इस्लामी जगत : हाशिए पर पाकिस्तान

Last Updated 18 Sep 2020 02:26:34 AM IST

सम्पूर्ण विश्व के इतिहास में देशों का निर्माण नस्ल, भाषा के आधार पर तथा भौगोलिक स्थिति के अनुसार हुआ है, विश्व इतिहास की एकमेव घटना है जो धर्म के आधार पर किसी देश का निर्माण हुआ है, और वह है 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान का निर्माण।




इस्लामी जगत : हाशिए पर पाकिस्तान

इस्लामी उम्मा के आधार पर जब पाकिस्तान का निर्माण हुआ तो सभी इस्लामी देशों का समर्थन उसे प्राप्त था लेकिन 1971 के बाद इस्लाम के अनुसार देश चलाने की इनकी योजना विफल हो गई। जब पश्चिमी पाकिस्तान की तरफ से पूर्वी पाकिस्तान की बांग्ला भाषा पर उर्दू थोपी जाने लगी। राजनीतिक तौर पर 1971 के चुनाव में पूर्वी पाकिस्तान के तत्कालीन नेता शेख मुजीब उर रहमान की जीत को पश्चिम पाकिस्तान के नेता जुल्फिकार अली भुट्टो ने नकार दिया तो पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान का भाषा के आधार पर विभाजन हुआ। बांग्लादेश के निर्माण का इतिहास सर्वज्ञात है।
पाकिस्तान ने 1971 के विभाजन के पश्चात स्वयं को पूरी दुनिया का नेता सिद्ध करने के लिए परमाणु बम को इस्लामी बम के नाम से प्रचारित किया। इसके लिए अरब देशों से कोष जमा करने का प्रयास हुआ। पाकिस्तान किस तरह स्वयं को इस्लामिक देशों का आका सिद्ध कर रहा था, उसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि 1960 के दशक में ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज (ओआईसी) के अधिवेशन में भारत को निमंतण्रका उसने पुरजोर विरोध किया। भारत की तरफ से इंदिरा गांधी ने फखरुद्दीन अली अहमद को प्रतिनिधित्व करने को भेजा। पाकिस्तान के विरोध पर भारत के प्रतिनिधि को इस अधिवेशन में भाग नहीं लेने दिया गया। तब पाकिस्तान अपनी सफलता के चरम पर हुआ करता था, जनरल अयूब खान और उसके बाद याहिया खान ने उस समय कहा था कि पाकिस्तान सभी इस्लामिक देशों के लिए सेना का कार्य करेगा।

