बतंगड़ बेतुक : भविभूत की दो झगड़ालू बीवियां
आज झल्लन दिखने में गंभीर था, वैसे तो वह बहुत सुधीर था मगर जब उसने अपनी बात कही तो लगा वह बहुत अधीर था, ‘ददाजू, ये तर्कवादी इतने अनास्थावादी क्यों होते हैं, आस्था को लेकर इतने निराशावादी क्यों होते हैं और जब भी आस्था अपना असर दिखाती है तो ये जार-जार क्यों रोते हैं?’
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वैसे तो झल्लन कहीं से कोई भी दर्शन उठा लाता था, छोटी सी बात को बड़ा सवाल भी बना लाता था और दिमाग के जिन कोने अंतरों में अच्छे-अच्छे नहीं जाते थे वह वहां भी चला जाता था। उसकी बातों पर कभी हम हंस लिया करते थे, कुछ सही सा सूझता तो कह दिया करते थे अन्यथा उसकी बात मजाक में टाल कर खुद टहल लिया करते थे, लेकिन आज झल्लन जो सवाल लाया था उसने हमें भी बहुत भरमाया था और कभी हमने इस सवाल को घुमाया था तो कभी इस सवाल ने ही हमें बहुत चकराया था। आस्था-अनास्था के प्रश्न पर हम पहले भी चिंतन कर चुके थे और चिंतन करके थक चुके थे, सो हमने झल्लन के सवाल को हल्के में लिया और उसका बहुत हल्के में उत्तर दिया, कहा, ‘देख झल्लन, आस्थावादी और अनास्थावादी दोनों ही एक ही थैली के चट्टे-बट्टे होते हैं और अपनी-अपनी तई दोनों ही हट्टे-कट्टे होते हैं, इनका दिमाग उल्लू होता है और ये उसके पट्ठे होते हैं।’
झल्लन बोला, ‘क्या ददाजू, आप एक गंभीर सवाल को मजाक में टाल रहे हैं, यह अच्छी बात नहीं है कि हमारे गहन दार्शनिक द्वंद्व पर अपनी उपेक्षा का पर्दा डाल रहे हैं। पर ददाजू, याद रखिए और ध्यान में रखिए कि आस्था और अनास्था का प्रश्न बहुत बड़ा है और अपने उत्तर की तलाश में न जाने कितने विद्वानों-विचारकों के चक्कर काटकर अब आपके समक्ष खड़ा है।’ हमने कहा, ‘सुन भाई, हमारी समझ से ये दोनों सौत हैं जो एक ही घर में रहती हैं, दोनों अपनी मनमर्जी का काम करती हैं, अपनी-अपनी रुचि की चीज लिखती-पढ़ती-सुनती-कहती हैं मगर एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहातीं सो आपस में हमेशा लड़ती-झगड़ती हैं।’ झल्लन बोला, ‘भले सौतन हों पर प्यार से भी तो रह सकती हैं, काहे दिन-रात लड़ती-झगड़ती हैं?’ पहले हम थोड़ा मुस्कुराए फिर अपनी बात आगे बढ़ाए, ‘तू बता, सौतों की लड़ाई किसलिए होती है? दोनों को खाने को रोटी मिलती है, पहनने को कपड़े मिलते हैं, रहने को छत मिलती है। इनके अलावा जो इनकी और भी कुदरती जरूरतें होती हैं वे भी पूरी होती रहती हैं तो सोच फिर काहे इनमें जंग चलती रहती है?’ झल्लन ने हम पर सवालिया नजर टिकाई और अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘देखिए ददाजू, सौतें तो अधिकार की लड़ाई लड़ती हैं, उनमें ईष्र्या होती है इसलिए हमेशा एक-दूसरे पर चढ़ाई करती हैं और उनका मियां उन पर ज्यादा ध्यान दे, मियां उनकी ही सुने और उनकी ही पकड़ में रहे इसकी जुगाड़ में लगी रहती हैं।’ हमने कहा, ‘सही पकड़ बनायी झल्लन, सही बात सुनाई। बस, आस्था और अनास्था का झगड़ा भी ऐसा ही है, अब बात तेरी समझ में आयी?’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, आपकी बात मान लें, आप जो कह रहे हैं उसको यथावत जान लें तो फिर आस्था-अनास्था इन दो सौतों का पति कौन हुआ जिस पर कब्जे के लिए ये कलह किये रहती हैं और एक-दूसरे से पंगे लिये रहती हैं?’ हमने कहा, ‘सही सवाल उठाया है झल्लन, हमारे पास जो उत्तर है वही तुझे बताते हैं और हमारी जो समझ है उसकी बिना पर ही तुझे समझाते हैं। अगर आस्था और अनास्था सौतें हैं तो जाहिर है कि बिना पति के ये सौत नहीं हो सकतीं और बिना एक पति के एक छत के नीचे नहीं सो सकतीं।’ झल्लन बोला, ‘पर ददाजू, वह पति कौन है जिसके लिए ये जंग चलाए रहती हैं, अपने भीतर ईष्र्या की आग जलाए रहती हैं और जिस पर कब्जे की खातिर ये द्वंद्व मचाए रखती हैं?’ हमने कहा, ‘इनका ये पति भविभूत होता है जो अपनी दोनों बीवियों को फुक्क पर चढ़ाए रहता है और दोनों को आपस में भिड़ाए रखता है।’ झल्लन बोला, ‘भविभूत, ये क्या होता है? इसकी शक्ल-सूरत क्या होती है, कहां रहता है और क्या करता है?’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, जिस तरह से आस्था-अनास्था का कोई एक रंग-रूप नहीं होता और जिस तरह ये नये-नये रूप-रंग, बनाव-श्रृंगार के साथ इंसानी दिमाग में ठनकती-ठुमकती हैं उसी तरह भविभूत का भी कोई निश्चित रूप-रंग नहीं होता, इसकी ठवन भी बहती-बदलती रहती है। यह हर इंसानी दिमाग में बसेरा करता है, वहीं इसकी रात होती है और वहीं अपना सवेरा करता है।’
झल्लन बोला, ‘तो आपका कहना हुआ कि आस्था-अनास्था और भविभूत इंसानी दिमाग के बाशिंदे हैं और इंसानी दिमाग के ही कारिंदे हैं?’ हमने कहा, ‘बात इसकी उल्टी है। ये इंसानी दिमाग के बाशिंदे जरूर होते हैं लेकिन उसके कारिंदे नहीं होते, इंसानी दिमाग ही इनका कारिंदा होता है और बिना इनके दिशा-निर्देश के दिमाग के काम पूरे नहीं होते।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, अपने भविभूत का कोई ऐसा स्पष्ट सा नक्शा बनाएंगे, इसके बारे में कुछ और बताएंगे, जिससे कुछ पल्ले पड़े, ऐसा कुछ और समझाएंगे?’ हमने कहा, ‘जरूर बताएंगे, जरूर समझाएंगे पर आगे जो समझाएंगे अगली बैठकी में समझाएंगे।’
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