मीडिया : मीडिया, भीड़ और बॉलीवुड

Last Updated 23 Aug 2020 01:58:10 AM IST

महेश भट्ट की नई फिल्म ‘सड़क 2’ के ट्रेलर के वीडियो को सोशल मीडिया के 11.65 मिलियन ‘नेटनागरिकों’ (नेट भीड़) की ओर से ‘डिसलाइक्स’ मिले हैं।


मीडिया : मीडिया, भीड़ और बॉलीवुड

ट्रेलर ने ‘डिसलाइक्स’ का विश्व रिकॉर्ड ही बना दिया है। अंग्रेजी गायक जस्टिन बीबर का ‘बेबी’ गाना दो लाख ‘डिसलाइक्स’ से पीछे रह गया है।
कई फिल्म विशेषज्ञों का मानना है कि ये ‘डिसलाइक्स’ और ‘नापसंदगी’ सोशल मीडिया में सक्रिय ‘नेटनागरिकों’ की ओर से सुशांत की मृत्यु पर अर्पित ‘श्रद्धांजलि’ की तरह है। इस मानी में यह ‘श्रद्धांजलि’ कम ‘घृणांजलि’ अधिक है। यह नाराजगी इतनी अधिक रही कि हीरो संजय दत्त की गंभीर बीमारी की खबर भी हमदर्दी नहीं पैदा कर पाई। नये फिल्मी हीरो सुशांत सिंह राजपूत की रहस्यमय परिस्थितियों में असामयिक मौत न हुई होती और सोशल मीडिया से लेकर टीवी आदि द्वारा सुशांत की मौत के पीछे  ‘बॉलीवुड माफिया’ व उसके ऐलीट ग्रुपों की भाई-भतीजावादी ‘रहस्यमयी भूमिका’ की ओर इशारा न किया गया होता तो शायद ‘सड़क 2’ ‘हॉल ऑफ फेम’ में न लटकी होती।

ऐसी ही किसी ‘नाराजी’ का डर शाहरुख खान को भी है। वे भी सिंपेथी पाने के लिए कह चुके हैं कि पठान न चली तो उनका घर तक बिक जाएगा। कुछ ऐसा ही नाराज वातावरण आमिर खान की तुर्की यात्रा को लेकर बना है। हुआ यह कि वे अपनी नई फिल्म ‘लाल सिंह चड्ढा’ को फिल्माने के लिए तुर्की गए। वहां तुर्की के इस्लामी तत्ववादी, पाकिस्तानपरस्त और खुद को इस्लाम का खलीफा बताने वाले तानाशाह एर्दोगन की बेगम से मिले। इस मुलाकात की पिक्चरें  बेगम ने सोशल मीडिया में रिलीज कर दीं। जैसे ही ये  सोशल मीडिया में प्रसारित हुई वैसे ही खबर चैनलों समेत सोशल मीडिया में आमिर की धुलाई शुरू हो गई। अनेक की शिकायत रही कि तुर्की का जो चीफ भारत के दुश्मन पाकिस्तान का दोस्त है, जो धारा 370 पर भारत का विरोध व पाक की हिमायत करता रहा है, उस देश के तानाशाह की पत्नी से आमिर क्यों मिले? क्या मजबूूरी थी मिलने की? यह तो दुश्मन से हाथ मिलाना हुआ। अपने ही देश से दुश्मनी निभाना हुआ। एक टीवी चैनल की एक चरचा में एक हिंदुत्ववादी ने यह तक कहा कि हमें आमिर के बारे में सोचना होगा..आप किसी देश में फिल्म शूट करने जाते हैं तो क्या उस देश के मुखिया या उसकी पत्नी आदि से मिलते फिरते हैं। एक अन्य चर्चक ने सवाल किया कि जेम्स बांड सीरीज की तीन-तीन फिल्में तुर्की में ही शूट हो चुकी हैं लेकिन न जेम्स बांड बनने वाला एक्टर, न उसके बनाने वाले तुर्की के किसी नेता से मिलते देखे-सुने गए हैं। तब आमिर ही क्यों मिले?
कहने की जरूरत नहीं कि इस आलोचना में आलोचकों के खास तरह के ‘कट्टरतावादी धार्मिक संकेतार्थ’ साफ नजर आते हैं। ‘सड़क 2’ को लेकर भी ‘नेट नागरिकों’ या कहें ‘नेट भीड़’ ने अपने ‘देश प्रेम’ के नाम पर ऐसे ही ‘धार्मिक संकेतार्थ’ व्यक्त किए हैं। सभी चाहते हैं कि सुशांत को न्याय मिले लेकिन जिस तरह से सुशांत की मौत की जांच के बहाने बॉलीवुड की कल्चर व उसके कुछ खास निर्माता, निर्देशक व हीरोज को निशाना बनाया गया, उसके निहितार्थ शुरू में इतने साफ नहीं थे जितने अब हैं और नेटीजनों के ‘डिसलाइक्स’ की बाढ़ के बाद तो ये निहितार्थ और भी साफ हुए हैं। यह बॉलीवुड पर सोशल मीडिया का नया दबाव है। जो ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद’ अब तक दैनिक राजनीति तक सीमित था, अब सांस्कृतिक जगत के अंदर भी हस्तक्षेप करना चाहता है। इसीलिए बहुत से ‘नेट नागरिकों’ की भीड़ अपने संख्या बल से बॉलीवुड को अपनी ‘इच्छित दिशा’ में हांकना चाहती है, लेकिन ऐसा करते हुए भूल जाती है कि जिस सोशल मीडिया के बल पर ऐसा चाहती है वही सोशल मीडिया एक हद के बाद उनको ऐसा नहीं करने देगा।
उनको समझना चाहिए कि ये ‘ओटीटी’ यानी ‘ओवर द टॉप मीडिया सर्विसेज’ जैसे नेटफ्लिक्स, अमेजन, डिजे आदि की स्ट्रीम की जातीं फिल्म सीरीज का जमाना है,  जिनके मुक्त प्रसारण पर किसी एक समूह या दूसरे समूह का नियंत्रण संभव नहीं है। आप उन्हें देखें, न देखें, लेकिन उनको प्रदर्शन से रोक नहीं सकते। और इस भीड़ तंत्र से मीडिया को भी सावधान होना चाहिए क्योंकि जो आज बॉलीवुड के साथ हो रहा है, वह कल खबर चैनलों के साथ भी हो सकता है, वो भी ‘डिसलाइक्स’ का शिकार बन सकता है। इसलिए हमारा कहना है कि मीडिया न तो भीड़ बने, न भीड़ बनाए या उसे उकसाए क्योंकि ऐसी भीड़ किसी भस्मासुर से कम नहीं होती। एक दिन मीडिया के पीछे भी पड़ सकती है और मीडिया की आजादी का भी गला घोंट सकती है।

सुधीश पचौरी


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