बतंगड़ बेतुक : कौन बताए क्या सही है क्या गलत
झल्लन आते ही बोला, ‘ददाजू, हालात ने हमारे दिमाग का दही कर दिया, जो सही लगता था उसे गलत कर दिया है और जो गलत लगता था उसे सही कर दिया है।
बतंगड़ बेतुक : कौन बताए क्या सही है क्या गलत |
हम समझ नहीं पा रहे हैं कि जो गलत है वो सही है या जो सही है वो ही गलत है, हमारे उलझे हुए दिमाग के लिए यह बहुत बड़ी गफलत है।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, कोरोना ने बड़ों-बड़ों के दिमाग हिला दिये हैं, सही-गलत के फर्क मिटा दिये हैं, मौत के सवाल जिंदगी से बड़े बना दिये हैं। आदमी समझ नहीं पा रहा कि जिंदगी बचाने के लिए मौत का सामना करे या मौत से बचने के लिए जिंदगी को ही दांव पर धरे। इसलिए तेरे साथ कुछ नया नहीं हो रहा है, जो हो रहा है इस बुरे वक्त के हिसाब से हो रहा है और अकेले तेरे नहीं सबके साथ हो रहा है।’ झल्लन बोला, ‘एक बात बताइए ददाजू, ऐसे वक्त में आप अपने दिमाग का संतुलन कैसे बिठाते हैं या हमारी तरह आप भी पगला जाते हैं मगर खुद को शांत-संयमित दिखाने का ढोंग रचाते हैं?’
शायद झल्लन ने फिर हमारी एक दुखती रग को दबाया था और हम जिस सवाल का सामना करने से कतरा रहे थे उसे सीधे हमारे सामने ले आया था। हमने कहा, ‘तू सही कह रहा है झल्लन, कभी-कभी दिमागी संतुलन बिगड़ जाता है और लगता है कि आज के हालात और हाहाकार में हम भी पगला जाएंगे, फिर यह सोचकर चेहरे पर संतुलन चढ़ा लेते हैं कि पगलाकर आखिर कहां जाएंगे? पगलाने से आखिर हासिल क्या होगा, न तो हमारे डर खत्म हो जाएंगे, न जिंदगी के झंझट कम हो जाएंगे। हमें तो इस पगलैटिया माहौल में अपने दिमाग को भी बचाकर रखना है, जिंदगी के सामने जो खतरे खड़े हो गये हैं उनका भी सामना करना है।’ वह बोला, ‘पर ददाजू, कोरोना के इस कालिया माहौल में जब जिंदगी के सामने इतने बड़े खतरे खड़े हो रहे हैं और लोग इन खतरों का सामना करने को खड़े हो रहे हैं, पर ऐसे में भी उधर देखिए, नेता-अभिनेताओं के अहंकार इतने बड़े हो रहे हैं कि वे डरावने माहौल के विरुद्ध नहीं, एक-दूसरे के विरुद्ध खड़े हो रहे हैं।’ हमने कहा, ‘हम समझ रहे हैं तू किधर इशारा कर रहा है। तू जरूर झांसी की रानी और महाराष्ट्र के शेर की बात कर रहा है।’
झल्लन बोला, ‘सही पकड़े हो ददाजू, इन्हें लेकर ही तो हम भरमिया गये हैं, कौन गलत है, कौन सही है, यह सवाल हम इन्हीं को लेकर उठा रहे हैं।’ हमने कहा, ‘सुन झल्लन, बाबा तुलसी बहुत पहले कह गये हैं कि जा की रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। सो, जिसे जो सूरत सुहाती है उसे इस सूरत की हर जिद-जहालत लुभाती है, और जिसे जिसकी सूरत घिनाती है उसकी सच्ची-अच्छी बातों में भी खोट निकल आती है।’ झल्लन बोला, ‘कोई आपकी झांसी की रानी को नारी जाति का उद्धारक बता रहा है, कोई उसके बड़बोले तेवरों को मारक-प्रहारक बता रहा है तो कोई उसे दुष्टों की संहारक दुर्गा और भविष्य के चुनावों की उम्मीद बता रहा है। बहुत से ऐसे भी हैं जो उसे पानी पी-पीकर कोस रहे हैं और उसे सिर्फ एक भोंपू मीडिया की पैदाइश के तौर पर परोस रहे हैं।’
हमने कहा, ‘यही हाल तेरे शेर का भी है। कुछ कहते हैं कि शेर ने अच्छा किया जो इसके मकान पर बुलडोजर चलवा दिया। औरत होकर मदरे के खिलाफ बेलगाम बोल रही थी सो उसे उसके सही ठिकाने पर लगवा दिया। और कुछ कहते हैं कि शेर ने रानी से बेकार में पंगा लिया, उससे बेमतलब का पंगा लेकर खुद को ही नंगा किया।’ झल्लन बोला, ‘वही तो, वही तो, जो बकरी नजर आ रही थी वह शेरनी की तरह दहाड़ रही है और उधर शेर की सेना अपने बाल नोंच रही है, कपड़े फाड़ रही है।’ हमने कहा, ‘इसे राजनीतिक बौडमपन कहते हैं कि जब आप अपने शत्रु की बदजुबानी पर अपना आपा खो बैठते हैं और घर गिराने जैसा जो ओछा काम नहीं करना चाहिए था वो कर बैठते हैं। अब देख ले, क्या हो गया, रानी घर-घर की कहानी हो गयी और देखते-ही-देखते लाखों की चहेती अगले चुनाव की प्रत्याशी महारानी हो गयी।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, अफसोस की बात है कि कोरोना काल में जब चीन चढ़ाई कर रहा है, आम इंसानों की रोजी-रोटी का संकट बड़ा हो रहा है, तब लोगों को छोटी-मोटी रंजिशों पर धूल डाल देनी चाहिए और जो खुन्नस एक-दूसरे से निकालनी है वह कालिया कोरोना से निकाल लेनी चाहिए।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, इस अ-लोकतंत्र में चुनाव जीतकर कुछ लोग राजा बन जाते हैं, प्रजा में से कोई उनके विरुद्ध कुछ बोल दे तो वे सह नहीं पाते हैं, मुंह खोलने वाले को अपना अपराधी मानकर दंडित करने पर उतर आते हैं और कभी-कभी जब दांव उलटा पड़ जाता है तो मुंह की खाते हैं।’ झल्लन बोला, ‘सच कहें ददाजू, हमारे मन में कोरोना से नहीं इन टुच्चे राजनेताओं के कारण आशंका का सांप जगने लगता है, इनके रहते इस देश का क्या भविष्य होगा यह सोचकर डर लगने लगता है।’
| Tweet |