बतंगड़ बेतुक : आस्था-अनास्था के अपने-अपने भविभूत
झल्लन हमारे पास आया और आते ही अपना सवाल सरकाया, ‘तो बताइए ददाजू, आस्था और अनास्था को हम पहले से ही पहचानते थे, इनमें गहरी दुश्मनी है यह भी पक्के तौर पर मानते थे, पर ये दोनों एक पति को ब्याही सौतन हैं यह नहीं जानते थे।
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आप कह रहे हैं कि भविभूत इनका पति है जो इन्हें आपस में लड़ा रहा है, बस, इस लफंदड़ भविभूत का लफड़ा समझ में नहीं आ रहा है।’ हमने अपनी मुद्रा फिर दार्शनिक बनायी और भविभूत को लेकर हमारी जो समझ बनी थी वह हमने झल्लन को समझाई, ‘देख झल्लन, भविष्य क्या होता है यह तुझे भी पता होगा क्योंकि सबको पता होता है।’ झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, क्या कहते हो, हम भविष्य का मतलब नहीं जानेंगे यह सोच भी कैसे लेते हो? यहां हम अपने और देश के भविष्य को लेकर हलकान हुए जाते हैं, अगर हमें कुछ डराता है तो भविष्य के डर ही डराते हैं।’ हमने कहा, ‘तूने सही पकड़ लिया झल्लन, जिस भविष्य को लेकर तू परेशान है हम उसी की बात उठा रहे हैं। अब बता, तू भूत के बारे में क्या जानता है और जानता है तो कैसे जानता है?’ वह बोला, ‘यह प्रेत का भाई होता है और इस भूत की कहानियां हम बचपन से ही सुनते आये हैं, यह दीगर बात है कि बहुत कोशिश करने के बावजूद अब तक किसी भूत से मुलाकात नहीं कर पाये हैं।’ हमने कहा, ‘तेरे इस प्रेत भाई भूत के अलावा भी एक भूत होता है जो हमारे साथ जगता है, हमारे साथ सोता है।’ झल्लन बोला, ‘अच्छा तो आप उसकी बात कर रहे हैं जो बीत जाता है तो भूत हो जाता है, जिसे कभी-कभी अतीत कहा जाता है और जो वक्त के पैमाने पर इतिहास हो जाता है?’ हम बोले, ‘तू तो समझदार हो गया है झल्लन, तुरत तह तक पहुंच जाता है, मुद्दे पर सटीक सरक आता है।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, हम तो मुद्दे पर आ रहे हैं पर आप मुद्दे को बार-बार क्यों खिसका रहे हैं, अपने भविभूत को क्यों नहीं सामने ला रहे हैं?’
हमने कहा, ‘जो बात तुझे बताई उसके बिना बात अधूरी थी, इसलिए पूरी बात जरूरी थी। अब हम मुद्दे पर आते हैं और जो हम समझे हैं वो तुझे समझाते हैं। भविष्य शब्द से हमने भवि उठा लिया है और फिर भूत के साथ इसका गठजोड़ करा दिया है।’ झल्लन बोला, ‘चलिए, पद की व्युत्पत्ति तो समझ गये लेकिन आपके ये भविभूत आस्था और अनास्था के पति कब बन गये?’ हमने कहा, ‘हां, हम वहीं आ रहे हैं, तुझे यही बता रहे हैं। इंसान अपने दुख-सुख के साथ असली जिंदगी तो वर्ततान में जीता रहता है लेकिन जब अज्ञात भविष्य की कल्पना करता है तो इस कल्पना की जड़ में भूत को बनाए रखता है।’ झल्लन बोला, ‘पूरी तरह नहीं समझे ददाजू, माफ करिए, मुद्दे को थोड़ा और साफ करिए।’ हमने कहा, ‘तो सुन, आस्था के चेले-चांकुर जो आस्थावादी होते हैं उनके साथ उनका इतिहास, धर्म, मजहब, कर्मकांड, रीति-रिवाज जैसी भूत की चीजें जुड़ी होती हैं, ये उनके दिल-दिमाग में गहरे गढ़ी होती हैं। जब वे भविष्य के बारे में सोचते हैं तो सोचते हैं कि उनका भविष्य इन्हीं पर टिकेगा और अगर बेहतर बनेगा तो इन्हीं की बिना पर बनेगा। उधर जो अनास्था के चेले-चांकुर होते हैं वे मानते हैं कि भविष्य आस्था से नहीं विवेक-विचार से सुधरेगा, उसी से आगे इंसान का जीवन संवरेगा। दोनों के पास भविष्य की कोई साफ तस्वीर नहीं होती परंतु वे इसे भूत से जोड़कर अपनी-अपनी तरह से लुभावनी बनाते रहते हैं और अपनी ही तस्वीर को सुहावनी बताते रहते हैं। इसलिए भूत और भविष्य के मिलन का यह दिमागी फितूर ही भाव भविभूत होता है जिससे हर इंसानी दिमाग अभिभूत रहता है। इस भविभूत से आस्था और अनास्था दोनों चिपकी रहती हैं और इसे अपनी-अपनी रुचि के रंग-रूप देने में जुटी रहती हैं। दोनों ही भविभूत को अपने-अपने रूप-रंग में ढालती हैं और एक-दूसरे के रंग-रूप को निहायत ही गलत मानती हैं। आस्था जब भविभूत की अपनी छवि प्रस्तुत करती है तो उसे अनास्था नकार देती है और अनास्था जो तस्वीर बनाती है उसे आस्था फिटकार देती है। दोनों एक-दूसरे से पंगे के लिए कमर कस लेती हैं और जब पंगा कम पड़ जाता है तो दंगा कर देती हैं।’
झल्लन बोला, ‘तो ददाजू, आपका भविभूत सोचता होगा कि ये दोनों बीवियां न चैन से जीती हैं न जीने देती हैं, उसकी जान लिये लेती हैं।’ हमने कहा, ‘भविभूत क्यों परेशान होगा, इन दोनों बीवियों के झगड़े में उसे क्या मान-अभिमान होगा। वह तो दरअसल तेरे प्रेत वाला भूत ही होता है जो होता कहीं नहीं, बस सबके दिमागों में ठोर बनाए रखता है और गाहे-बगाहे उन्हें डराए रहता है। वह तो मजे लेता रहता है और हमेशा पंगमपंग रहने वाली बीवियों की भवभूति या भवभूतियापन का तमाशा देखता रहता है।’ झल्लन बोला, ‘पर ददाजू, सबसे ज्यादा पंगे-दंगे तो आस्था के चेले-चांकुर करते रहते हैं, वे ही आपस में लड़ते-मरते रहते हैं।’
हमने कहा, ‘वह एक अलग किस्सा है उसके बारे में कभी आगे बताएंगे, फिलहाल तो हम यहीं विराम लगाएंगे।’
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