मुद्दा : जीवन, प्रकृति और कोरोना का सबक
मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने मौजूदा सदी के पहले दशक में अभियान चलाने पर खास बल दिया।
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इसी तरह 21वीं सदी के दूसरे दशक (2020-2030) में पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली और जैव विविधता की सुरक्षा पर जोर रखने का संयुक्त राष्ट्र का पहले से घोषित कार्यक्रम है। पर अब जब कोविड-19 का संकट पूरी दुनिया के सामने है तो दरकार इस बात की है कि 2020 से आगे के कार्यक्रमों में मानवीय जीवन और प्रकृति से जुड़ी पहले से चली आ रही विविध चुनौतियों के बीच महामारी के संकट के आलोक में नए सिरे से मंथन हो और कार्यक्रमों-अभियानों की रूपरेखा नए सिरे से तय हो। ऐसा इसलिए क्योंकि कोविड-19 ने दुनिया के सामने एक ऐसी स्थिति ला दी है, जिसमें जीवन और प्रकृति के बचाव को लेकर पूर्व से चली आ रही तमाम प्राथमिकताएं दिशाहीन साबित हो रही हैं।
कोविड-19 के खतरे के बीच बीते कुछ महीने दुनिया ने जिस तरह ठहराव के बीच निकाले हैं, उसने हमें एक अपूर्व स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। दुनिया में हर तरह के आवागमन से लेकर सप्लाई चेन तक हर तरह की गतिशीलता इस दौरान एकदम थम सी गई। आर्थिक गतिविधियों के ठप पड़ जाने से तो करोड़ों लोगों के सामने आजीविका का संकट खड़ा हो गया है।
माना यही जा रहा है कि कोविड-19 की चुनौती का सामना हम इसलिए कर रहे हैं क्योंकि हम अपनी आदतों और रोजमर्रा के व्यवहार में खासे लापरवाह होते गए हैं। प्रकृति के साथ मानवीय संबंध की स्वाभाविकता भी इस दौरान खूब प्रभावित हुई है। लिहाजा हमारा जीवन लगातार प्रकृति से दूर होता गया है। वन्य जीवन को नुकसान पहुंचाने के साथ इस दौरान हम कई ऐसे व्यावसायिक लालच में भी पड़ते गए हैं, जिसके कारण वन्यजीवों का अवैध व्यापार खूब फला-बढ़ा है। फिलहाल नए बने हालात पर विमर्श का दौर जारी है। पर 17 जून यानी ‘विश्व मरु स्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस’ पर जिस बात को लेकर पहल और प्रतिज्ञा की सर्वाधिक दरकार है वह यह कि प्रकृति की साझी संभाल के साथ परती धरती को हराभरा हम कैसे रखें। अगर हम इस दिशा में कुछ सार्थक करने की पहल करते हैं तो हम सिर्फ प्रकृति को ही नहीं बचाएंगे बल्कि खुद के भविष्य को भी सुरक्षित कर पाएंगे। संयुक्त राष्ट्र ने रियो कन्वेंशन में 195 देशों के बीच बनी एक बड़ी सहमति के बाद 1994 में मरु स्थलीकरण रोकने को लेकर कार्यक्रम की घोषणा की। यूएनसीसीडी के कार्यकारी सचिव ने विश्व मरु स्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस के मौके पर अपने संदेश में कहा कि अनाज और धरती की साझी बर्बादी हमें बड़े खतरे की तरफ ले जा रही है। हमें अनाज और धरती की उत्पादकता दोनों को बचाना होगा, दोनों का बराबर खयाल रखना होगा। हमें यह भी देखना होगा कि अपनी आदतों और जीवनशैली में किस तरह के बदलाव लाकर हम इस दरकार को पूरा कर सकते हैं। इसे हम संतोषजनक मान सकते हैं कि भारत उन देशों में शामिल है जो इस दिशा में पहले से विभिन्न अभियानों के तहत उल्लेखनीय पहल कर रहा है।
गौरतलब है कि जल संरक्षण भी इसी से जुड़ा एक अहम मसला है। भारत सहित दुनिया के बाकी हिस्सों में जल संकट लगातार एक बड़े संकट का रूप लेता जा रहा है। लिहाजा दरकार इस बात की भी है कि अनाज और धरती के साथ पानी को भी हम बबार्द होने से बचाने को लेकर कारगर कदम उठाएं। गौरतलब है कि कोविड-19 ने हमारे सामने कई ऐसी चुनौतियां सामने ला दी हैं, जिन पर हमें देर-सवेर नहीं बल्कि अविलंब रूप से सोचना होगा। अब हमारे पास बर्बाद करने के लिए वक्त भी नहीं बचा। विश्व मरु स्थलीकरण एवं सूखा रोकथाम दिवस के रूप में हमारे सामने एक अवसर है जब हम इस बारे में ज्यादा तत्परता के साथ सोच सकते हैं, आगे के लिए पहल और प्राथमिकताएं चिह्नित कर सकते हैं। याद रहे कोविड-19 से पहले और बाद की दुनिया बिल्कुल अलग होगी। यह परिवर्तन जीवन और प्रकृति के खिलाफ नहीं बल्कि उसके पक्ष में जाए, यह हमें गंभीरता के साथ अभी ही तय करना होगा ताकि हमारा कल आज से बेहतर हो।
(लेखक आईयूसीएन, इंडिया में भारतीय प्रतिनिधि हैं)
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