सामयिक : अयोध्या का नेपालीकरण!
नेपाल के पीएम के.पी. शर्मा ओली ने पिछले हफ्ते नेपाली रामायण के रचयिता भानुभक्त के 207वें जन्मदिन पर हुए समारोह में कहा है कि असली अयोध्या नेपाल के बीरगंज के पास ‘थोरी’ गांव है, जहां भगवान राम का जन्म हुआ था।
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उन्होंने यह भी कहा कि-‘हमें सांस्कृतिक रूप से दबाया गया है। तथ्यों से छेड़छाड़ की गई है। हम अब भी मानते हैं कि हमने भारतीय राजकुमार राम को सीता दी थी, लेकिन हमने भारत की अयोध्या के राजकुमार को सीता नहीं दी थी। असली अयोध्या बीरगंज के पश्चिम में स्थित एक गांव है, न कि वह जिसे अब बनाया गया है।’
दरअसल, भारत में इस समय जब अयोध्या में रामजन्मभूमि मन्दिर निर्माण की तैयारियां चल रही हैं, उसी दौरान नेपाल के प्रधानमंत्री द्वारा अयोध्या के ऐतिहासिक अस्तित्व पर प्रश्निचह्न लगाना और भारत की राष्ट्रीय संस्कृति के प्रेरणा पुरु ष भगवान राम को नेपाल के किसी गांव का नेपाली राजकुमार बताना भारत की सांस्कृतिक अस्मिता के विरु द्ध की गई एक सोची समझी कूटनीतिक साजिश प्रतीत होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मई, 2018 में जब जनकपुर गए थे; तब नेपाली प्रधानमंत्री ओली ने भी उनके साथ जनकपुर से अयोध्या के बीच सीधी बस सेवा का उद्घाटन किया था। पर दो साल के अंतराल में ही ऐसा क्या कुछ हुआ कि ओली अब नेपाल के वीरगंज के पास ‘थोरी’ गांव को श्रीराम जन्मभूमि के रूप में असली अयोध्या बताने लगे हैं। माना जा रहा है कि कुर्सी बचाने की लड़ाई में उलझे नेपाली पीएम ओली भारत के खिलाफ एक सोची समझी रणनीति के तहत नेपाली भावनाएं भड़काने में लगे हैं।
पिछले दो महीनों से ओली चीन के दबाव में आकर भारत-नेपाल के हजारों वर्ष पुराने मैत्रीपूर्ण सांस्कृतिक संबंधों में भी लगातार दरार पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। प्रधानमंत्री ओली के इस असली अयोध्या वाले बचकाने बयान की भारत और नेपाल दोनों देशों में काफी निंदा हो रही है। उनके ही देश के विपक्षी दलों द्वारा किए जा रहे इस विरोध को देखते हुए नेपाल के विदेश मंत्रालय ने अब सफाई देते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री ओली के बयान किसी भी राजनीतिक विषय से जुड़े नहीं थे और उनका इरादा किसी की भावनाओं को आहत करने का नहीं था। बयान में यह भी सफाई दी गई है कि ‘श्री राम और उनसे संबंधित स्थानों को लेकर कई मत और संदर्भ हैं। प्रधानमंत्री, श्रीराम, अयोध्या और इनसे जुड़े विभिन्न स्थानों को लेकर तथ्यों की जानकारी के लिए केवल उस विशाल सांस्कृतिक भूगोल के अध्ययन और शोध के महत्त्व का उल्लेख कर रहे थे, जिसे रामायण प्रदर्शित करती है।’ नेपाल के विदेश मंत्रालय द्वारा दी गई इस सफाई पर नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टाराई ने ट्वीट करते हुए कहा है-‘सुराख छोटा होता तो रफू कर भी उसे ढका जा सकता है। इतना बड़ा सुराख कैसे बंद होगा। अगर केपी ओली निजी हैसियत से बोले होते तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि उन्होंने क्या बोला है, लेकिन देश के प्रधानमंत्री की बात राजनीतिक नहीं है, भला ये कौन विश्वास करेगा। प्रधानमंत्री के लगातार असंगत व राष्ट्रहित के विपरीत आचरण को ढकना नहीं चाहिए, उनको विदा ही करना है।’
