वैश्विकी : करवट लेता इतिहास

Last Updated 16 Aug 2020 12:21:03 AM IST

अमेरिका की पहल पर इजरायल और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच हुए समझौते में पूरे अरब और इस्लामी जगत में हलचल मचा पैदा कर दी है।


वैश्विकी : करवट लेता इतिहास

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे ऐतिहासिक शांति समझौता करार दिया है। वहीं फिलीस्तीन के नेताओं ने इस समझौते को विासघात की संज्ञा दी है। कूटनीतिक हलकों में यह सवाल उठाया जा रहा है कि क्या स्वतंत्र राज्य फिलीस्तीन का सपना हमेशा के लिए समाप्त हो गया है। मुस्लिम देशों में यह आत्मलोचन चल रहा है कि किसी बिरादर मुस्लिम देश की मदद करने में वह स्वयं को असहाय महसूस क्यों कर रहा है। फिलहाल यूएई और इजरायल के बीच यह सहमति बनी है कि वे पूर्ण कूटनीतिक संबंधों की स्थापना करेंगे। एक-दूसरे के यहां दूतावास खोले जाएंगे। साथ ही पर्यटन और व्यापार निवेश में वृद्धि के लिए कदम उठाए जाएंगे।
यूएई तीसरा अरब देश है जिसने इजरायल के साथ राजनयिक संबंधों की स्थापना की है। वर्ष 1979 में मिस्र और वर्ष 1994 में जार्डन ने यहूदी देश के साथ कूटनीतिक संबंधों की स्थापना की थी।  यूएई की स्थिति इसलिए भिन्न है वह मिस्र और जार्डन की तरह इजरायल का पड़ोसी देश नहीं है। यूएई को पश्चिम एशिया में जारी सैन्य संघर्ष और हिंसा का सामना नहीं करना पड़ा है, इसके बावजूद उसका इजरायल के साथ संबंध स्थापित करना पश्चिम एशिया में उभर रहे नये शक्ति समीकरण की ओर इशारा कर रहा है। कुछ विश्लेषकों के अनुसार यूएई का यह फैसला पश्चिम एशिया को इजरायल बनाम अरब जगत की बजाय सुन्नी बनाम शिया समुदायों और राष्ट्रों केंिहतों की लड़ाई में बदल दिया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस समझौते को अब्राहम समझौते की संज्ञा दी है। दुनिया के तीन प्रमुख धर्म यहूदी, ईसाई और मुस्लिम अपनी उत्पत्ति अब्राहम के साथ जोड़ते हैं। अब्राहम समझौते के जरिये ट्रंप यहूदियों, ईसाइयों और मुस्लिमों के बीच शांति और सद्भाव पैदा करने की आशा कर रहे हैं। इस समझौते में कितनी ईमानदारी है, इसे लेकर फिलीस्तीनी लोगों में पहले से व्याप्त शंका अब एक स्थायी भाव में बदल गया है। यह समझौता मुस्लिम जगत के लिए यह संकेत भी है कि बदले हुए हालात में उन्हें अपना रुख बदलना चाहिए और शांति के लिए सीधे प्रयास करना चाहिए।
राष्ट्रपति ट्रंप, यूएई के शासक और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू तीनों इसे अपनी जीत बता रहे हैं। चुनाव वर्ष में राष्ट्रपति ट्रंप इसे मतदाताओं के सामने अपनी उपलिब्ध के रूप में पेश करेंगे। उन्होंने अमेरिका के प्रभावशाली यहूदी समुदाय को यह संदेश दिया है कि वह इजरायल के सच्चे दोस्त हैं तथा इजरायल की सुरक्षा और हितों की रक्षा के लिए कोई कसर बाकी नहीं छोड़ेंगे। इस समझौते में ट्रंप के दामाद कुशनर ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उसने पश्चिम एशिया के उद्योग व्यापार जगत और अन्य प्रभावशाली लोगों से निरंतर संपर्क कायम रखा तथा यूएई को समझौते के लिए राजी किया। नवम्बर में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले ट्रंप के समर्थक उन्हें शांति के लिए नोबल पुरस्कार देने की मांग भी कर रहे हैं।
यूएई के शासक फिलीस्तीन और अरब जगत को यह भरोसा दिला रहे हैं कि इस समझौते से इजरायल को अतिरिक्त फिलीस्तीनी क्षेत्र हड़पने से रोका जा सकेगा। इजरायल ने हाल के वर्षो में पश्चिमी किनारे के फिलीस्तीनी इलाकों पर यहूदी बस्तियां स्थापित करने का काम बहुत तेजी से किया है। इजरायल की इस अवैध गतिविधि को रोकने में अंतरराष्ट्रीय बिरादरी और फिलीस्तीनी प्रतिरोध नाकामयाब रहे हैं। यूएई का दावा है कि इजरायल अब नये क्षेत्रों में बस्तियां स्थापित नहीं करेगा। जहां तक नेतन्याहू का सवाल है उन्होंने समझौते के तुरंत बाद कहा कि यहूदी बस्तियां बसाने का काम केवल स्थगित किया गया है। इजरायल फिलीस्तीनी क्षेत्रों पर बस्तियां स्थापित करने का अधिकार रखता है।
भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नेतन्याहू देश के लोगों के सामने यह दावा कर सकते हैं कि इजरायल को हितों से समझौते किए बिना देश का कूटनीतिक अलगाव खत्म किया है। भारत ने इस समझौते का स्वागत किया है और अपने पुराने रुख को दोहराया है कि वह पश्चिमी एशिया में द्विराष्ट्र समाधान (इजरायल और फिलीस्तीन) का हमेशा पक्षधर रहा है। इस समाधान में ही फिलीस्तिनियों का स्वतंत्र संपन्न देश बनेगा, जो इजरायल के साथ शंति व सद्भाव के साथ रह सकेगा।

डॉ. दिलीप चौबे


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