सरोकार : वर्क फ्रॉम होम के सेटअप में कुछ नहीं

Last Updated 20 Sep 2020 12:39:30 AM IST

यह एक दिलचस्प, लेकिन तकलीफदेह सच्चाई है कि औरतों को वर्क फ्रॉम होम के सेटअप में भी भेदभाव का शिकार होना पड़ रहा है।


सरोकार : वर्क फ्रॉम होम के सेटअप में कुछ नहीं

बाल्टीमोर, अमेरिका में यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड में मीडिया और कम्यूनिकेशन स्टडीज की असि. प्रोफेसर एलिजाबेथ पैटन ने एक आर्टकिल में बताया है कि उन्हें क्या-क्या दिक्कतें हो रही हैं। सबसे बड़ी दिक्कत है कि घर में कोई ऑफिस स्पेस नहीं है। पति के लिए इसकी व्यवस्था है-वह ऑफिस स्पेस में नॉन स्टॉप काम करता रहता है। बेटे के वर्चुअल साइंस कैंप, वीडियो एडिटिंग क्लास और वीडियो गेम्स खेलने के लिए एक निश्चित जगह है जहां अगले दो महीने में उसकी लर्निग क्लास भी होने वाली है। पर एलिजाबेथ को खानाबदोश की तरह घर में यहां से वहां घूमना पड़ता है। कभी डाइनिंग टेबल पर, कभी सोफे पर तो कभी बेटे के कमरे में। हर देश में, हर नस्लीय और भाषायी विशेषताओं वाली औरतों को झेलना पड़ रहा है।
भारत जैसे देश में जहां लोगों के पास औसत छोटे घरों में रहना पड़ता है, वहां यह स्थिति और भी बदतर हो जाती है।

अब चूंकि गूगल ने ऐलान किया है कि उसके दो लाख कर्मचारी जून, 2021 तक घर से काम करेंगे और ट्विटर ने भी कहा कि कोविड-19 के खत्म होने तक लोग रीमोटली काम कर सकते हैं, औरतों को लंबे समय तक एक डेडिकेटेड प्रोफेशनल वर्कफोर्स की कमी से भी जूझना ही पड़ेगा। वैसे एलिजाबेथ ने होम ऑफिस के सामाजिक इतिहास पर एक किताब ‘ईजी ऑफिस-द राइज ऑफ द होम ऑफिस’ भी लिखी है। इससे साबित होता है कि औरतें घरों में अपने स्पेस की तलाश बरसों से कर रही हैं।

18वीं शताब्दी में मध्यवर्गीय और अमीर घरों में घरेलू कामकाज तीन स्तरों पर होते थे-मेहमानों के लिए लिविंग और डाइनिंग रूम, सर्विस एरिया, जिसमें किचन, लॉन्ड्री आती थी, और तीसरा सोने वाली जगहें, जिसे हम अब ऑफिस स्पेस कहते हैं। 19वीं शताब्दी आते-आते उसे चैंबर कहा गया, या लाइब्रेरी या स्टडी। फिर उस पर पुरुषों का वर्चस्व माना गया। औरतें सर्विस एरिया में सीमित होती गई। यूं एलिजाबेथ की किताब किसी भी देश में लागू होती है। हमारे यहां लिविंग रूम, जब तक पुरुष घर में रहता है, उसी के कब्जे में रहता है। औरतें पीछे की तरफ बैठा करती हैं या किचन में मौजूद रहती हैं।

ऐसे में घर के किस हिस्से को वर्कप्लेस बनाया जाए-यह सोचना जरा मुश्किल है। बेडरूम में अंतरंगता और आराम में खलल पड़ता है। लिविंग रूम में पीसी या लैपटॉप टीवी कार्यक्रमों से होड़ करने लगते हैं। किचन या डाइनिंग रूम आपके काम पर असर कर सकते हैं, और वहां दूसरे लोग आपके काम में दखल देते हैं। ऐसे में अपने लिए घर में जगह ढूंढना मुश्किल होता है। वैसे अमेरिकन होम फर्निशिंग अलांयस ने हाल ही में एक अध्ययन किया कि लोग घर से कैसे काम कर रहे हैं और होम ‘ऑफिस’ में उनका समय कैसे बीत रहा है।

लगभग 47 फीसद लोगों ने कहा कि उनके पास काम करने के लिए अलग कमरा या दफ्तर है, पर उसमें आदमियों का प्रतिशत औरतों से अधिक था। बहुत से लोगों ने कहा कि उन्होंने बेडरूम, डाइनिंग रूम, किचन, बेसमेंट, सनरूम या पोर्श और गैरेज को अपना वर्कप्लेस बनाया है। ऐसा कहने वाली औरतें ज्यादा थीं। वर्क फ्रॉम होम औरतों के लिए वैसे भी दोहरा दबाव लेकर आया है, ऐसे में काम करने के लिए एक निश्चित जगह न होना, उसके लिए परेशानियां बढ़ाता है, और कुछ नहीं।

माशा


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