वैश्विकी : दुविधा में भारत
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के करीब एक सप्ताह पहले यानी आगामी 27 अक्टूबर को भारत और अमेरिका के बीच तीसरी टू प्लस टू बैठक पर दुनिया भर विशेषकर चीन की खास नजर होगी।
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इससे पहले हुई दो बैठकों के विपरीत आज की परिस्थितियां भिन्न हैं। पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के करीब एक लाख सैनिक आमने-सामने हैं। भयंकर बर्फीली मौसम के बावजूद संभावना कम है कि यह सैनिक जमावड़ा कम होगा। दुनिया में संभवत: यह सबसे बड़ा खतरा है। इन हालात ने भारत और अमेरिका के विदेश मंत्रियों और रक्षा मंत्रियों की टू प्लस टू बैठक को नया रणनीतिक आधार और तात्कालिकता प्रदान की है।
यह भी गौर करने की बात है कि अमेरिका में प्रशासनिक बदलाव की संभावना के बावजूद इस बैठक को नहीं टाला गया। अमेरिका की घरेलू राजनीति में विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी ट्रंप प्रशासन से अनेक मामलों में यह आग्रह करती रही है कि उनका प्रशासन कोई बड़े फैसले न करे। नई दिल्ली की टू प्लस टू बैठक के बारे में डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन और उपराष्ट्रपति पद की उम्मीदवार कमला हैरिस ने नई दिल्ली बैठक के बारे में कोई सवाल खड़ा नहीं किया है। इससे स्पष्ट है कि अमेरिका की भारत-प्रशांत (इंडो पैसिफिक) नीति के बारे में दोनों दलों की आम राय है। कोई भी प्रशासन आए, भारत-प्रशांत क्षेत्र में चीन की ताकत को काबू में रखने तथा इस काम में भारत की केंद्रीय भूमिका को लेकर अमेरिका अपना प्रयास जारी रखेगा।
पूर्वी लद्दाख में चीन की सैनिक चुनौती के बावजूद टू प्लस टू बैठक को लेकर भारतीय विदेश नीति प्रतिष्ठान में दुविधा की स्थिति है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने नवीनतम साक्षात्कार में इस धारणा को खारिज कर दिया कि एशिया में नाटो जैसा कोई नया सैनिक गठबंधन कायम होने वाला है। जयशंकर ने भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के क्वाड (चतुर्गुट) की तुलना अन्य ऐसे मंचों से की, जिनमें भारत अन्य देशों के साथ शामिल है। आश्चर्यजनक रूप से विदेश मंत्री ने कहा कि क्वाड के पहले त्रिगुट (ट्रायंगल) था। करीब 20 वर्ष पहले रूस की पहल पर भारत और चीन को मिलाते हुए रणनीतिक ट्रायंगल का विचार सामने आया था। भारत, रूस और चीन (रिक) का यह मंच एक अर्ध औपचारिक गुट जैसा बन गया है। इसके तहत विदेश मंत्री स्तर पर तीनों देश वार्ता करते हैं। पूर्वी लद्दाख में सैन्य संघर्ष की स्थिति के बावजूद पिछले दिनों रिक की बैठक हुई थी। विदेश मंत्री ने इस संबंध में शंघाई सहयोग संगठन, ब्रिक्स और इब्सा (भारत, ब्राजील और द. अमेरिका) जैसे मंचों की निशानदेही कराई।
यह भी गौर करने वाली बात है कि जयशंकर ने क्वाड को गैर-ढांचे वाले शैक्षिक मंच की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि आज के बहुध्रुवीय विश्व में हमारी विदेश नीति का स्थायी लक्ष्य राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाना है। क्षेत्रीय और विश्व मामलों में जिन-जिन देशों के समान विचार हैं, उन्हें आपस में विचार-विमर्श करने और आवश्यक कदम उठाने के लिए निश्चित मंच की दरकार है।
जयशंकर का यह मत अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो से काफी अलग है। नई दिल्ली की टू प्लस टू बैठक में दोनों देश क्वाड के एजेंडे और उपयोगिता पर आपसी समझदारी बढ़ाने की कोशिश करेंगे। भारत अपने रुख में कोई बड़ा बदलाव करेगा, इसकी संभावना तो फिलहाल नहीं है। नई दिल्ली बैठक में दोनों देशों के बीच कोई समझौता या करार होगा, इसे लेकर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कोई वक्तव्य जारी नहीं किया है। वार्ता के समापन पर ही स्पष्ट होगा कि इस बैठक के क्या ठोस परिणाम सामने आए? अमेरिका और पश्चिमी देशों की मीडिया के अनुसार दोनों देश ‘बेसिक एक्सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्रीमेंट’ पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। यह रणनीतिक और सैन्य क्षेत्र में दोनों देशों के बीच होने वाला तीसरा बड़ा समझौता होगा। इस समझौते से अमेरिका के पास पूरी दुनिया की भूमिगत क्षेत्रों से संबंधित जो जानकारियां हैं, उनका लाभ भारत को मिल सकेगा। इस समझौते से पहले 2018 में दोनों देशों के बीच कम्युनिकेशंस, कांपैटिबिलिटी एंड सिक्युरिटी एग्रीमेंट हुआ था। और 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट पर दोनों देशों ने हस्ताक्षर किए थे।
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