प्लेटफार्म टिकट ? कितनी नियंत्रित होगी भीड़?
भीड़ रोकने का अगर यही सॉलिड तरीका है तो 50 की जगह 500 रुपये का प्लेटफार्म टिकट क्यों नहीं कर दिया जाए?
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इससे तो रेलवे को भारी मुनाफा भी होगा और प्लेटफार्म पर यात्रियों के अलावा कोई अन्य व्यक्ति पहुंचने की सोच भी नहीं सकेगा। साथ ही, यह कोरोना जैसी महामारी से बचने का मजबूत उपाय भी साबित हो जाएगा। देश भर के करीब 250 रेलवे स्टेशनों पर प्लेटफार्म टिकट 5 के बजाय 50 रुपये का कर दिया गया है, जिससे आम लोगों की जेब पर अतिरिक्त दबाव बढ़ जाएगा। यानी पहले से 10 गुणा इसकी कीमत बढ़ा दी गई है।
रेलवे की दलील है कि प्लेटफार्म टिकट के दाम 10 गुणा बढ़ाने से प्लेटफार्म पर भीड़ को नियंत्रित किया जा रहा है, तो क्यों नहीं इसे 100 गुणा बढ़ाकर प्लेटफार्म पर फालतू जमावड़े को पूरी तरह से खत्म किया जा सकता है? यह सच्चाई है कि अब भी बहुत ऐसे लोग हैं, जिन्हें 50 रुपये के प्लेटफार्म टिकट खरीदने में भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा। यानी उनके कोई बीमार, वृद्ध या लाचार सफर करने के लिए रेलवे स्टेशन जाएंगे तो उन्हें विदा करने के लिए वह प्लेटफार्म टिकट आसानी से खरीद लेगा, मगर किसी गरीब को अपने सगे-संबंधियों को विदा करने की बारी आएगी तो शायद गंभीर हालत में भी सबको स्टेशन के बाहर ही रुककर संतोष करना पड़ेगा। आप ही सोचिए, जो गरीब ‘पाई-पाई’ इकट्ठा करके बमुश्किल खुद को यात्रा के लिए तैयार किया होगा, वह 50 रुपये का अतिरिक्त खर्च करके प्लेटफार्म तक अपने बीमार को भला विदा कैसे कर पाएगा? क्या प्लेटफार्म टिकट को महंगा कर देने से लोगों में असमानता का भाव नहीं जागेगा? क्या यहां भी गरीब और अमीर का भेद परिलक्षित नहीं होगा? निश्चित तौर से इस टिकट के खेल से समाज में भेदभाव फिर से पनपेगा। सरकार को इस प्रकार के कोई भी निर्णय लेने से पहले सामाजिक समानता का ख्याल भी रखना चाहिए। एक तो आम आदमी की जेब पर 50 रुपये की छिपी हुई बोझ डाल रहे हैं, दूसरे उनमें छोटे-बड़े होने का भेद-भाव भी पनपा रहे हैं। यह न्यायोचित नहीं है। सरकार को निम्न एवं मध्यम वर्गीय देश के करोड़ों यात्रियों का ख्याल रखना चाहिए, न कि उनसे करोड़ों, अरबों रुपये के प्लेटफार्म टिकट बेचने के बहाने अपनी पीठ थपथपानी चाहिए।
नि:संदेह प्लेटफार्म टिकट महंगे कर देने के बाद रेलवे को राजस्व का बड़ा मुनाफा होगा। मगर इस कमाई से अमीर-गरीब की खाई भी उतनी ही बढ़ेगी। जिस प्रकार रेलवे के लगतार निजीकरण की बात हो रही है, ऐसा लगता है कि आने वाले दिनों में देश की सस्ती और पुरानी आवागमन के यह साधन भी गरीबों के लिए दुर्लभ होने वाली है। सरकार साधारण यात्री टिकटों या प्लेटफार्म टिकटों पर किसी प्रकार की बढ़ोतरी करती है तो यह आम लोगों के हक में अच्छा नहीं होगा। रेलवे चाहे तो प्लेटफार्म टिकट के दाम बढ़ाए बगैर भीड़ को नियंत्रित कर सकती है। रेलवे के सुरक्षाकर्मी, टीटीई और गैर आरक्षित टिकट वालों के अनाधिकृत तरीके से ट्रेनों में सफर करने पर नियंत्रण करने से ऐसा संभव हो सकता है। इसके लिए कई सारे नियम-कानून बनाए हुए हैं, जिनका ईमानदारी से पालन किया जाए तो शायद प्लेटफार्म की भीड़ को नियंत्रित किया जा सकता है। अगर एक व्यक्ति को छोड़ने 5 सक्षम व्यक्ति प्लेटफार्म के अंदर जा रहे हैं तो क्या यह अनुचित नहीं है? इसलिए रेलवे चाहे तो यात्री की टिकट में ही उन्हें प्लेटफार्म पर छोड़ने वालों की संख्या भी दर्ज करवानी चाहिए या फिर ऐसा नियम होना चाहिए कि प्लेटफार्म के बाहर तक ही आम लोगों का प्रवेश संभव हो सके।
भीतर ट्रेन में बिठाने और सीट तक ले जाने की व्यवस्था रेलवे के अधिकृत कर्मचारी ही करें। इससे सुरक्षा व्यवस्था भी मुकम्मल होगी। सोशल मीडिया में इस मुद्दे पर बेवजह कोई हल्ला नहीं मचा। लोगों ने वास्तविक सवाल उठाए हैं। पुणो डिविजन में प्लेटफार्म टिकट महंगा कर 50 रुपये कर दिए जाने पर यह बवेला मचा। मगर रेलवे द्वारा केवल इतनी सफाई देना कि, कोरोना महामारी के दौरान प्लेटफार्म पर भीड़ को रोकने के लिए टिकट की कीमत बढ़ाने का फैसला किया गया है। असल में, यह रेलवे के एक बहुत बड़े महकमे के लचर, लापरवाही और उदासीन सोच को दर्शाता है। इससे इतर रेलवे को अपनी सुविधाओं, शिष्टाचार और कर्तव्यबोध पर जागरूक होना चाहिए, जिसकी आज बहुत जरूरत है।
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