सरोकार : उगांडा का भी खर्च भारत से ज्यादा
उगांडा के स्वास्थ्य अधिकार कार्यकर्ता इन दिनों खुश हैं। वहां की अदालत ने ऐतिहासिक फैसले में सरकार को निर्देश दिए हैं कि अपने स्वास्थ्य बजट में इजाफा करे ताकि महिलाओं को अच्छी मातृत्व स्वास्थ्य सेवाएं मिल सकें। 2011 में उगांडा के एक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में प्रसव के दौरान दो महिलाओं की मौत हो गई थी।
![]() सरोकार : उगांडा का भी खर्च भारत से ज्यादा |
इसके बाद एक्टिविस्ट्स ने इन महिलाओं के परिवारों के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट में मामला दायर किया। उनका कहना था कि सरकार अपने नागरिकों को अच्छी स्वास्थ्य सेवा न दे पाए तो उसे क्यों न जिम्मेदार ठहराया जाए। इस संबंध में पिछले हफ्ते अदालत ने फैसला सुनाया। पांच जजों के पैनल ने एकमत से कहा कि सरकार को अगले दो वित्तीय वर्षो के बजट में मातृत्व स्वास्थ्य सेवाओं को वरीयता देनी चाहिए।
उगांडा सरकार ने इस साल अपने बजट में स्वास्थ्य के लिए 6 फीसद का आवंटन किया है। उगांडा अबुजा घोषणापत्र का हस्ताक्षरकर्ता है। अफ्रीकी संघ के देशों ने 2001 में इस घोषणापत्र को मंजूर किया था, जिसमें सभी सरकारों से अपेक्षा है कि अपने वार्षिक बजट का कम से कम 15 फीसद हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च करेंगी। अदालत ने कहा कि 2011 में प्रसव के दौरान महिलाओं की मौत की वजह सिर्फ यह थी कि कर्मचारी लापरवाह थे और स्वास्थ्य केंद्र में बुनियादी सुविधाएं नहीं थीं। विश्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि उगांडा में हर एक लाख जीवित शिशुओं पर मातृ मृत्यु दर 375 है। ये मौतें गर्भावस्था और प्रसव से जुड़ी समस्याओं के कारण होती हैं। स्वास्थ्य सुविधा नागरिक अधिकार का मामला है।
यहां उगांडा से भारत की तुलना कर सकते हैं। 2008-09 और 2019-20 के बीच कुल मिलाकर भारत का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय (केंद्र और राज्यों का कुल व्यय) जीडीपी के 1.2 फीसद से 1.6 फीसद के बीच रहा है। यह व्यय चीन (3.2 फीसद), यूएसए (8.5 फीसद) और जर्मनी (9.4 फीसद) जैसे अन्य देशों की तुलना में अपेक्षाकृत कम है। 2020-21 में स्वास्थ्य मंत्रालय को 67,112 करोड़ रु पये आवंटित किए गए हैं, जो 2019-20 के संशोधित अनुमानों की तुलना में 3.9 फीसद अधिक हैं। भारत में बच्चियों के जन्म के साथ लैंगिक भेदभाव शुरू हो जाता है। यह ताउम्र चलता है। बीएमजे ओपन एक्सेस नाम के जरनल में कहा गया है कि नई दिल्ली के एम्स में महिलाओं से ज्यादा पुरु ष मरीज मेडिकल सलाह के लिए आते हैं। द लैंसेट ने मई, 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा है कि कोविड-19 का मातृ मृत्यु और बाल मृत्यु दर पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। उसके अनुसार भारत में छह महीनों में 14 हजार से अधिक महिलाओं की प्रसव पूर्व या इसके दौरान मृत्यु हो सकती है। हालांकि वित्त मंत्री द्वारा घोषित 20.97 लाख करोड़ के आत्मनिर्भर पैकेज में कुपोषण और मातृत्व स्वास्थ्य के लिए एक रु पये का भी आवंटन नहीं किया गया है।
जॉन हॉप्किंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ (अमेरिका) के एक अध्ययन के मुताबिक भारत में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी बड़ी समस्या है। उसका अनुमान है कि भारत में गर्भावस्था के दौरान आयरन-फॉलिक एसिड की गोलियों की महिलाओं तक पहुंच 38.8 से घटकर 18.7 फीसद हो जाएगी। फिलहाल सरकार लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र को 18 साल से बढ़ाकर 21 साल करने पर विचार कर रही है और इसी के जरिए वह मातृ मृत्यु दर को कम करना चाहती है पर स्वास्थ्य क्षेत्र पर सीधे खर्च करने की इच्छुक नहीं है।
| Tweet![]() |