नागर विमानन महानिदेशालय : इतना घपला क्यों है?

Last Updated 29 Jun 2020 12:11:57 AM IST

नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अधीन ‘नागर विमानन महानिदेशालय’ (डीजीसीए) की जिम्मेदारी है कि निजी या सरकारी क्षेत्र की जो भी हवाई सेवाएं देश में चल रही हैं, उन पर नियंत्रण रखना।


नागर विमानन महानिदेशालय : इतना घपला क्यों है?

हवाई जहाज उड़ाने वाले पायलटों की परीक्षा करना। गलती करने पर उन्हें सजा देना और हवाई जहाज उड़ाने का लाइसेंस प्रदान करना। बिना इस लाइसेंस के कोई भी पायलट हवाई जहाज या हेलिकॉप्टर नहीं उड़ा सकता। इसके साथ ही हर एयरलाइन की गतिविधियों पर निगरानी रखना, नियंत्रण करना, उन्हें हवाई सेवाओं के रूट आवंटित करना और किसी भी हादसे की जांच करना भी इसी निदेशालय के अधीन आता है। जाहिर है कि अवैध रूप से मोटा लाभ कमाने के लिए एयरलाइंस प्राय: नियमों के विरुद्ध सेवाओं का संचालन भी करती हैं, जिनके पकड़े जाने पर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए और अगर अपराध संगीन हो तो उनका लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है।
ये कहना गलत नहीं होगा कि इन सब अधिकारों के चलते निदेशालय के अधिकारियों की शक्ति असीमित है, जिसका दुरुपयोग करके वे अवैध रूप से मोटी कमाई भी कर सकते हैं। हर मीडिया हाउस में नागरिक उड्डयन मंत्रालय और नागर विमानन महानिदेशालय को कवर करने के लिए विशेष रिपोर्टर होते हैं। इनका काम ऐसी अनियमितताओं को उजागर कर जनता के सामने लाना होता है। पर अफसोस के साथ कहना पड़ता है कि ये लोग अपना काम मुस्तैदी से करने में, कुछ अपवादों को छोड़ कर, नाकाम रहे हैं। इसका कारण भी स्पष्ट है कि ये एयरलाइंस ऐसे रिपोर्टर या उनके सम्पादकों को ‘प्रोटोकल’ के नाम पर तमाम सुविधाएं प्रदान करती हैं; जैसे कि मुफ्त टिकट देना, टिकट ‘अपग्रेड’ कर देना या गंतव्य पर पांच सितारा आतिथ्य और वाहन आदि की सुविधाएं प्रदान करना। इसका स्पष्ट उदाहरण जेट एयरवेज के अनेक घोटाले हैं।

