चीन : विस्तारवादी नहीं तो क्या कहें?
पाश्चात्य दशर्न के विचारकों में जॉर्ज विल्हम, फ्रेडरिक हेगल और कार्ल हेनिरख मार्क्स के दशर्न से प्रभावित होकर अनेक देशों में प्रचलित शासन प्रणाली के खिलाफ विद्रोह होने लगे।
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सत्ता परिवर्तन के दौर में रक्तपात भी हुए। साम्यवादी परिवर्तन की इस लहर में ‘लोकतंत्र’ शब्दावली की जगह साम्यवादी ‘गणराज्य’ को प्रतिष्ठित किया गया। सर्वहारा क्रांति और राजनीतिक क्रांति के गर्भ से जोसेफ स्टालिन, ब्लादिमीर इल्यीच उल्यानोव उर्फ लेनिन और माओत्से तुंग जैसे निरंकुश शासकों ने जन्म लिया। इन लोगों ने निर्ममता के साथ मौलिक अधिकारों से जनता को वंचित रखा। आलोचना करने और सुविधाओं की मांग को भी वर्जित कर दिया गया। दमन की छड़ी ने पूरा जीवनदशर्न ही रहस्यमय कर दिया। सामंतशाही और राजशाही का विरोध करने वाले अनेक शासक 30-30 साल से भी अधिक समय तक शासन करते रहे।
चीन भी गैर-लोकतांत्रिक परंपरा से अछूता नहीं रहा है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कम्युनिस्ट नेता आजीवन सत्ता के लिए भूखे रहते हैं। चीन में 30 साल तक माओ त्से तुंग सत्ता पर काबिज रहे। काफी मंथन के बाद चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने ही चीनी संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) से आजीवन सत्ता में बने रहने के विरुद्ध प्रस्ताव पारित कराया। इसे अमल में लाया गया। लेकिन डेंग जिआओ पिंग का यह सराहनीय प्रयास रद्द हो गया। मौजूदा राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपनी पार्टी के महासचिव की हैसियत से सात सदस्यों की समिति गठित की। समिति ने शी जिनिपंग को आजीवन राष्ट्रपति बनाने के लिए प्रस्ताव तैयार कर पहले पार्टी की बैठक में पारित कराया।
इस प्रस्ताव के खिलाफ उठे जन स्वर को कड़ाई से दबा दिया गया। उधर चीनी संसद एनपीसी में मार्च, 2018 के दरम्यान यह प्रस्ताव पेश हुआ। प्रस्ताव में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति को आजीवन पद पर बने रहने के लिए संविधान संशोधन करने के लिए सिफारिश थी। संसद ने इस प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित कर दिया। प्रस्ताव दशर्ता है कि रहस्यमय व्यक्तित्व के धनी शी जिनपिंग के निरंकुश शासक बनने का रास्ता साफ हो गया है। ऐसी स्थिति में विश्व के सभी देशों को चीन से सतर्क रहने की जरूरत है। साम्यवादी दशर्न में साम्राज्यवाद और पूंजीवाद वर्जित है। इसके खिलाफ भी रक्तपात हो चुका है। तथापि चीन जैसे देश में यह वर्जित नहीं है। चीन में कुटिल नीति के तहत साम्राज्यवाद पर चुप्पी है और विस्तारवाद की नीति के तहत पड़ोसी देशों के भू-भाग पर गिद्ध दृष्टिकोण कायम है।
बीते करीब दो महीने से अधिक समय से भारत-चीन के बीच सीमा विवाद के मुद्दे पर तनाव बना हुआ है। चीनी सेना के हमले में भारत के 20 जवान शहीद हो गए। भारत की जवाबी कार्रवाई में चीन को भी भारी नुकसान उठना पड़ा। आश्चर्य तो यह है कि चीन ने इस संबंध में अब तक कोई अधिकृत बयान नहीं दिया। हां, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विस्तारवादी रवैये जैसा आरोप लगाया तो चीन ने तत्काल बयान जारी कर इस आरोप का खंडन किया।
