चांद : संसाधनों के लिए होगी होड़?

Last Updated 18 Sep 2020 02:24:25 AM IST

सदियों तक चांद को सौंदर्य के प्रतीक के रूप में ही देखा गया पर हाल की गतिविधियों से पता चलता है कि चांद के संसाधनों के लिए भी विभिन्न देशों में होड़ आरंभ होने वाली है।


चांद : संसाधनों के लिए होगी होड़?

वैसे तो अनेक वर्षो से यह चर्चा समय-समय पर होती रही है कि क्या चांद के संसाधनों का दोहन धरतीवासी करेंगे पर इस चर्चा में प्राय: यही माना गया है कि चांद के संसाधनों का दोहन करने के दिन अभी बहुत दूर हैं। 1960 और 1970 के दशक में चांद पर मनुष्य की यात्रा चर्चा में थी। अमेरिका के नासा-अपोलो कार्यक्रम के अंतर्गत बारह धरतीवासियों ने इस दौरान चांद पर कदम रखा। उसके बाद चांद यात्राओं के प्रति मनुष्य की दिनोंदिन रुचि कम होती गई पर अब नये सिरे से ऐसे कार्यक्रम तेज होने वाले हैं।
इस संदर्भ में कुछ समय पहले अमेरिका ने एकतरफा घोषणा की कि बाहरी अंतरिक्ष के संसाधनों की खोज और उपयोग का उसे अधिकार है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की इस घोषणा में कहा गया है कि अमेरिका अंतरिक्ष के संसाधनों पर सभी धरतीवासियों के सामान्य अधिकार की बात स्वीकार नहीं करता है और उसे इन संसाधनों के दोहन के लिए किसी अंतरराष्ट्रीय समझौते की अनुमति प्राप्त नहीं करनी होगी। यहां यह ध्यान देने की बात है कि मून ट्रीटी या चांद के अंतरराष्ट्रीय समझौते में चांद को सभी लोगों के सामान्य हित की विरासत के रूप में देखा गया है। यह सही सोच है पर इस समझौते पर बहुत कम देशों ने हस्ताक्षर किए हैं।

चांद पर संसाधन तो बहुत हो सकते हैं पर उन्हें प्राप्त करना और उनका उपयोग करना बहुत ही कठिन और  खर्चीला है। फिलहाल तो माना जा रहा है कि कुछ अधिक उपयोगी संसाधनों जैसे रेयर अर्थ मैटल और हीलियम-3 को प्राप्त करने की होड़ शुरू हो सकती है। इनका विश्व इलेक्ट्रॉनिक और ऊर्जा क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण स्थान है। चांद  की मिट्टी या रेगोलिथ का दोहन जरूरी संसाधन के निकालने के लिए या इसमें बर्फ और पानी की खोज के लिए हो सकता है और इस दोहन से बहुत अवशिष्ट पदार्थ भी उत्पन्न होंगे। अनेक वैज्ञानिक मानते हैं कि चांद का उपयोग अंतरिक्ष में अधिक व्यापक गतिविधियों और  खोज के लिए तथा मंगल ग्रह तक जाने के लिए एक अड्डे या बेस की तरह हो सकता है। इसके लिए चांद की मिट्टी, गैसों और पानी तथा बर्फ की जरूरत होगी।
कुछ रणनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि मूल मुद्दा खनन नहीं है अपितु अंतरिक्ष पर नियंत्रण है। अंतरिक्ष पर जिस देश का नियंत्रण हुआ वह धरती पर अपने नियंत्रण को मजबूत करने के लिए इसका उपयोग कर सकता है। इसके सिविल क्षेत्र में अनेक लाभ हैं जैसे दूरसंचार का विस्तार, मौसम की भविष्यवाणी, जीपीएस आदि पर सैन्य उद्देश्य इससे भी अधिक महत्त्वपूर्ण माने जा रहे हैं। कुछ संदभरे में सैन्य और आर्थिक उद्देश्य आपस में मिले हुए हैं। इस वजह से विभिन्न देशों में होड़ बढ़ सकती है। अभी इस क्षेत्र में अमेरिका सबसे आगे है, पर चीन और रूस उसे चुनौती देना चाहते हैं।
इस बढ़ती होड़ के बीच इंसान को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस होड़ की जल्दबाजी में उससे भयंकर भूलें हो सकती हैं, जिनके अल्पकालीन और दीर्घकालीन परिणाम धरती और अंतरिक्ष के लिए बहुत घातक साबित हो सकते हैं। इन विभिन्न होड़ भरी कार्यवाहियों से पर्यावरण और विश्व शांति के लिए नये और बहुत ही गंभीर किस्म के खतरे उत्पन्न हो रहे हैं। विभिन्न देशों के बीच बेवजह की टकराहट के हालात बन सकते हैं, जो विश्व शांत के लिए कदापि अच्छा नहीं रहेगा। इसलिए समय रहते अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और  अमन-शांति के माहौल में इन सभी खतरों की आशंका को न्यूनतम करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समझौते होने चाहिए।

भारत डोगरा


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