साइबर हमला : कुछ भी नहीं है सुरक्षित

Last Updated 23 Sep 2020 03:09:33 AM IST

बीते कई वर्षो से कुछ ऐसी खबरें लगातार आ रही हैं, जिनमें आंकड़ों की ताजगी को छोड़कर कुछ भी नया नहीं होता। ये खबरें आम लोगों की निजी सूचनाओं और तमाम खातों में जमा उनकी रकम पर डिजिटल सेंधमारी के बारे में होती हैं, जिन्हें लेकर हालात इतने विकट हैं कि इनकी खबरों से हमारा ध्यान नहीं हटता।


साइबर हमला : कुछ भी नहीं है सुरक्षित

जैसे ही ये खबरें आती हैं, इनका हिसाब-किताब संभालने करने वाला सरकारी तंत्र और बैंकिंग सिस्टम-डिजिटल वॉलेट की सुविधा देने वाली ऐप-कंपनियां हरेक को यह आश्वस्त करने में जुट जाते हैं कि आम लोगों को फिक्र करने की जरूरत नहीं है क्योंकि उनकी सूचनाएं और खातों में जमा रकम सुरक्षित है।
पर तभी कुछ खबरें और मिलती हैं; जैसे हाल में पता चला कि देश की सबसे बड़ी डाटा एजेंसी राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (एनआईसी) पर साइबर हमला हुआ और संवेदनशील जानकारियां उड़ा ली गई। इस सेंटर में प्रधानमंत्री व अनेक महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की सूचनाओं समेत राष्ट्रीय हित से जुड़ी जानकारियां दर्ज होती हैं। यह भी पता चला कि एक चीनी कंपनी शिनहुआ डाटा इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी ने भारत की करीब 10 हजार हस्तियों की रोजाना की डिजिटल गतिविधियों की पूरी सफलता के साथ जासूसी की और हमें इसकी भनक तक नहीं लगी। एक सूचना और है। सिक्योरिटी फर्म बाराकुडा नेटवर्क ने बताया है कि इस साल कोरोना वायरस के दौर में भारत में साइबर हमलों की संख्या 667 फीसदी बढ़ गई। देखा गया है कि कोरोना वायरस से संबंधित ई-मेल भेजकर लोगों की निजी जानकारी चोरी की जा रही है और उनके कंप्यूटर सिस्टम में वायरस (मॉलवेयर) की घुसपैठ कराई जा रही है।

ऐसे मामलों यानी साइबर अटैक की संख्या हमारे देश में 6,96,938 रही। खुद सरकार ने भी इसकी पुष्टि की है। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री संजय धोत्रे की ओर से बताया गया कि जनवरी से अगस्त के बीच भारत में करीब सात लाख साइबर अटैक हुए हैं। याद रहे कि नौ नवम्बर, 2016 को आधी रात की गई नोटबंदी के बाद दावा किया गया था कि देश में जल्द ही डिजिटल लेनदेन को इतना आम और महफूज कर दिया जाएगा कि उसमें कोई सेंध नहीं लगा सके, लेकिन हुआ तो कुछ उल्टा ही है। साइबर थानों का दौरा कर लिया जाए तो पता चलेगा कि अच्छे-खासे पढ़े-लिखों की जमात भी डिजिटल चोरों से अपना पैसा और अपनी सूचनाओं की हिफाजत नहीं कर पा रहे हैं। असल में आज जिस तरह की आधुनिक बैंकिंग का दावा ज्यादातर बैंक करते हैं, वही सारी मुसीबत की जड़ में है। खाता खोलने से लेकर बैंकिंग का सारा कामकाज घर बैठे कराने के लिए बैंकों ने अपने सर्वरों से उपभोक्ताओं को इंटरनेट के जरिये जोड़ने का जो प्रयास किया है, उसने सुविधा के साथ-साथ कई मुसीबतें भी पैदा कर दी हैं। इंटरनेट, मोबाइल और एटीएम के मार्फत बैंकिंग के इंतजाम करते हुए एक तरफ बैंकों ने अपने दफ्तरों का आकार और कर्मचारी संख्या में कटौती की है, तो दूसरी तरफ ग्राहकों को नेट बैंकिंग का प्रयोग करने या पड़ोस में लगे एटीएम की सेवाएं लेने को प्रोत्साहित किया। यह व्यवस्था कई समस्याओं और खतरों का सबब बन गई है। सवाल है कि आखिर बैंकिंग के आधुनिक स्वरूप यानी इंटरनेट बैंकिंग को नुकसान से कैसे बचाया जाए।
वैसे तो इस संबंध में प्राय: हर बैंक दावा करता है कि उसने अपने सर्वरों तक हैकरों की पहुंच के रास्ते में कई बाधाएं कायम की हैं, लेकिन हैकरों ने कंप्यूटरों के नेटवर्क और सर्वरों में सेंधमारी करके साबित कर दिया है कि अगर बैंक व सरकारें डाल-डाल हैं, तो वे पात-पात हैं। चूंकि अभी भी साइबर हैकिंग से संबंधित अंतरराष्ट्रीय फ्रेमवर्क और कानूनों की कमी है, ऐसे में लगता नहीं है कि इंटरनेट बैंकिंग को फिलहाल पूरी तरह सुरक्षित बनाया जा सकेगा। एक समस्या यह भी है कि अभी हमारे देश में हैकिंग और साइबर जासूसी जैसी गतिविधियों को रोके वाला कोई स्पष्ट मैकेनिज्म नहीं बन पाया है।
इसकी वजह यह है कि देश में अभी साइबर विशेषज्ञों का अभाव है और आम लोगों को भी इस बारे ज्यादा कुछ मालूम नहीं है। उल्लेखनीय है कि हमारे देश में फिलहाल बमुश्किल छह-सात हजार साइबर विशेषज्ञ होंगे, जबकि पड़ोसी मुल्क चीन में सवा लाख और अमेरिक में एक लाख से ज्यादा लोग साइबर विशेषज्ञ के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। अगर इंटरनेट बैंकिंग जैसे साधनों को आम उपभोक्ताओं के हितों को सुरक्षित रखने वाला बनाना है और बैंकों को भी साइबर हमलों से सुरक्षित रखना है, तो इस मोर्चे पर तेजी से काम करने की जरूरत है।

अभिषेक कु. सिंह


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