विरासत : बेहतर भविष्य की आस्ति

Last Updated 09 Jul 2020 01:36:32 AM IST

अनेक गंभीर वैश्विक और स्थानीय चुनौतियों के बीच हमारे देश को एक बेहतर भविष्य की ओर कैसे बढ़ना है, इसकी एक समग्र सोच बनाने के साथ यह भी जरूरी है कि हम अपने इतिहास और विरासत से इसके लिए प्रेरणा और जरूरी सबक प्राप्त करें।


विरासत : बेहतर भविष्य की आस्ति

इतिहास को कई दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है और यदि एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए जरूरी सरोकारों की दृष्टि से देखा जाए तो कुछ सवाल अधिक महत्त्वपूर्ण होंगे। इतिहास के किस दौर में आपसी भाईचारे, सुलह-समझौते और परस्पर सहयोग का माहौल अधिक मजबूत हुआ और किन कारणों से हुआ? किस दौर में मनुष्य ने केवल समृद्धि नहीं अपितु संतोष को भी समुचित महत्त्व दिया? किस दौर में समता और न्याय के जीवन-मूल्य को अधिक महत्त्व मिला? किस दौर में ऊंचे आदशरे से प्रेरित होकर लोग व्यापक जन-हित के मुद्दों के लिए अधिक आगे आए? किस दौर में लोग पेड़-पौधों, जीव-जंतुओं की रक्षा के प्रति अधिक संवेदनशील हुए? किस दौर में मनुष्य ने भावी पीढ़ियों का, भविष्य का अधिक ध्यान रखा?
ये बहुत महत्त्वपूर्ण विषय हैं क्योंकि सबसे बड़ा सरोकार तो धरती पर दुख-दर्द कम करना ही है। जब समाज में करुणा, भाईचारे, सहयोग और न्याय के जीवन-मूल्य मजबूत होंगे तभी दुख-दर्द भी कम होगा। यदि हम इतिहास के अध्ययन से यह समझ सके कि समाज में किस दौर में ये जीवन-मूल्य बहुत मजबूत हुए और इस तरह का माहौल बनाने में किन कारणों, प्रेरकों और उत्प्रेरकों की मुख्य भूमिका रही तो यह इतिहास का सर्वाधिक मूल्यवान योगदान होगा। हम अपने इतिहास में झांक कर देखना चाहिए कि कब-कब इन मूल्यों के अनुरूप सशक्त आवाज हमारे देश में उठी, वे कौन-सी विशेष स्थितियां थीं जिनमें यह आवाज इतनी गहरी हो सकी कि उसने बहुत बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित किया।

