गंगा : लॉकडाउन में कितनी स्वच्छ हुई?

Last Updated 28 Jul 2020 12:27:25 AM IST

मोक्षदायिनी गंगा गौमुख से चलकर 2550 किमी दूर गंगा सागर में मिल जाती है। वहां गंगा का ऐसा अनुपम दृश्य है कि समुद्र के बीच लगभग 500 मीटर दूर तक गंगा लहर देखने को मिलती है।


गंगा : लॉकडाउन में कितनी स्वच्छ हुई?

गंगा अवतरण की कहानी लोग ध्यान से सुनते हैं, लेकिन उस समय भी धरती पुत्र के रूप में जन्मे मानवों ने कुछ ऐसा किया है कि उनकी आत्मा को स्वर्ग में स्थापित करने के लिए भगीरथ के प्रयास ने ही मोक्ष दिलाया है।
गंगा का स्रोत हिमालय में है। जहां से गंगा विशुद्ध रूप में केवल आंखो से देखी जा सकती है, लेकिन आधुनिक विकास के नाम पर हो रहे भारी निर्माण कार्य से उसकी जैव विविधता खतरे में पड़ गई है। इसके दुष्परिणामों को जानते हुए भी चंद समय की सुख-सुविधाओं के लिए गंगा की छाती पर सुरंग बांध, सड़क का मलबा, पेड़ों का कटान, दुर्लभ वन्य प्रजातियों का शिकार, क्षमता से अधिक मनुष्यों की आवाजाही और कूड़े के ढेर बेहिचक नदियों में डाले जाते हैं। फिर कोई आकर सांकेतिक रूप में इसकी सफाई करते हुए अपनी फोटो फेसबुक व अन्य सोशल मीडिया एप पर डाल देते हैं। दूसरे दिन पता चलता है कि जो कूड़े का ढेर और मलबा एक किनारे पर एकत्रित हुआ था; वह थोड़ी दूर आगे ले जाकर गंगा में ही विसर्जित कर दिया गया है। वर्तमान में दुनिया में आई महामारियों की तरह कोविड-19 ने भारत में अपने पैर पसार दिए हैं।

मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। लोग 24 मार्च  से अब तक 4 लॉकडाउन पूरे कर चुके हैं, इसके बाद अनलॉक-1 जून से प्रारम्भ हो गया है। कई लोगों ने बयान दिया है कि लॉकडाउन चलता रहे तो गंगा साफ हो जाएगी, लेकिन इस दौरान गंगा कितनी साफ हुई यह जानना जरूरी है। उत्तराखंड की बात कहूं तो गंगा और इसकी सहायक नदियों के किनारे से भारी निर्माण कार्यों से निकला लाखों टन मलबा गंगा में बेहिचक डाला गया है। निर्माण कार्य में लगे मजदूरों के पास शौचालय की सुविधा नहीं है। उत्तरकाशी शहर में लॉकडाउन के दौरान शौचालय गड्ढों में जमा हुए मलमूत्र को गंगा में उड़ेला गया था। इसकी फोटो और वीडियो ‘गंगा विचार मंच से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता लेकेंद्र बिष्ट ने सोशल मीडिया पर डाली, जिसमें देखा गया कि भागीरथी का रंग घंटों तक मलमूत्र के जैसे दिखाई दिया है, जो आगे मनेरी भाली के बैराज में इकत्रित हुआ, और इसको साफ करने के लिए बांध का गेट खोलकर आगे बहाया गया। इसके बाद यहां जिलाधिकारी की अध्यक्षता में बैठक हुई, जिसमें आदेश दिया गया कि भागीरथी में गिर रहे गंदे नाले व सीवर की निकासी रोकी जाए। अच्छे संकेत यह भी है कि गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डीएस मलिक के 12 अप्रैल से 15 मई 2020 के बीच किए गए एक शोध के मुताबिक गंगा में ऑक्सीजन की मात्रा 20 प्रतिशत बढ़ी है। इनका दावा है कि हरकीपैड़ी, पशुलोक बैराज में बड़ी मात्रा में महाशीर मछलियां दिखाई दी है। बिजनौर बैराज के पास डाल्फिन भी देखे गए हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल के कारखानों की गंदगी भी इस बीच रुकी है, जिससे प्रदूषण फैलाने वाले बैक्टीरिया भी कम हुए हैं। इसका सीधा अर्थ कि मानवीय गतिविधियों के कारण गंगा मैली हो रही है। अरुणाचल प्रदेश के दिबांग घाटी घनी जैव विविधता के लिए मशहूर है। यहां पर भी जलविद्युत परियोजनाओं के लिए पौने तीन लाख से अधिक हरे पेड़ों को काटने की स्वीकृति दी जा रही है। इस घाटी में लगभग 1150 हेक्टेयर वन भूमि खत्म हो जाएगी। यहां आसपास के दो दर्जन गांव में रहने वाले लगभग 14 हजार आदिवासी बे-जमीन हो जाएंगे। यह क्षेत्र भूकम्प और बाढ़ के लिए संवेदनशील है।
लॉकडाउन के समय लोगों ने जो भी कचरा बनाया है वह जैसे के तैसे गंगा में विसर्जित हुआ है। इस दौरान सफाईकर्मियों ने अपने को संक्रमण से बचाना था, इसलिए जगह-2 गंदगी के ढेरों को गंगा में ही डाला गया है। यह इसलिए भी हुआ कि गंगा के किनारे बसे हुए शहरों व गांव के पास अपना कोई कूड़ा फेंकने का जगह ही नहीं है। इसलिए सार्वजनिक स्थान जो मीटिंग व रामलीला के उपयोग में आते हैं, इनमें लम्बे समय तक कूड़े को जमा किया जाता रहा है। यह स्थिति अभी कई स्थानों पर बरकार है। लॉकडाउन के दौरान पहाड़ों में बारिश बहुत हुई है। इसलिए इस समय जंगल आग से बच गए है, लेकिन प्रथम लॉकडाउन तक गंगा के किनारे वनों का कटान बहुत तेजी से चल रहा था और खनन  भी चलता रहा है। लॉकडाउन का सबक यह है कि घरों में मानवबंदी के कारण शहरों में कचरा पैदा करने वाले कारखाने भी बंद रहे हैं। अब इससे सबक लिया जाना चाहिए कि गंगा सफाई के लिए बजट आवंटन की जगह प्रदूषण फैलाने वाले कारखानों पर भविष्य में नियंत्रण करना होगा।

सुरेश भाई


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment