सरोकार : गर्भवती महिलाओं की मानसिक स्थिति चिंताजनक

Last Updated 27 Sep 2020 02:11:30 AM IST

गर्भावस्था एक तनावपूर्ण अवस्था होती है और कोविड-19 के दौर में तो यह नवजात के माता-पिता के लिए नई चुनौतियां लेकर आई है।


सरोकार : गर्भवती महिलाओं की मानसिक स्थिति चिंताजनक

गर्भवती महिलाएं एक संवेदनशील स्थिति में होती हैं और अगर  कोरोना वायरस से संक्रमित होती हैं, तो उन्हें अस्पताल में भर्ती होने और वेंटिलेटर की ज्यादा जरूरत होती है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि अमेरिका में इस महामारी के चलते पांच लाख बच्चे कम पैदा होने वाले हैं क्योंकि औरतें इस महामारी के दौरान गर्भवती होना ही नहीं चाहतीं। अब कोई सोच सकता है कि बाकी के देशों का क्या हाल होने वाला है। इधर महाराष्ट्र से यह खबर आई है कि वहां 12.3 फीसद गर्भवती महिलाएं कोरोना वायरस से संक्रमित हैं। आईसीएमआर-एनआईआरआरएच के एक अध्ययन का यह भी कहना है कि अधिकतर संक्रमित महिलाओं में कोई लक्षण नहीं हैं। चिकित्सकों का कहना है कि लक्षण न होने के बावजूद कोविड-19 गर्भावस्था और प्रसव के दौरान समस्याएं पैदा कर सकता है।
वैसे महामारी ने गर्भावस्था के अनुभवों में भी काफी बदलाव किया है। ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिर्वसटिी की एसोसिएट प्रोफेसर एलिनोर सुलिवान ने गर्भावस्था के दौरान तनाव, मातृत्व पोषण और बच्चों के मस्तिष्क के विकास पर काफी काम किया है। उनका कहना है कि महामारियों के दौरान एक अलग किस्म का तनाव होता है, जो गर्भवती महिला को मनोवैज्ञानिक ही नहीं, शारीरिक रूप से भी परेशान करता है। यूं कोविड-19 के संक्रमण से प्लेसेंटा के असामान्य होने की आशंका होती है। फीटस की ऑक्सीजन सप्लाई और पोषण पर इसका असर होता है। हालांकि यह जरूरी नहीं कि मां के साथ-साथ बच्चा भी कोविड-19 से संक्रमित हो। अब तक के आंकड़ों से भी यही पता चला है, लेकिन चिंता तो होगी ही, खासकर जब गर्भवती महिला किसी तनाव से गुजर रही हो तो इसका नुकसान उसके अजन्मे बच्चे को तो हो सकता है। तनाव कम से कम हो, इसके लिए सामाजिक सहयोग और आर्थिक स्थिरता जरूरी है।

अमेरिका में कोविड-19 और प्रसवकालीन अनुभवों पर एक स्टडी के दौरान औरतों ने बताया है कि उन्हें किस तरह के तनाव से गुजरना पड़ रहा है। लगभग 75 फीसद औरतों का कहना है कि उन्हें सामाजिक रूप से अलग-थलग कर दिए जाने का डर है, अकेलेपन का डर है, अस्पताल की प्रक्रियाओं में बदलाव हो गए हैं-इससे जुड़ी आशंकाएं हैं। क्वारंटाइन के दौरान होने वाले अनुभवों को लेकर घबराहट है। दुनिया भर के देशों से जो खबरें मिलती हैं, उनसे पता चलता है कोविड-19 के दौर में अस्पताल जाने का अनुभव भी बिल्कुल अलग है। अधिकतर अस्पतालों में गर्भवती महिला के साथ सिर्फ  एक व्यक्ति को रहने की इजाजत है। अगर अस्पताल में भर्ती होने के दौरान मां कोरोना संक्रमित है तो जन्म लेने के बाद बच्चे को उससे एकदम अलग कर दिया जाता है। यह भी अलग तरह का तनाव पैदा करता है। यह तनाव कैसे कम होगा-इसके लिए सामुदायिक स्तर पर काम करने की जरूरत है। गर्भवती महिलाएं, अगर कामकाजी हैं तो उन्हें पेड मेटरनिटी लीव मिले। जैसे घरेलू कामगार औरतें। उनके पास सवैतनिक छुट्टी नहीं होती। बीमार होने या गर्भावस्था के दौरान भी लगातार काम करने को विवश होती हैं। दरअसल, राष्ट्रीय नीतियों में सुधार की जरूरत है, लेकिन हमारे यहां श्रम कानूनों में बदलाव करके, कई राज्यों में 8 की बजाय 12 घंटे की शिफ्ट कर दी गई। क्या इससे सरकारें सभी के लिए तनाव पैदा नहीं कर रहीं।

माशा


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