नरेश गोयल की इस एयरलाइन ने अपने जन्म से ही इतने घोटाले किए हैं कि इसे कब का बंद हो जाना चाहिए था। किंतु नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अफसरों, राजनेताओं और मीडिया में अपने ऐसे ही संबंधों के कारण ये एयरलाइंस दो दशक से भी ज्यादा तक निडर होकर घोटाले करती रही। इन हालातों में देश के हित में जेट एयरवेज के घोटालों को उजागर करने का काम, दिल्ली के कालचक्र समाचार के प्रबंधकीय सम्पादक रजनीश कपूर ने किया। इसी आधार पर सीबीआई और सीवीसी में जेट के विरूद्ध दर्जनों शिकायतें दर्ज की और दिल्ली उच्च न्यायालय में जनहित याचिका भी दायर की। इस तरह चार वर्षो तक लगातार सरकार पर दबाव बनाने के बाद ही जेट एयरवेज पर कार्रवाई शुरू हुई। अगर केवल जेट एयरवेज के अपराधों को ही छुपाने की बात होती तो माना जा सकता था कि राजनीतिक दबाव में नागर विमानन महानिदेशालय आंखें मींचे बैठा है पर यहां तो ऐसे घोटालों का अंबार लगा पड़ा है। ताजा उदाहरण देश की एक राज्य सरकार के पायलट का है, जिसके पिता उसी राज्य के एक बड़े अधिकारी थे, वे तत्कालीन मुख्यमंत्री के कैबिनेट सचिव, जो कि स्वयं एक पायलट थे, के काफी करीबी थे। इसलिए इन महाशय की नियुक्ति ही नियमों की धज्जियां उड़ा कर हुई थी।
नियमों के अनुसार अगर अतिविशिष्ट लोगों को हवाई सेवा देने के लिए किसी पायलट की नियुक्ति होती है तो उसका मूल आधार है कि उस पायलट के पास न्यूनतम 1000 घंटो की उड़ान का अनुभव हो, लेकिन इनके पास केवल अपने पिता के संपकरे के सिवाय कुछ नहीं था।  इस पाइलट पर यह भी आरोप था कि इसने अपने आपराधिक इतिहास की सही जानकारी छुपा कर अपने लिए ‘एयरपोर्ट एंट्री पास’ भी हासिल किया था। इसकी शिकायत भी ‘कालचक्र’ ने नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बीसीएएस) के महानिदेशक  से की और जांच के बाद सभी आरोपों को सही पाए जाने पर इसका ‘एयरपोर्ट एंट्री पास’ भी हाल ही में रद्द किया गया। गनीमत है कि डीजीसीए ने इसी पाइलट की एक और गंभीर गलती पर जांच करके इसे व इसके लाइसेंस को 10 जून 2020 को 6 महीनों के लिए निलम्बित भी कर दिया है। इस पर आरोप था कि एक हवाई यात्रा के दौरान इसने बीच आसमान में को-पायलट के साथ सीट बदल कर विमान के कंट्रोल को अपने हाथ में ले लिया, जोकि न सिर्फ गैरकानूनी है, खतरनाक है, बल्कि आपराधिक कदम है।
गौरतलब है कि यह प्रकरण 2018 की जेट एयरवेज की लंदन फ्लाइट, जिसमें दोनों पायलट बीच यात्रा के कॉकपिट से बाहर निकल आए थे, से अधिक गंभीर मामला है। उस फ्लाइट की जांच के पश्चात पायलट व को-पायलट को 5 वर्ष के लिए निलम्बित किया गया था, लेकिन सूत्रों की मानें तो इस रसूखदार पायलट ने इस बात को सुनिश्चित कर लिया है कि इस निलंबन को भी वो रद्द करवा लेगा। इस पायलट पर वित्तीय अनियमिताओं के भी आरोप भी हैं और हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय ने प्रदेश के मुख्य सचिव को इनके विषय में लिखित सूचना भी दी है। इस पायलट के परिवार के तार 200 से भी अधिक कंपनियों से जुड़े हैं, जिनमें अवैध रूप से सैकड़ों करोड़ रुपयों का हेर-फेर होने का आरोप है, जिसकी जांच चल रही है। ये तो केवल एक ऐसा मामला था, जिसकी जांच डीजीसीए के अधिकारियों को करनी थी, लेकिन डीजीसीए में तैनात अधिकारी अगर स्वयं ही भ्रष्टाचार और घोटालों में लिप्त हों तो न्याय कैसे मिले? डीजीसीए में ही तैनात कैप्टन अतुल चंद्रा भी ऐसी ही संदिग्ध छवि वाले अधिकारी हैं। ये 2017 में एयर इंडिया से प्रतिनियुक्ति पर डीजीसीए में आए और आज चीफ फ्लाइट आपरेशंस इंस्पेक्टर (सीएफओआई) के रूप में कार्यरत हैं।
सीएफओआई का पद बेहद संवेदनशील होता है क्योंकि यह विमान सेवाओं और पायलट के उल्लंघनों पर नजर रखता है। गौरतलब है कि 2017 से आश्चर्यजनक रूप से चंद्रा 19 महीनों तक एयर इंडिया और डीजीसीए, दोनों से वेतन प्राप्त करते रहे, जो कि आपराधिक कृत्य है। जब 2019 में मामला उजागर हुआ तो 2.80 करोड़ रुपये में से इन्होंने 80 लाख वापस किए। फेमा और पीएमएलए के उल्लंघनों के लिए प्रवर्तन निदेशालय भी उनकी जांच कर रहा है। लेकिन आश्चर्य है कि इन सब आरोपों को दरकिनार करते हुए चंद्रा के डीजीसीए में कार्यकाल, जो 30 जून 2020 को समाप्त होना है, की अवधि बढ़ाने की पुरजोर कोशिश की जा रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भ्रष्टाचार बदार्शत नहीं होगा जैसे दावों पर भरोसा करने वाला ऐसे मामलों में तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा करेगा।

विनीत नारायण


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