हाइपरसोनिक मिसाइल : भारत की ऊंची छलांग
बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए भारत ने हाइपरसोनिक मिसाइल तकनीक का सफलतापूर्वक परीक्षण कर लिया है, जो हवा में ध्वनि की गति से छह गुना तेज गति से दूरी तय करने में सक्षम है।
![]() हाइपरसोनिक मिसाइल : भारत की ऊंची छलांग |
अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत चौथा देश बन गया है, जिसने खुद की हाइपरसोनिक तकनीक विकसित कर ली है। इसका सफलतापूर्वक परीक्षण भी कर लिया है।
रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने ओडिशा तट के पास डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम कॉम्पलेक्स से मानवरहित स्क्रैमजेट हाइपरसोनिक स्पीड फ्लाइट का सफल परीक्षण किया। हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल प्रणाली के विकास को आगे बढ़ाने के लिए यह परीक्षण बड़ा कदम है। इस तकनीक के सफल परीक्षण के बाद ध्वनि की रफ्तार से छह गुना ज्यादा तेज चलने वाली मिसाइलें बन सकेंगी। फिलहाल भारत के पास ब्रह्मोस जैसी सुपर सोनिक मिसाइल हैं। वास्तव में स्वदेश में विकसित ‘हाइपरसोनिक प्रौद्योगिकी निदशर्क यान’ (एचएसटीडीवी) का सफल प्रायोगिक उड़ान परीक्षण बहुत महत्त्वपूर्ण है, जिससे भविष्य में लंबी दूरी तक मार करने वाली मिसाइल प्रणाली और हवाई रक्षा प्रणाली को मजबूती मिलने की उम्मीद है। एचएसटीडीवी को डीआरडीओ ने विकसित किया है, जो हाइपरसोनिक प्रणोदन प्रौद्योगिकी पर आधारित है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में यह भारत की ऊंची छलांग है क्योंकि दुश्मन इसे डिटेक्ट नहीं कर सकते। परमाणु बम की तरह ये युद्ध में गेम चेंजर हैं।
असल में हाइपरसोनिक टेक्नॉलजी डिमॉन्ट्रेटर व्हीकल को न सिर्फ हाइपरसोनिक और लॉन्ग रेंज क्रूज मिसाइल्स के व्हीकल की तरह इस्तेसमाल किया जा सकेगा, बल्कि इसके कई सिविलियन फायदे भी हैं। इससे छोटे सैटेलाइट्स को कम लागत में लॉन्च किया जा सकता है। हाइपरसोनिक टेक्नॉलजी के आधार पर भारत कुछ सालों में मिसाइल के क्षेत्र में दुनिया का ताकतवर देश भी बन सकता है। एचएसटीडीवी के परीक्षण में स्क्रैमजेट इंजन सहित लॉन्च और क्रूज वाहन के मापदंडों की निगरानी कई ट्रैकिंग राडार, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल द्वारा की गई थी। स्क्रैमजेट इंजन ने उच्च गतिशील दबाव और बहुत अधिक तापमान पर काम किया। हाइपरसोनिक वाहन के क्रूज चरण के दौरान प्रदशर्न की निगरानी के लिए बंगाल की खाड़ी में एक जहाज भी तैनात किया गया था। सभी प्रदशर्न मापदंडों ने मिशन की शानदार सफलता का संकेत दिया है। डीआरडीओ ने कहा कि यह परीक्षण भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में रखता है, जिन्होंने इस तकनीक का प्रदशर्न किया है।
भारत के पास ब्रह्मोस जैसी उन्नत, सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है जिसके दूसरे संस्करण का भी सफल परीक्षण हो चुका है। क्रूज मिसाइल उसे कहते हैं, जो कम ऊंचाई पर तेजी से उड़ान भरती है और इस तरह राडार से बची रहती है। ब्रह्मोस की विशेषता है कि इसे जमीन से, हवा से, पनडुब्बी से, युद्धपोत से यानी कहीं से भी दागा जा सकता है। मिसाइल को पारंपरिक प्रक्षेपक के अलावा उध्र्वगामी यानी र्वटकिल प्रक्षेपक से भी दागा जा सकता है। क्रूज