पद्मनाभ स्वामी मंदिर : अदालत ने बचाई गरिमा
पिछले हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने तिरुवनंतपुरम के विश्वविख्यात पद्मनाभ स्वामी मंदिर की गरिमा बचा दी।
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विश्व के सबसे बड़े खजाने का स्वामी यह मंदिर पिछले 10 वर्षो से पूरी दुनिया के लिए कौतूहल बना हुआ था। क्योंकि इसके लॉकरों में कई लाख करोड़ रुपये के हीरे-जवाहरात और सोना-चांदी रखा है।
पिछले 2500 वर्षो से जो कुछ चढ़ावा या धन यहां आया; उसे त्रावणकोर के राज परिवार ने भगवान की सम्पत्ति मान कर संरक्षित रखा। उसका कोई दुरुपयोग निजी लाभ के लिए नहीं किया, जबकि दूसरी तरफ केरल की साम्यवादी सरकार इस बेशुमार दौलत से केरल के गरीब लोगों के लिए स्कूल, अस्पताल आदि की व्यवस्था करना चाहती थी। इसलिए उसने इसके अधिग्रहण का प्रयास किया। चूंकि यह मंदिर त्रावणकोर रियासत के राजपरिवार का है, जिसके पारिवारिक ट्रस्ट की सम्पत्ति यह मंदिर है। उनका कहना था कि इस सम्पत्ति पर केवल ट्रस्टियों का हक है और किसी भी बाहरी व्यक्ति को इसके विषय में निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है। राजपरिवार के समर्थन में खड़े लोग यह कहने में नहीं झिझकते कि इस राजपरिवार ने भगवान की सम्पत्ति की धूल तक अपने प्रयोग के लिए नहीं ली। ये नित्य पूजन के बाद, जब मंदिर की देहरी से बाहर निकलते हैं, तो एक पारंपरिक लकड़ी से अपने पैर रगड़ते हैं, ताकि मंदिर की धूल मंदिर में ही रह जाए। इन लोगों का कहना है कि भगवान के निमित्त रखी गई यह सम्पत्ति केवल भगवान की सेवा के लिए ही प्रयोग की जा सकती है। इन सबके अलावा हिंदू धर्मावलंबियों की भी भावना यही है कि देश के किसी भी मंदिर की सम्पत्ति पर नियंत्रण करने का, किसी भी राज्य या केंद्र सरकार को कोई हक नहीं है।
वे तर्क देते हैं कि जो सरकारें मुसलमानों, ईसाइयों, सिखों व अन्य धर्मावलंबियों के धर्मस्थानों की सम्पत्ति का अधिग्रहण नहीं कर सकतीं, वे हिन्दुओं के मन्दिरों पर क्यों दांत गड़ाती हैं? खासकर तब जबकि आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हुई सरकारें और नौकरशाह सरकारी धन का भी ठीक प्रबंधन नहीं कर पाते हैं। यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय तक गया, जिसने अपने फैसले में केरल सरकार के दावे को खारिज कर दिया और त्रावणकोर राज परिवार के दाव को सही माना, जिससे पूरे दुनिया के ¨हदू धर्मावलंबियों ने राहत की सांस ली है। ये तो एक शुरुआत है। देश के अनेक मंदिरों की सम्पत्ति पर राजनैतिक दल और नौकरशाह अरसे से गिद्ध दृष्टि लगाए बैठे हैं। जिन राज्यों में धर्मनिरपेक्ष दलों की सरकारें हैं; उन पर भाजपा मंदिरों के धन के दुरुपयोग का आरोप लगाती आई है और मंदिरों के अधिग्रहण का जोर-शोर से संघ, भाजपा व विहिप विरोध करते आए हैं। जैसे आजकल तिरुपति बालाजी के मंदिर को लेकर आंध्र प्रदेश की रेड्डी सरकार पर भाजपा का लगातार हमला हो रहा है, जो सही भी है और हम जैसे आस्थावान ¨हदू इसका समर्थन भी करते हैं। पर हमारे लिए चिंता की बात यह है कि उत्तराखंड की भाजपा सरकार ने ही अनेक ¨हदू मंदिरों का अधिग्रहण कर लिया है। और भाजपा अन्य राज्यों में भी यही करने की तैयारी में है। जिससे ¨हदू धर्मावलंबियों में भारी आक्रोश है।
दरअसल, धार्मिंक आस्था एक ऐसी चीज है, जिसे कानून के दायरे से नियंत्रित नहीं किया जा सकता। आध्यात्म और धर्म की भावना न रखने वाले, धर्मावलंबियों की भावनाओं को न तो समझ सकते हैं और न ही उनकी सम्पत्ति का ठीक से प्रबंधन कर सकते हैं। इसलिए जरूरी है कि जहां कहीं ऐसा विवाद हो, वहां उसी धर्म के मानने वाले समाज के प्रतिष्ठित और सम्पन्न लोगों की एक प्रबंधकीय समिति का गठन अदालतों को कर देना चाहिए। इस समिति के सदस्य बाहरी लोग न हों और वे भी न हों, जिनकी आस्था उस देव विग्रह में न हो। जब साधन संपन्न भक्त मिल बैठकर योजना बनाएंगे तो दैविक द्रव्य का बहुजन हिताय सार्थक उपयोग ही करेंगे।
जैसे हर धर्म वाले अपने धर्म के प्रचार के साथ समाज की सेवा के भी कार्य करते हैं, उसी प्रकार से पद्मनाभ स्वामी जी के भक्तों की एक समिति का गठन होना चाहिए, जिसमें राजपरिवार के अलावा ऐसे लोग हों, जिनकी धार्मिंक आस्था तो हो पर वे उस इलाके की विषमताओं को भी समझते हों। ऐसी समिति दैविक धन का धार्मिंक कृत्यों व समाज व विकास के कृत्यों में प्रयोग कर सकती है। इससे उस धर्म के मानने वालों के मन में न तो कोई अशांति होगी और न कोई उत्तेजना। वे भी अच्छी भावना के साथ ऐसे कार्यों में जुड़ना पसन्द करेंगे। अब वे अपने धन का कितना प्रतिशत मंदिर और अनुष्ठानों पर खर्च करते हैं और कितना विकास के कार्यों पर, यह उनके विवेक पर छोड़ना होगा। हां, इस समिति की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित कर देनी चाहिए। ताकि घोटालों की गुंजाइश न रहे।
इस समिति पर निगरानी रखने के लिए उस समाज के सामान्य लोगों को लेकर विभिन्न निगरानी समितियों का गठन कर देना चाहिए, जिससे पाई-पाई पर जनता की निगाह बनी रहे। हिंदू मंिदरों का धन सरकार द्वारा हथियाना, हिंदू समाज को स्वीकार्य नहीं होगा। अदालतों को हिंदुओं की इस भावना का ख्याल रखना चाहिए। अभी तो एक पद्मनाभ मंदिर का फैसला आया है। देश में ऐसे हजारों मंदिर हैं, जहां नित्य धन लक्ष्मी की वष्रा होती रहती है। पर इस धन का सदुपयोग नहीं हो पाता। आस्थावान समाज को आगे बढ़कर नई दिशा पकड़नी चाहिए और दैविक द्रव्य का उपयोग उस धर्म स्थान या धर्म नगरी या उस धर्म से जुड़े अन्य तीर्थस्थलों के जीर्णोद्धार और विकास पर करना चाहिए, जिससे भक्तों और तीर्थयात्रियों को सुखद अनुभूति हो। इससे धरोहरों की रक्षा भी होगी और आने वालों को प्रेरणा भी मिलेगी।
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