बिहार चुनाव : अतीत के मसले ज्यादा मौजूं

Last Updated 29 Jun 2020 12:09:37 AM IST

विकास के नाम पर चाहे जितने कसीदे गढ़े जा रहे हों, मगर कहीं-न-कहीं चारा घोटाला व जंगल राज का मामला 15 वर्षो से सत्तासीन एनडीए नीत सरकार के लिए आज भी जीत का शुभंकर बना हुआ है।


बिहार चुनाव : अतीत के मसले ज्यादा मौजूं

यही वजह  है कि सुशासन की सरकार का दावा करने वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के पांव विधानसभा चुनाव-2020 के नजदीक आते ही एक बार फिर चारा घोटाले व जंगल राज की ओर  ढुलकने भी लगे हैं।
हो यह रहा है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार समेत एनडीए के  शीर्ष नेताओं ने  बिहार विधानसभा चुनाव के मौके पर चारा घोटाला और जंगल राज के नायक लालू परिवार को केंद्रबिंदू बना कर हमले तेज कर दिए हैं। चारा घोटाला भले अंतिम सांस ले रहा हो मगर आज भी जब लालू नीत महागठबंधन के हमले तेज हो जाते हैं तो एनडीए के नेता चारा घोटाला व जंगल राज के जिन्न को निकालना शुरू कर देते हैं। एनडीए नीत सरकार के पास चारा घोटाला व जंगल राज के बहाने विपक्ष पर हमले तेज करने की वजह भी है।  सीबीआई जांच के दायरे में  सृजन घोटाला का भूत एनडीए नीत नेताओं को डराने लगा है। वहीं, दूसरी ओर शेल्टर होम, इंदिरा आवास या फिर शौचालय घोटाला का अक्स भी बिहार विधानसभा 2020 के चुनाव में बतौर मुद्दे के रूप में भी ला कर एनडीए रणनीति की किरकरी करा सकते हैं। वजह तो यह भी हो सकती है कि हर चुनाव के लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नये वोट बैंक अपने पक्ष में  तैयार करते रहे हैं। एक समय स्कूली बच्चियों को साइकिल व पोशाक योजना दे कर समाज में एक नई जागरूकता पैदा की। गांव की पंगडंडियों में साइकिल चलाती लड़कियां अक्सर नजर आ जाती थीं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस योजना ने बङ़ी संख्या में लोगों को एनडीए सरकार की तरफ आकषिर्त भी किया।

नीतीश के दूसरे पैरोकार के रूप में जीविका दीदी का एक बड़ा समूह उभर कर एनडीए के समर्थन सामने आया। एनडीए को इस नये वोट बैंक का भरपूर समर्थन भी मिला। इसके बाद नीतीश कुमार शराबंदी तथा पंचायत चुनाव में आरक्षण दे कर महिलाओं की एक बड़ी तादाद को एनडीए के पक्ष में गोलबंद करने में सफल हुए। वर्तमान सरकार का नेतृतव संभालने वाले नीतीश कुमार के हाथ में नया कुछ विशेष बताने को नहीं दिखता है। किसी बड़े समूह को केंद्रित कर कोई योजनाएं सामने नहीं आ सकी। इस बार नीतीश कुमार कुछ अलग रंग-ढंग से आये। इस लिहाज से इनकी छवि भी बदली। प्रशासनिक क्षमता से दक्ष नीतीश अचानक से समाज सुधारक या कहें कि प्रीचर की भूमिका में खुद को उभारते दिखे। मसलन बाल विवाह के विरुद्ध सामाजिक आंदोलन की नींव रखना तो कभी वे शादी में दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियों को तोड़ते नजर आये। इन दिनों लगातार पोर्न साइट को ले कर आवाज उठा रहे हैं। यहां तक कि पीएम तक को पत्र लिख कर अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन करते नजर आए। दूसरी ओर विकास के कसीदे गढ़ने वाली एनडीए सरकार का एक सच  यह भी है कि विकास की जितनी योजनाएं बनी वह उसी तीव्रता के साथ धरातल तक आते नहीं दिखी। क हीं -न-कहीं बेहतर तकनीक का अभाव, योजना को लागू करने में सरकारी कर्मियों की भारी कमी और अंतत: भ्रष्टाचार के आगोश में एनडीए सरकार को वह श्रेय नहीं मिल पा रहा है जो मिलना चाहिए। हाल के दिनों की ही पड़ताल करें तो लगातार यह सूचना जारी की जा रही है कि राशन कार्ड सबको मिलेगा, जरूर मिलेगा आदि-आदि।  वहीं प्रवासी बिहारी मजदूरों व छात्रों के मामले में भी एनडीए सरकार को भरपूर आलोचना का शिकार होना पड़ा।
यहां तक कि बाद में लाये गये प्रवासी मजदूरों की गाथाएं व क्वारंटीन सेन्टर की अव्यवस्था से भी राज्य सरकार की छवि धूमिल होते दिखी। तमाम संसाधनों का जुटान करने में सफल राज्य सरकार प्रशासनिक अक्षमता के आगे या अपूर्ण तैयारी के आगे दम तोड़ती नजर आई। ऐसे में राजद नीत सरकार की चर्चा के साथ चारा घोटाला या जंगल राज के आने की भनक आज भी एक खास वर्ग को गोलबंद कर जाती है, जो अक्सर एनडीए नीत सरकार का आधार वोट बनता रहा है। आज भी सवर्ण व व्यवसायी समाज जितनी तेजी व समग्रता के साथ चारा घोटाला व जंगल राज की आवाज पर गोलबंद हो जाता है उतना विकास के किसी  योजनाओं के साथ भी नहीं हो पाते हैं। वैसे भी विगत 30 वर्षो में सत्ता के शासन के दो रोल मॉडल सामने आये हैं। एक राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का और दूसरा सुशासन बाबू के नाम से पहचाने जाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जिसे देश भर में प्रयोगात्मक सरकार के रूप में चर्चा भी मिली। कोई तीसरा मॉडल आया ही नहीं जिसे जनता परख भी सके।

चंदन


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