पर विोष नजर रखनी होगी क्योंकि इस धन का दुरूपयोग कर न सिर्फ नौजवानों को गुमराह करने के लिए किया जा रहा है बल्कि उन्हें हथियार देने में भी इसका उपयोग होता है। सरकार को ऐसे चरमपंथियों पर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए जो देश के अमन-चैन के साथ खिलवाड़ करते हैं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के कार्यों को केवल धर्म के प्रचार प्रसार तक ही सीमित किया जाना चाहिए, जिससे गुरुद्वारों का प्रयोग राजनीति के अखाड़े के रूप में न हो सके।
भारत सरकार को विदेशी धरती पर पनप रहे अलगाववादी ताकतों के विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए उन देशों की सरकारों को भरोसे में लेना होगा, जिससे अलगाववादी ताकतों के खिलाफ जल्द और कड़ी कार्रवाई की जा सके। गुरपंतवंत सिंह पन्नू, परमजीत सिंह, हरदीप सिंह निज्जर आदि खालिस्तानी समर्थकों को प्रत्यर्पण संधि के अंतर्गत भारत लाकर सजा दिलाने की कार्रवाई करनी चाहिए, जिससे इन खालिस्तानी ताकतों को हतोत्साहित किया जा सके। पंजाब, हिन्दुस्तान के साथ-साथ विश्व का कोई भी सिख खालिस्तानी विचारधारा का समर्थन नहीं करता है। सिख गुरुओं की विचारधारा प्रेम, सहयोग एवं सद्भावना पर आधरित है, जिस पर पूरा समाज चलने के लिए कृत संकल्प है।

डॉ. सुरजीत सिंह गांधी


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