वस्तुत: हेगल ने त्रिक नियम के तहत एक सिद्धांत प्रतिपादित किया है। उसे ‘पक्ष’, ‘प्रतिपक्ष’, और ‘संपक्ष’ कहते हैं। फिर किसी ने इस सिद्धांत को ‘क्रिया’, ‘प्रतिक्रिया’, और ‘संक्रिया’ नाम दिया। चीन का शिखर नेतृत्व इसी सिद्धांत पर काम करता रहा। पहले वह अपने मतलब साध्य होने वाले देश के साथ हमदर्दी दिखाता है। उसे आर्थिक और अन्य सहायता देता है। कुछ समय बाद सुरक्षा चौकी आदि बनाने के नाम पर उस देश में घुसपैठ करता है और शक्तिशाली अड्डा बना लेता है। कुछ समय बाद धौंस दिखा कर उस इलाके को अपना भू-भाग घोषित कर देता है। इसी तरह सीमावर्ती इलाकों में भी बहानेबाजी कर घुसपैठ करता है और उस इलाके अपना बताया करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने चीन पर विस्तारवादी होने का आरोप यों ही नहीं लगाया है। जो देश अनावश्यक दावा कर तर्कहीन अन्यायकारी दावों के आधार पर भूमि पर अतिक्रमण करता है, तो उसे विस्तारवादी न कहा जाए तो क्या कहा जाए। वर्तमान वैश्विक व्यवस्था में जब किसी भूमि पर कोई देश कब्जा करता है, तो वहां की भाषा, संस्कृति और सभ्यता पर भी अपनी भाषा, संस्कृति और सभ्यता को थोपता है।
तिब्बत बौद्ध धर्म का सबसे बड़ा केंद्र था, चीन वहां घुसा और दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भारत में शरण लेनी पड़ी। तिब्बत ऐतिहासिक दृष्टि से कभी चीन का अंग नहीं रहा, तिब्बत में घुसकर चीन ने 12.28 लाख वर्ग किलोमीटर भू भाग पर कब्जा कर लिया, उस समय भारत की तरफ से चीन को चुनौती आनी चाहिए थी, लेकिन भारत के तत्कालीन सत्ताधीशों ने चुनौती नहीं दी। भारत के अकसाई चिन में पंडित जवाहर लाल नेहरू युग में चीन ने 38 हजार किलोमीटर भू-भाग पर कब्जा कर लिया। चीन ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर की सक्सगम वैली के 5580 वर्ग किलोमीटर पर कब्जा कर लिया। भारत ने 1963 में जब पाकिस्तान को सिंधु नदी का जल दिया, उस समय सकसगम वैली और अकसाई चिन को मिलाकर 43580 वर्ग किलोमीटर पर चीन ने कब्जा कर लिया। चीन ने नेपाल के एक हिस्से को यह दावा करके कब्जा लिया कि सन 1728 से 1792 के मध्य चीन-नेपाल का युद्ध हुआ था, उसमें चीन जीता था, चीन के इस बेतुके दावे पर क्या कहा जाए?
चीन नेपाल में घुसपैठ को तिब्बत का विस्तार मानता है! वियतनाम में सन 1368 से 1644 तक मिंगराजवंश का शासन था, तब साउथ चाइना सी का बड़ा हिस्सा उसके पास था, इसलिए स्प्रैटली द्वीप समूह पर चीन अपना कब्जा बता रहा है। ब्रुनेई में स्प्रैटली द्वीप समूह के एक हिस्से को अपना होने का दावा चीन करता है। ताइवान में स्कारबॉरो शोअल द्वीप तथा नेकलेस सील्ड पर चीन अपना दावा करता है। जापान के ईस्ट चाइना सी में सेनकाकू द्वीप को चीन अपना होने का दावा करता है। साउथ कोरिया, नॉर्थ कोरिया से भी चीन का भूमि को लेकर विवाद हैं। रूस के 1 लाख 60 हजार वर्ग किलोमीटर भूमि पर चीन दावा ठोक कर विवाद खड़ा करता है। कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजकिस्तान, कंबोडिया, लाओस, इंडोनेशिया, मलयेशिया, सिंगापुर सहित सभी पड़ोसी देशों के साथ अन्यायकारी दावों के साथ उसने भूमि पर कब्जा किया है और करने की कोशिश कर रहा है। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी चीन को विस्तारवादी न कहें तो क्या कहें।
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