पाकिस्तान ने 1970 के दशक में  इस्लामिक बम के लिए पूरी दुनिया के मुस्लिम देशों को एकीकृत किया। उसका पाकिस्तान को लाभ भी मिला। उसका लाभ यह था कि लीबिया के कर्नल गद्दाफी भी पाकिस्तान को फंड उपलब्ध करा रहे थे, सऊदी अरब में जो भी पाकिस्तान की सेना से निवृत्त होने वाले अधिकारी थे, उनको विशेष तौर पर तैनाती दी जाने लगी। गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल में पाकिस्तान का बोलबाला था। अमेरिका ध्रुवीय व्यवस्था में पाकिस्तान के साथ जैसे खड़ा हुआ उसमें इस्लामिक देशों का अमेरिका के ऊपर प्रभाव ही महत्त्वपूर्ण था। सोवियत संघ के विघटन के लिए 1970 के दशक के अंत में अफगानिस्तान में सोवियत संघ ने कम्युनिज्म का प्रभाव बढ़ाया, ईरान के कम्युनिस्टों के खिलाफ अमेरिका प्रायोजित इस्लामिक क्रांति हुई। पाकिस्तान को उसमें सोवियत संघ को पराजित करने के लिए अफगानिस्तान में तालिबान खड़ा करने की जिम्मेदारी मिली और जनरल जिया उल हक ने बखूबी आतंकवाद को पाकिस्तान की रणनीतिक संपत्ति के रूप में स्थापित कर दिया।
यहां तक स्थिति थी कि जब 1993 में मुंबई में श्रृंखलाबद्ध विस्फोट हुए और उन विस्फोट के सबूत को अमेरिका फोरेंसिक जांच के बहाने को अमेरिका ले जाकर नष्ट करने का भी कार्य किया गया। रॉ के तत्कालीन प्रमुख बी रामन ने अपनी आत्मकथा में जिक्र किया है कि कैसे अमेरिकी अधिकारी मुंबई बम कांड के प्रमुख सबूत, जिससे पाकिस्तान की संलिप्तता सिद्ध होती थी, को अमेरिका ले गए और वहां से यह पत्राचार किया गया कि जो महत्त्वपूर्ण सबूत थे, वे खो गए हैं।
जब भारत में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार स्थापित हुई, जिसका जिक्र जसवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा में किया है कि कैसे उन्होंने अमेरिका को भारत के पक्ष में लाने के लिए राजनयिक कौशल का परिचय दिया जब परवेज मुशर्रफ ने नवाज शरीफ के कार्यकाल में 1998-99 में करगिल में पाकिस्तान की सेना को वहां कब्जा करा दिया, तब भारत की तरफ से सैन्य कार्रवाई प्रारंभ हुई और पाकिस्तान परमाणु बम की धमकी देने लगा। उस समय वाजपेयी सरकार की कुशल रणनीति के तहत अमेरिका को पहली बार पाकिस्तान के विरु द्ध खड़ा किया, अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बुलाकर हड़काया कि आप परमाणु बम की धमकी देंगे तो अमेरिका आपके विरु द्ध कार्रवाई करेगा। तब पाकिस्तान को करगिल से हटना पड़ा और इसी विषय को लेकर परवेज मुशर्रफ तख्ता पलट करके स्वयं पाकिस्तान के शासक बन गए।
आज की स्थिति ऐसी है जब पाकिस्तान के साथ इस्लामिक देशों में तुर्की और मलयेशिया के अलावा और कोई देश खड़ा नहीं है, मलयेशिया की अपनी समस्याएं हैं, तुर्की जिस तरह सेक्युलरवाद को छोड़कर कट्टर इस्लामवाद को अपना रहा है, उसे स्वयं को मुस्लिमों का चौधरी सिद्ध करना है, लेकिन जिसका सचमुच इस्लामी जगत में बड़ा प्रभाव है उस सऊदी अरब ने बीच के दिनों में जिस तरह से संयुक्त राष्ट्र से लौटते समय इमरान खान को विमान से उतारकर उन्हें कमर्शियल फ्लाइट से इस्लामाबाद जाने पर मजबूर किया और ऐसी स्थिति है कि जिस चीन में उइगर मुसलमानों की नमाज और रोजे पर पाबंदी है, मस्जिदें तोड़ी जा रही हैं, तमाम मुसलमानों को सुअर का मांस खाने पर मजबूर किया जा रहा है, उससे कर्ज लेकर सऊदी अरब को वापस करना पड़ रहा है। संयुक्त अरब अमीरात ने जिस तरह से इजराइल के साथ समझौता किया और पाकिस्तान को चुप्पी साधनी पड़ी, वह प्रमाण है कि गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल की पूरी राजनीति बदल चुकी है।
जब भारत ने अनुच्छेद 370 में संशोधन किया तब मलयेशिया ने आंखें तरेरने की कोशिश की थी। मलेशिया में आंखें तरेरने का नेतृत्व  करने वाले मोहम्मद महातिर आज मलयेशिया की राजनीति में अप्रासंगिक हैं। तुर्की कितने दिनों तक पाकिस्तान का पक्ष लेने वाला है, यह आने वाला समय बताएगा। अब पाकिस्तान का खुलकर साथ देने के लिए न सऊदी अरब तैयार है, न युएई। न इराक, ईरान में से कोई तैयार है, लीबिया की कोई स्थिति नहीं है। ऐसे में इस्लामी विश्व का चौधरी बनने वाला पाकिस्तान आज इस्लामी राजनीति के हाशिए पर है। 2019 में जिस तरह से ओआईसी  की बैठक में भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को निमंत्रित किया गया, जिसका पाकिस्तान ने विरोध किया तो विरोध करने पर एक ऐसा जमाना भी था जब फखरुद्दीन अली अहमद इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में अपने कमरे से बाहर नहीं निकल पाए थे, दूसरा दृश्य नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल का है कि मोदी के कार्यकाल में पाकिस्तान ने भारत के विशेष अतिथि के रूप में सम्मिलित होने का विरोध किया तो ओआईसी की बैठक को सुषमा स्वराज ने संबोधित किया तथा पाकिस्तान की कुर्सी खाली रह गई। यह इस बात का प्रमाण है कि पाकिस्तान इस्लामिक राजनीति में बिल्कुल हाशिए पर है।

आचार्य पवन त्रिपाठी


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