प्रवासी मतदाता : मतदान से क्यों हैं वंचित?
जो लोग बिहार के हैं और इस वक्त बिहार में नहीं हैं। अपने रोजी-रोजगार के लिए वह किसी और प्रदेश में काम कर रहे हैं।
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उनके मतदाता पहचान पत्र बिहार के हैं मगर उनके पास ऐसी मजबूरी है कि वह चाहकर भी आसन्न विधानसभा चुनाव में अपना मतदान नहीं कर सकते। बिहार से बाहर रहने वाले ऐसे लाखों मतदाता हैं जिन्हें हम ‘प्रवासी बिहारी’ भी कह सकते हैं। चुनाव आयोग जिस प्रकार दिव्यांगों, सैनिकों, बीमार एवं वृद्धों के लिए डाक मतपत्रों की व्यवस्था करता है, उसी प्रकार उनके लिए भी कोई ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए, जिससे वे लोकतंत्र के इस महान पर्व में अपना योगदान कर सके।
बिहार विधानसभा के पहले चरण का चुनाव 28 अक्टूबर को होना है। चुनाव आयोग ने मतदाताओं की सुविधा के लिए भरसक इंतजाम किए हैं। वरिष्ठ नागरिकों एवं दिव्यांग मतदाताओं के लिए आयोग ने करीब 52 हजार लोगों के पास डाक मत पत्रों को पहुंचाने का फैसला किया। चुनाव अधिकारी पोस्टल बैलेट को इन मतदाताओं तक पहुंचाएंगे। पहले चरण के 71 विधानसभा क्षेत्रों के 4 लाख से अधिक वरिष्ठ नागरिक, जो 80 वर्ष से अधिक आयु के हैं उनमें से 52 हजार से अधिक मतदाताओं ने डाक मत पत्रों के माध्यम से मतदान करने का विकल्प चुना है।
इन्हें सुरक्षित तरीके एवं गोपनयीता के साथ डाक मत पत्र मुहैया कराने का चुनाव आयोग ने निर्णय लिया है। गौरतलब है कि चुनाव आयोग ने 3 अक्टूबर को सभी राज्यों के मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को भेजे गए अपने पत्र में यह निर्देश दिया था कि सभी चुनाव एवं उप चुनाव में राज्य के बाहर रह रहे मतदाताओं के लिए मतदान की सुविधा प्रदान की जाएगी, लेकिन आयोग ने वैसे आम मतदाताओं के लिए कोई योजना नहीं बनाई जो लाखों की संख्या में बिहार से बाहर प्रवास कर रहे हैं। कोरोना महामारी के इस संकट के दौरान चुनाव आयोग द्वारा मतदान के नियमों में किए गए बदलावों का विरोध भी शुरू हो गया। बिहार के मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल ने विरोध करते हुए चुनाव आयोग को पत्र लिखा और इन मामलों में सर्वदलीय बैठक बुलाकर कोई ठोस निर्णय लेने की अपील की। असल में राजद ने डाक मत पत्र संबंधी आयोग की व्यवस्था पर सवाल उठाया है।
राजद का मानना है कि इन बदलावों से चुनाव प्रक्रिया की प्रमाणिकता संदेह के घेरे में आएगी। राजद ने यह भी आरोप लगाया कि इन बदलावों से इसका सीधा फायदा सत्तारूढ़ गठबंधन को हो सकता है। लोकतंत्र के इस महान पर्व के लिए आयोग को स्पष्ट एवं पारदर्शी फैसले लेने चाहिए। बाहर रहने वाले मतदाता जो मतदान करने से छूट जाते हैं उनके लिए भी उसी शहर में कोई न कोई व्यवस्था की जानी चाहिए। जहां एक तरफ देश डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है, वहीं अब यह बहुत संभव है कि कोई मतदाता कहीं भी रहे वह अपने मतदान के अधिकार से वंचित न रह पाएं। इसके लिए कई इलेक्ट्रॉनिक माध्यम है, साथ ही आयोग चाहे तो जिस राज्य का मतदान किया जाना है उसके लिए किसी दूसरे नामचीन शहरों में विशेष बूथ बनाकर मतदान करवा सकती है। अब डिजिटल युग में घर बैठे मतदान की प्रक्रिया में हिस्सा लेना कोई बड़ी बात नहीं है। सनद् रहे कि अमेरिका में राष्ट्रपति का चुनाव 3 नवम्बर को होना है, लेकिन मतदान तिथि से पहले ही करीब 4 करोड़ 21 लाख वोट डाल चुके हैं। यह आंकड़ा पिछले चुनाव से करीब दोगुना है।
इस बार कोरोना महामारी की वजह से सोशल डिस्टेंसिग का पालन करते हुए भी अमेरिका के चुनाव आयोग ने ऐसा निर्णय लिया है। हालांकि इस बाबत चुनाव आयोग में पहले भी बहुत रास मंथन हुए हैं, लेकिन प्रवासी नागरिकों की मतदान करने के अधिकारों को लेकर अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिए गए, जिस वजह से लाखों प्रवासी मतदाता अपना मतदान करने से वंचित रह जाते हैं, जबकि चुनाव आयोग मतदान करने के प्रति जागरूकता के लिए करोड़ों रुपये विज्ञापन के रूप में खर्च करता है, लेकिन देश की आबादी का बड़ा हिस्सा लोकतंत्र के इस महान पर्व में हिस्सा नहीं ले पाता। बड़ा सवाल यह है कि जब देश के प्रधानमंत्री डिजिटल इंडिया की परिकल्पना करते हैं और उसे जमीन पर उतारने का सपना देखते हैं तो क्यों नहीं चुनाव आयोग भी ऐसे प्रवासी मतदाताओं की सुविधा के लिए ऑनलाइन मतदान की व्यवस्था क्यों नहीं करता?
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