स्पष्ट है पूर्व प्रधानमंत्री भट्टाराई ने ओली के बयान को एक राष्ट्रविरोधी बयान माना है और उस पर व्यंग्य करते हुए यह ट्वीट भी किया है, ‘आदि-कवि ओली द्वारा रचित कलयुग की नई रामायण सुनिए, सीधे बैकुंठ धाम की यात्रा करिए। ‘दरअसल, पीएम ओली ने नेपाल की जिस ‘असली अयोध्या की इन दिनों में खोज की है, वह काठमांडू से 135 कि.मी.दूर बीरगंज का एक छोटा सा गांव ‘थोरी’ कहलाता है। वर्तमान में यह गांव बिहार के पश्चिम चंपारण जिले से सटे नेपाल बॉर्डर पर स्थित है। अभी हाल में नेपाल के दावे की सचाई जानने के लिए भारत के कुछ मीडिया रिपोर्टर नेपाल के बॉर्डर पर स्थित ‘बाल्मीकि आश्रम’ में जाकर वहां इस असली अयोध्या का पता लगाने गए तो नेपाल पुलिस ने उन्हें आगे जाने की अनुमति ही नहीं दी। नेपाल सरकार द्वारा पिछले दो महीनों में अपनाई गई इस भारत विरोधी अभियान की क्रोनोलॉजी की ओर भी ध्यान दिया जाए, तो भारत-चीन विवाद के इस नाजुक दौर में नेपाल आज विस्तारवादी चीन के पाले में दिखना चाहता है, इसलिए भी वह भारत विरोधी नीतियां अपना रहा है। पिछले महीने नेपाल के द्वारा उत्तराखंड के कालापानी, लिम्प्याधुरा और लिपुलेख को नेपाल के नक्शे में शामिल करने के बाद अब उसने बिहार के पश्चिम चम्पारण जिले के साझा सीमावर्ती क्षेत्र ‘बाल्मीकि आश्रम‘ के बहाने से भारत में सांस्कृतिक आस्था की प्रतीक अयोध्या और लोक आराध्य भगवान राम दोनों पर अपना दावा जतलाया है।
नेपाली पीएम ने अपने इस बेतुके बयान से भारत की साझा सांस्कृतिक धरोहर की प्रतीक अयोध्या के बारे में जो भ्रांत धारणा फैलाने का प्रयास किया है, उसकी पुष्टि नेपाली भानुभक्त की रामायण से भी नहीं की जा सकती है। वेदों और उपनिषदों में प्रसिद्ध दुर्गनगरी ‘अष्टाचक्रा अयोध्या’ को नेपाल के बीरगंज का एक छोटा सा गांव बताकर ओली ने अपनी बचकानी बयानबाजी से अयोध्या के शौर्यपूर्ण इतिहास और उसके विव्यापी सांस्कृतिक महत्त्व पर भी अनेक प्रश्निचह्न लगा दिए हैं। नेपाल के पीएम द्वारा चलाई जा रही अयोध्या और भगवान राम के नेपालीकरण की इस मुहिम को आज गम्भीरता से लेने की जरूरत है। ऐसे में भारत के लोगों द्वारा नेपाल की जनता को आज यह बताने की भी आवश्यकता है कि अयोध्या कोई नेपाल के बीरगंज का छोटा सा गांव नहीं, बल्कि भारतवर्ष के चक्रवर्ती सूर्यवंशी राजाओं की आठ हजार वर्ष से भी प्राचीन मानव सभ्यता की धरोहर स्वरूप राजधानी नगरी है, जिसकी स्थापना सरयू नदी के तट पर सूर्यवंश के प्रथम राजा मनु महाराज ने की थी।
मैंने अपने शोधग्रन्थ ‘अष्टाचक्रा अयोध्या : इतिहास और परंपरा’ में बताया है कि वैदिक और पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार मनु से प्रारम्भ होने वाले अयोध्या के सूर्यवंशी वैदिक राजाओं की 63वीं पीढ़ी में दशरथ पुत्र मर्यादा पुरु षोत्तम राजा राम हुए थे। नेपाल देश का जब जन्म भी नहीं हुआ था, उससे हजारों वर्ष पूर्व राम संस्कृति की दिग्विजय यात्रा शुरू हो चुकी थी। एक ‘हिंदू राष्ट्र’ होने के नाते भी नेपाल को अपनी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए चीन के इस साम्राज्यवादी रवैये से सावधान रहने की जरूरत है।
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