विश्व बाघ दिवस : जानने-समझने की दरकार

Last Updated 29 Jul 2020 12:43:38 AM IST

जब बात देश के गौरवाली इतिहास, साहस, शौर्य, बलिदान, युद्ध और योद्धाओं की आती है तो सहज ही राजस्थान का नाम जुबां पर आ जाता है।


विश्व बाघ दिवस : जानने-समझने की दरकार

उसी राजस्थान की सीमा पर अरावली की पहाड़ियों के पूर्व में स्थित सवाई माधोपुर जिलांर्तगत रणथंभौर बाघ अभयारण्य देा में बाघ परियोजना का पर्याय है। इसकी समूची दुनिया में बाघों और अन्य जीव-जंतुओं के लिए ख्याति है।
अरावली और विन्ध्य पर्वत श्रंखलाओं के बीच अवस्थित यह इलाका लहरदार सूखे पतझड़ी जंगलों और उष्णकटिबंधीय झाड़ी वाले पेड़ों और हमे बहने वाली जल धाराएं, तालाबों और झीलों से घिरा हुआ है। इतिहास गवाह है कि ऐसे इलाके बाघ, तेंदुआ, लकड़बग्घे, हिरन, सियार आदि अन्य वन्यजीवों, घड़ियाल जैसे जलजीवों और जंतुवर्गीय श्रेणी की सैकड़ों प्रजातियों के लिए सवरेत्तम होते हैं। वनाच्छादित क्षेत्र का स्वास्थ्य पारिस्थितिकी तंत्र के शीर्ष पर रहे बाघ के साथ-साथ छोटे वन्यजीवों और वनस्पतियों पर भी निर्भर होता है। चूंकि बाघ इस तंत्र का महत्त्वपूर्ण अंग है, इसलिए बाघ के विषय में लिखना और उसके जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचारों के माध्यम से देश के जनमानस को अवगत कराना बड़ा ही दुरूह कार्य है।

अक्सर बाघ की संख्या, उनके शिकार और उनके संरक्षण के बारे में पढ़ने को मिलता है, लेकिन बाघ के जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में बहुत कम जानकारी मिलती है। यहां उसकी परिस्थिति, प्रकृति, व्यवहार और आचरण के बारे में तथ्यों को उजागर करने का अभूतपूर्व काम किया है प्रख्यात वन्यजीव विशेषज्ञ दौलत सिंह शक्तावत ने। शक्तावत के अनुसार आमतौर पर बाघ एकांत प्रिय होता है, लेकिन उनका सामाजिक जीवन भी होता है। वह अपने बच्चों को न केवल शिकार करना, उसके तरीके सिखाता है, शिकार के मांस को साझा करने के बारे में बताता है बल्कि बच्चों के शरारत करने पर डांटता भी है। वह किस तरह अपने शावकों का पालन-पोषण करता है, पालक की भूमिका का निर्वहन करता है, उनको भोजन उपलब्ध कराता है और जंगल में जीवित रहने का सबक सिखाता है। वह मुझे तीन उस्ताद, नूर और सुल्तान के परिवार को देखकर विश्वास हो गया। मुझे इस परिवार के कुछ पलों को देखने-समझने और कैमरे में कैद करने का सौभाग्य मिला है। मैंने देखा है कि उस्ताद ने कैसे अपने बच्चे सुल्तान को सिखाया कि जंगल में शिकार कैसे किया जाता है। जब सुल्तान अल्पवयस्क था, तो मैंने एक बार सांभर के मांस को साझा करने के बाद उसे अपने पिता के प्रति आक्रामक पाया। पहले तो उस्ताद ने उसे बर्दाश्त किया, लेकिन जब सुल्तान ने उसके आगे प्रभुत्व दिखाने की कोशिश की तो उस्ताद ने तुफानी गर्जना की जो सुल्तान को डरा देने के लिए काफी थी। अपने पिता के साथ हुई इस घटना के बाद सुल्तान पहले रणथम्भौर के परिधीय क्षेत्र और बाद में केलादेवी वन्य अभयारण्य की ओर चला गया। उनके अनुसार एक स्वस्थ बाघ जो जंगल में स्वतंत्र रूप से स्वच्छंद विचरण करता हो, उसका वहां एक बहुत बड़े भू-भाग पर कब्जा हो, को अब प्राणी उद्यान में एक सीमित क्षेत्र में पिंजरे में बंद प्राणी की तरह कैद देखना वास्तव में बहुत ही दुखद है। बाघों की निगरानी और पदचिह्नों के जरिये उन्हें खोजने में किन-किन समस्याओं से जूझना पड़ता है। आक्रामक उस्ताद नामक बाघ की कहानी, बहुतेरे उतार-चढ़ाव के साथ इस बात की मिसाल है। शक्तावत के अनुसार इतिहास में कुछ बाघ हमेशा याद रखे जाएंगे क्योंकि उन्होंने अपनी उपस्थिति से एक अमिट छाप छोड़ी है। उनकी ताकत, फुर्ती और प्रभाव वास्तव में अद्धितीय है। उनमें आक्रामक झगड़ालू नर बाघ जालिम भी था, जिसने अपने लिए तानाशाह जैसे विशलेषण अर्जित किए थे, लेकिन उसने अपने स्वभाव के विपरीत अपने शावकों को पाल-पोसकर वनकर्मियों को आश्चर्यचकित कर दिया, जो तब केवल चार महीने के थे जब उनकी मां की मृत्यु हुई थी।
इतने छोटे शावकों की मां के बिना मृत्यु निश्चित थी, लेकिन जालिम ने न केवल उन्हें पाला बल्कि उनके लिए भोजन उपलब्ध कराया और बाद में उन्हें जंगल में जीवित रहने का सबक भी सिखाया। कभी-कभी एक कहानी शुरू करने के लिए सिर्फ एक झलक भर काफी होती है, ठीक वैसे ही यह भारत के राष्ट्रीय वन्यजीव बाघ के साथ एक प्रेम कहानी है। उन्होंने रणथंभौर में वन एवं वन्यजीवों की रक्षा में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले ज्ञात-अज्ञात नायकों को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की है। उन्होंने राष्ट्रीय जीव बाघ के बारे में जो समझ विकसित करने का महान कार्य किया है, उसे जानने-समझने की हमें बेहद जरूरत है।

ज्ञानेन्द्र रावत


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