अनवरत विकास की राह को सुदृढ़ बनाने के अभियान में जुटे मोदी
‘सूरज जाएगा भी तो कहां, उसे यहीं रहना होगा, यहीं हमारी सांसों में, हमारी रगों में,
अनवरत विकास की राह को सुदृढ़ बनाने के अभियान में जुटे मोदी |
हमारे संकल्पों में, हमारे रतजगों में
तुम उदास मत होओ,
अब मैं किसी भी सूरज को नहीं डूबने दूंगा।’
सात फरवरी, 2019 को संसद में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा कवि सर्वेर दयाल सक्सेना की इन पंक्तियों को उद्धृत किया जाना उनके संकल्प और अदम्य साहस को दशर्ता है। परिस्थितियां चाहे जितनी विकट हों, चुनौतियां चाहे जितनी कठिन हों उम्मीद के सूरज को न डूबने देने का संकल्प समूचे देशवासियों में कुछ उसी तरह का भाव जगाता है, जिस तरह का आह्वान पराधीन भारत में स्वामी विवेकानंद ने कठोपनिषद की इन पंक्तियों को दोहराते हुए किया था-‘उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत’। कोई भी वृक्ष आकाश में उतनी ही ऊंचाई को हासिल करता है, जितनी गहरी उसकी जड़ें जमीन में होती हैं। भारतीय परंपराओं की जमीन में गहरे जमे प्रधानमंत्री मोदी के संकल्प इस बात का बोध कराते हैं कि तमाम दुारियों से गुजरते हुए हम भारत को एक सशक्त राष्ट्र बनाने के अपने लक्ष्य में अवश्य सफल होंगे।
प्रधानमंत्री के विचारों को समग्रता में समझने के लिए हमें रेडियो पर ‘मन की बात’ श्रृंखला के तहत दिए गए उनके भाषणों को गौर से सुनना होगा। ये भाषण शोधकर्ताओं के लिए अमूल्य दस्तावेज हैं। इन संबोधनों के शब्दों से गुजरते हुए हम प्रधानमंत्री मोदी के समूचे जीवन-दशर्न की झलक पा सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने पुरानी लीक से हटकर कई नई परंपराएं स्थापित की हैं। आजादी के बाद देश में रेडियो पर प्रधानमंत्रियों के संबोधन की परंपरा जरूर रही है, लेकिन उन संबोधनों में तात्कालिक विषयवस्तु की प्रधानता रही। यदा-कदा दिए गए इन भाषणों में उन मनीषियों की कोई सुस्पष्ट विचार-सरिणी परिलक्षित नहीं होती।
वहीं प्रधानमंत्री मोदी के ‘मन की बात’ श्रृंखला के तहत दिए गए भाषण उनके वाङ्मय का पुरालेख हैं। मान्यता है कि किसी भी रचना का पहला शब्द या पहला अध्याय उसे समझने की कुंजी होता है। इन अथरे में अगर हम ‘मन की बात’ श्रृंखला के पहले भाषण को देखें तो हमें वहां प्रधानमंत्री मोदी की राजनीति, इतिहास एवं अर्थशास्त्र से जुड़ी दृष्टि के साथ-साथ उनके समूचे जीवन-दशर्न का प्रस्थान बिंदु दिखता है।
इस श्रृंखला के तहत प्रधानमंत्री मोदी का पहला भाषण तीन अक्टूबर, 2014 को प्रसारित हुआ था। विजयदशमी पर्व के दिन भाषण की शुरु आत भारतीय मिथकों एवं परंपराओं से ऊर्जा प्राप्त करने के नाभि-नाल संबंध को दशर्ती है। अपने पहले ही उद्बोधन में प्रधानमंत्री कहते हैं, ‘देश हम सबका है, सरकार का देश थोड़े न है। नागरिकों का देश है। नागरिकों का जुड़ना बहुत जरूरी है।’ ‘सहभागी लोकतंत्र’ को आम आदमी की भाषा में परिभाषित करने का इससे बेहतर उदाहरण नहीं हो सकता। देश के हर नागरिक को इस विशाल देश का भाग्य-विधाता घोषित कर प्रधानमंत्री अपने राजनीतिक दशर्न को स्पष्ट कर देते हैं। इस प्रस्थान बिंदु के बाद उनकी कार्यशैली पर विपक्षी दलों के व्यंग्य-बाण अपनी धार खो देते हैं।
सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति की चिंता
राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति की सहभागिता प्रधानमंत्री मोदी की चिंता का मुख्य बिन्दु है। उन्हें स्पष्ट तौर पर पता है कि सरकारी संस्थाएं चाहे जितनी बड़ी योजनाएं बनाएं, तमाम समाज-वैज्ञानिक अपने बौद्धिक विमशरे के जरिए चाहे जितनी बारीकी से इन योजनाओं का ताना-बाना बुनें, अगर व्यावहारिक धरातल पर इन योजनाओं से समाज में हाशिए पर खड़ा व्यक्ति खुद को नहीं जोड़ पाता तो ये तमाम योजनाएं निष्प्राण हैं, तभी वो कहते हैं, ‘आओ, हम सब मिलकर भारत माता की सेवा करें। हम देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएं, हर कोई एक कदम चले, अगर आप एक कदम चलते हैं, देश सवा सौ करोड़ कदम आगे चला जाता है’। ‘एक से अनेक’ तक की यात्रा में पीएम मोदी राष्ट्रीय पुनर्जागरण का आह्वान करते दिखते हैं। भारत को मजबूत राष्ट्र बनाने के पीएम मोदी का संकल्प उनके पहले ही उद्बोधन से साफ दिख जाता है, जो क्रमश: ‘मेक इन इंडिया’, ‘आपदा में अवसर’, ‘वोकल फॉर लोकल’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे उनके नारों में और स्पष्ट शक्ल अख्तियार करता है।
शंकालु व्यक्ति कभी दूसरे पर भरोसा नहीं करता और न दूसरे उस व्यक्ति पर विास कायम रख पाते हैं। इसके ठीक विपरीत जिसकी देश की अपार जन-शक्ति में श्रद्धा हो, विास हो, यकीन हो उसके समूचे अस्तित्व में ही जन समुदाय का आशीष समाहित होता है। यही वो हौसला है, जिसके चलते कोई कह पाता है, ‘मुझे विास है, देशवासियों को मेरे शब्दों पर भरोसा है, मेरे इरादों पर भरोसा है।’ रेडियो के जरिए व्यापक जन समूह से मन की बात कहने वाले व्यक्ति की इस जीवन-दृष्टि में इस बात की भी चिंता निहित है कि देशवासियों से उसका संवाद एकालाप बनकर न रह जाए। एकतरफा संवाद की आशंकाओं को निर्मूल साबित करने के लिए ही रेडियो की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए पीएम मोदी कहते हैं, ‘मेरे मन की बात में आपके मन की बात भी जुड़नी चाहिए। आप अगर कुछ सुझाव देंगे तो जरूर मुझ तक पहुंच जाएगा और मैं जरूर उसको गंभीरता से लूंगा क्योंकि सक्रिय नागरिक विकास की सबसे बड़ी पूंजी होता है।’
देश की विशाल बौद्धिक संपदा के बेहतर संयोजन और उससे उच्चतर लक्ष्य हासिल करने की कुंजी प्रधानमंत्री मोदी के शुरु आती संबोधनों में ही मिल जाती है, जो आगे चलकर युवाओं से ‘रोजगार की तलाश’ की बजाय ‘रोग सृजन’ के आह्वान में दिखती है। ‘इनोवेशन’ एवं ‘स्टार्टअप’ के जरिए युवा भारत को उद्यम की राह पर प्रेरित करने के पीछे प्रधानमंत्री मोदी का मंत्र मात्र एक नारा नहीं दिखता, बल्कि इसके लिए एक सुनियोजित अर्थ नीति भी दृष्टिगोचर होती है। देश में तेजी से बढ़ती युवा उद्यमियों की संख्या से साफ संकेत दिखते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में एक वैश्विक आपदा के चलते भले ही हमारे पांव डगमगाए हैं, लेकिन अनवरत विकास की जिस सुदृढ़ राह को बनाने के अपने अभियान में प्रधानमंत्री जुटे हुए हैं, उसके जरिए भारत विकसित राष्ट्रों की कतार में अपने पारंपरिक मूल्यों के साथ गर्व से खड़े होने के अपने लक्ष्य को अवश्य हासिल कर पाएगा।
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