मिसाइलों का टारगेट या तो पहले से तय रहता है, या वे लोकेट करती हैं। सेना के तीनों अंगों के लिए ब्रह्मोस मिसाइल के अलग-अलग संस्करण बनाए गए हैं। ब्रह्मोस को दुनिया की सबसे तेज सुपरसोनिक मिसाइल माना जा रहा है क्योंकि इसकी रफ्तार 2.8 मैक यानी ध्वनि की रफ्तार से लगभग तीन गुना ज्यादा है। दुश्मन की सीमा में घुसकर लक्ष्य भेदने में सक्षम ब्रह्मोस मिसाइल इसी गति से हमला करने में सक्षम है। इसकी खूबियां इसे दुनिया की सबसे तेज मारक मिसाइल बनाती है। यहां तक कि अमेरिका की टॉम हॉक मिसाइल भी इसके आगे फेल साबित होती है। भारत अब इसे दूसरे देशों को बेचने की दिशा में काम कर रहा है।
भारत के पास पृथ्वी-5 जैसी इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) भी हैं। ये वे मिसाइलें होती हैं, जिनकी रेंज कम से कम 5,500 किमी. होती है। ये अपने साथ न्यूक्लियर व अन्य पेलोड्स ले जा सकती हैं। भारत के अलावा अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, नॉर्थ कोरिया के पास ही आइसीबीएम हैं। साल 2018 में भारत ने 5,500 किमी. रेंज वाली पृथ्वी-5 का सफल टेस्ट किया था। यह मिसाइल अपने साथ न्यूलक्लियर वारहेड ले जा सकती है। इसमें दुश्मन मिसाइल को हवा में ही नष्ट करने की क्षमता है।
पिछले दिनों भारत ने किसी भी बैलेस्टिक मिसाइल हमले को बीच में ही नाकाम करने में सक्षम इंटरसेप्टर मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण किया था। मल्टी लेयर बैलेस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित करने के प्रयासों के अंतर्गत स्वदेश र्निमित सुपरसोनिक इंटरसेप्टर मिसाइल का परीक्षण हुआ था। यह मिसाइल धरती के वातावरण के 30 किमी. की ऊंचाई के दायरे में आने वाली किसी भी बैलिस्टिक मिसाइल को बीच में ही मार गिराने में सक्षम है। राडार आधारित इस प्रणाली में लक्ष्य को खोजने का कार्य उससे मिलने वाले डाटा से किया जाता है। पृथ्वी के वातावरण से मिसाइल के बाहर जाते ही हीट शील्ड निकलती है और इंफ्रारेड सीकर खुल जाता है, जिससे लक्ष्य को निशाने पर लिया जाता है। एंटी मिसाइल सिस्टम में संवेदनशील राडार की सबसे ज्यादा अहमियत है। ऐसे राडार बहुत पहले ही वायुमंडल में आए बदलाव को भांप कर आ रही मिसाइलों की पोजिशन ट्रेस कर लेते हैं। पोजिशन लोकेट होते ही गाइडेंस सिस्टम एक्टिव हो जाता है और आ रही मिसाइल की तरफ इंटरसेप्टिव मिसाइल दाग दी जाती है। इस मिसाइल का काम दुश्मन की मिसाइल को सुरक्षित ऊंचाई पर ही हवा में नष्ट करना होता है। इसे ट्रेस कर, पलटवार करने की प्रक्रिया में महज कुछ सेकेंड का ही अंतर होता है। मिसाइल कवच के बारे में पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के समय में अधिक जिक्र हुआ। रीगन ने शीतयुद्ध के समय में स्ट्रेटेजिक डिफेंस इनिशिएटिव (एसडीआई) प्रस्तावित किया। यह अंतरिक्ष आधारित हथियार प्रणाली थी, जिसके सहारे इंटरकांटीनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल (आइसीबीएम) को अंतरिक्ष में मार गिराने की बात की गई थी। लेजर लाइट से लैस इस हथियार को मीडिया ने स्टार वार का नाम दिया था। कुल मिलाकर पहले इंटरसेप्टर मिसाइल, फिर ब्रह्मोस जैसी सुपरसोनिक मिसाइल और अब हाइपर सोनिक मिसाइल के सफल परीक्षण से भारत का सामरिक रक्षा तंत्र काफी मजबूत हुआ है।
| Tweet![]() |