हमारे इतिहास में ऐसे चार समय तो निश्चित तौर पर नजर आते हैं। ऐसा पहला समय ईसा पूर्व छठी शताब्दी का था अथवा आज से लगभग 2600 वर्ष पहले का समय था। इस समय गंगा के मैदानों में या इसके आसपास अनेक सुधारवादी धार्मिक संप्रदायों का जन्म हुआ जिन्होंने प्रचलित कुरीतियों का विरोध करते हुए सादगी, अहिंसा, सहयोग और समता का संदेश दिया। इनमें से दो संप्रदायों का इतिहास पर स्थायी प्रभाव बौद्ध और जैन धर्म के रूप में हुआ। महावीर जैन ने अहिंसा के बहुत व्यापक रूप का प्रचार किया। अपरिग्रह के उनके सिद्धांत ने सादगी के जीवन को प्रतिपादित किया और आधिपत्य पर आधारित संबंधों का विरोध किया। महात्मा बुद्ध ने समता और अहिंसा पर जोर देने के साथ-साथ धर्म के रास्ते को कर्मकांडों से मुक्त करा उसे व्यावहारिक बनाया। मध्यम मार्ग का संदेश देते हुए उन्होंने कहा-जीवन रूपी वीणा को इतना मत कसो कि वह टूट जाए। उसे इतना ढीला भी मत छोड़ो कि उसमें से स्वर ही न निकले।
दूसरा समय आज से लगभग 2250 वर्ष पहले का है जब कलिंग-युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने एक बहुत शक्तिशाली सेना होने के बावजूद आक्रमण और विजय की नीति को पूरी तरह छोड़ दिया और इसके स्थान पर धर्म विजय को अपनाया। कुछ हद तक मिस्र के अखनातोन को छोड़कर प्राचीन विश्व के इतिहास में ऐसा कोई अन्य उदाहरण नहीं मिलता है। उनने अपने जीवन को जन कल्याण और पशु पक्षियों के कल्याण में लगा दिया। उनने बौद्ध धर्म का प्रचार दूर-दूर तक किया पर साथ ही अन्य धर्मो के प्रति पूरी सहनशीलता दिखाई। अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए ही अशोक ने देश में अद्भुत राजनीतिक एकता स्थापित की।
भारतीय इतिहास में ऐसा तीसरा ऐतिहासिक दौर तेरहवीं से सोलहवीं शताब्दी के भक्ति और सूफी आंदोलन का है, जिसे हम आध्यात्मिकता की गहराइयों में उतर कर जीवन की एक सार्थक समझ बनाने की दृष्टि से देख सकते हैं। दक्षिण भारत में यह भक्ति लहर इस समय से पहले ही देखी गई। प्रचलित सामाजिक कुरीतियों और इनके पोषक निहित स्वाथरे के विरुद्ध बहादुरी और दिलेरी से किए गए विद्रोह की दृष्टि से देखें या दो समुदायों द्वारा एक दूसरे को समझने और भाईचारे से रहने की दृष्टि से देखें, हर दृष्टि से यह बहुत प्रेरणादायक समय था।
हमारे इतिहास का ऐसा चौथा प्रेरणादायक दौर निश्चय ही ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध आजादी की लड़ाई का दौर था जिसके साथ समाज-सुधार के अनेक आंदोलन भी अनिवार्य तौर पर जुड़े हुए थे। एक पवित्र और बेहद जरूरी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए कितनी कुर्बानी दी जा सकती हैं, कितना कष्ट सहा जा सकता है, कितनी असंभव लगने वाली चुनौती भी स्वीकार की जा सकती हैं, कितना अथक प्रयास किया जा सकता है-इसकी बहुत ही हिम्मत बंधाने वाली अनेक मिसालें इस दौर में कायम हुई। साथ ही, यह सामाजिक बदलाव के अनेक महत्त्वपूर्ण प्रयोगों का समय था जिन्हें वांछित सफलता मिली हो या न मिली हो, लेकिन उनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं।
इन सभी महत्त्वपूर्ण दौरों से पहले समस्याएं बहुत बढ़ गई थीं। समस्याएं बहुत बढ़ जाने पर ये विभिन्न दौर उम्मीद लेकर आए। बौद्ध धर्म और जैन धर्म के उदय से पहले हिंसा, विषमता और कर्मकांडों से समाज बुरी तरह ग्रस्त था। अशोक द्वारा शांति का मार्ग अपनाने से पहले भीषण हिंसा के कलिंग युद्ध में बहुत बड़ी संख्या में लोग मारे गए थे और बर्बाद हुए थे। भक्ति और सूफी आंदोलन की जरूरत को जिस समाज ने पहचाना वह तरह-तरह के भेदभाव, निर्थक हिंसा और अंधविश्वास से उत्पन्न कष्ट भुगत रहा था। आजादी की लड़ाई में कुछ सबसे साहसी और नई समझ बनाने वाले कार्य तब हुए जब शोषण और जुल्म से समाज बुरी तरह त्रस्त हो चुका था। अत: स्पष्ट है कि मौजूदा समाज की अधिक समस्याओं से विचलित नहीं होना है। वर्तमान कमजोरियों के बावजूद ऐसी प्रेरणादायक शुरुआत हो सकती है, जो हमारी समस्याओं के वास्तविक और स्थायी हल खोजने या समाधान निकालने के साथ-साथ भटकी हुई दुनिया में एक वैकल्पिक रास्ते की उम्मीद भी जगाए।

भारत डोगरा


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