एप्स पर बैन : देर आयद, दुरुस्त भी नहीं
दुनिया भर की सरकारों में यह आम बीमारी है कि जब आस-पड़ोस के किसी देश से विवाद का कोई कूटनीतिक समाधान नहीं निकलता है तो वे ऐसे दिखावटी या नकली उपायों की जोर-आजमाइश पर उतर आती हैं, जिनसे जनता को अपनी सरकार की दृढ़ता का अहसास हो।
एप्स पर बैन : देर आयद, दुरुस्त भी नहीं |
हालांकि ऐसे उपाय समस्या का सटीक इलाज नहीं होते। कई बार तो ये उल्टे ही पड़ जाते हैं। इस संदर्भ में 29 जून, 2020 की रात भारत सरकार द्वारा 59 मोबाइल एप्स को बंद करने की घोषणा को देखें तो बात ज्यादा साफ हो जाती है।
लद्दाख की गलवान घाटी में 15-16 जून को भारतीय-चीनी सैनिकों की खूनी झड़प के बाद जो कुछ हुआ, मोदी सरकार पर इसका दबाव था कि वह कुछ वैसा ही करे, जैसा उसने पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के रूप में किया था। चीनी सरहद पर 20 सैनिकों की शहादत के बाद देश में उठे राष्ट्रवाद के ज्वार के तहत मांग हो रही है कि सीमा पर कड़ी कार्रवाई के साथ भारत में चीनी उत्पादों का आयात बंद कर दिया जाए। बताया जा रहा है कि बंदरगाहों पर चीनी माल कस्टम्स में की जा रही देरी के कारण अटके पड़े हैं। इसे एक फौरी उपाय के रूप में देखा जा रहा है पर सबसे आश्चर्यजनक प्रतिक्रिया 59 मोबाइल एप्स पर पाबंदी के रूप में आई। सरकार का कहना है कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का एक आपातकालीन उपाय है। सूचना एवं प्रसारण मंत्री रविशंकर प्रसाद के मुताबिक इसकी जरूरत यूं थी कि ये एप्स भारतीय नागरिकों के डाटा और निजता में सेंध लगा रहे थे। हैरानी इस बात की है कि सरकार को इन्हें बैन करने का ख्याल तभी क्यों आया, जब चीन के साथ उसके रिश्ते रसातल पर पहुंच गए हैं। सवाल है कि अगर गलवान में घुसपैठ न होती, तो क्या सरकार इस पाबंदी पर कभी विचार ही नहीं करती जबकि इस किस्म के प्रतिबंध की मांग तो अरसे से हो रही थी।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2018 में इंटेलीजेंस ब्यूरो ने आशंका जताई थी कि चीन की चालीस से ज्यादा मोबाइल अप्लिकेशन हमारे स्मार्टफोनों को हैक कर सकती हैं। उस दौरान सुरक्षा बलों को सलाह दी गई थी कि वे वीचैट, यूसी ब्राउजर, यूसी न्यूज, ट्रूकॉलर, शेयरइट आदि एप्स को अपने स्मार्टफोनों से हटा दें। आईबी ने कहा था कि ये अप्लिकेशन असल में चीन की तरफ से विकसित किए गए जासूसी के एप्स हैं और इनकी मदद से लोगों की निजी सूचनाएं, फोटो, वीडियो चीन के सर्वरों से होते हुए चीनी सरकार तक पहुंच जाते हैं। अगस्त, 2018 में केंद्र सरकार ने स्मार्टफोन बनाने वाली चीन समेत कई अन्य देशों की 21 कंपनियों को इस बारे में नोटिस जारी किया था। संदेह है कि ओपो, वीवो, शाओमी और जियोनी के अलावा ऐपल, सैमसंग और भारतीय कंपनी माइक्रोमैक्स के स्मार्टफोन्स के जरिए चीनी खुफिया एजेंसियां भारतीय ग्राहकों की पर्सनल जानकारियां चुराती रही हैं। दावा किया गया कि चूंकि भारतीय मोबाइल कंपनियां अपने हैंडसेट में चीन से उपकरण मंगाकर लगाती हैं, इसलिए उनसे भी जासूसी हो रही है। ध्यान रहे कि जासूसी के इन आरोपों की जद में ऐपल, सैमसंग और जियोनी आदि कंपनियां भी थीं, जो चीन की नहीं हैं। तो अब प्रतिबंध सिर्फ चीन में बनाए गए एप्स पर क्यों?
आंकड़े बताते हैं कि देश के करीब 50 करोड़ स्मार्टफोनधारकों में से 30 करोड़ लोग प्रतिबंधित किए गए एप्स का लंबे समय से इस्तेमाल कर रहे थे। इस दौरान उनकी तमाम निजी सूचनाएं दावे के मुताबिक चीन पहुंच चुकी हैं, हालांकि ये एप निर्माता कंपनियां ऐसे दावों से इनकार करती रही हैं। एकबारगी हम यह भी मान लें कि ऐसे बैन कारगर होते हैं लेकिन तब कुछ और अहम सवाल उठते हैं। जैसे, पहला यह है कि क्या हमारे पास इनके ठीकठाक विकल्प हैं। बताते हैं कि टिकटॉक का विकल्प चिंगारी और मित्रो है, लेकिन तब कोई यह भी बताए कि शेयरइट, कैमस्कैनर, वीवो चैट, यूसी ब्राउजर, हेलो, लाइकी जैसे विकल्प कहां हैं। और यदि हैं तो क्यों भारत का एक आम नागरिक टिकटॉक, शेयरइट आदि का मुरीद हुआ पड़ा था, जबकि राष्ट्रवाद का उफान मारते ही वह पुराना चाइनीज टीवी सड़क पर लाकर उसकी तोड़फोड़ में जुट जाता है। जाहिर है कि किसी ने हमारी कंपनियों को इसके लिए नहीं रोका कि वे फेसबुक बनाएं, टिकटॉक को टक्कर दें, व्हाट्सएप के मुकाबले में आ जाएं। आईटी की पिटी-पिटाई लीक पर चलने की मजबूरी हमें चीनी मोबाइल एप्स की शरण में ले गई थी। यह बात समझ ली जाए तो शायद आगे कभी बैन की मजबूरी पैदा न हो और सरहद के मसले वास्तविक कूटनीति से हल किए जाएं।
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