मुद्दा : केजरीवाल का निर्णय असंवैधानिक?

Last Updated 11 Jun 2020 12:24:59 AM IST

जून 7 को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रेसवार्ता में कहा कि दिल्ली सरकार के अस्पतालों में सिर्फ दिल्ली के नागरिकों का ही उपचार होगा।


मुद्दा : केजरीवाल का निर्णय असंवैधानिक?

इसके बाद अगले 72 घंटे तक उनके आदेश पर मीडिया और दिल्ली के गलियारों में घमासान मचा रहा। सभी समाचार चैनल और राजनीतिक विश्लेषक उनके इस कदम पर सही-गलत की टिप्पणी करते रहे। यह स्वीकारना कठिन होगा कि दिल्ली के मुख्यमंत्री को इसकी संवैधानिक बारीकियों के बारे में पता नहीं होगा।
केजरीवाल को पता था कि यह निर्णय मूलत: प्रशासनिक एवं राजनीतिक रूप से प्रेरित है, लेकिन संविधान के तराजू पर यह खरा नहीं उतर सकता। यह भी सही है कि कोविड का फैलाव जिस प्रकार से महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि राज्यों में हो रहा है, उसी प्रकार दिल्ली भी बुरी तरह से प्रभावित है। परंतु माहौल बनता जा रहा है कि दिल्ली में उपचार बाधित है। इसी बीच केजरीवाल ने कुछ अस्पतालों पर प्राथमिकी भी दर्ज करा दी। कई डॉक्टर और जांच करने वाले लैब भी इसकी चपेट में आए। कोविड की स्थिति में एक अनसुना सा संघर्ष केजरीवाल सरकार और चिकित्सकों के बीच है। कितना सही है और कितना गलत? प्रशासनिक नियंत्रण होना चाहिए तो किस प्रकार उस लपेटे में डॉक्टर और व्यवस्था आ गई, इससे सबका विश्वास टूटेगा। अंततोगत्वा हर मरीज को अस्पताल ही जाना है। स्वाभाविक तौर से संविधान की धारा 14 और 21 का उल्लेख करते हुए उपराज्यपाल ने उनके आदेश को निरस्त कर दिया और कहा कि किसी भी भारतीय नागरिक को दिल्ली के किसी भी अस्पताल में उपचार के लिए मना नहीं किया जा सकता। उसके तुरंत बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री ने कहा कि हमें यह स्वीकार है परंतु कहीं-न-कहीं उन्होंने यह भी दर्शाया कि आगे कुछ बिगड़ता है तो उसके लिए केंद्र  सरकार जिम्मेवार होगी।

कहीं ऐसा तो नहीं था कि उन्होंने अनुमान लगा लिया था कि आने वाले दिनों में उनकी नाकामयाबी का पर्दाफाश होगा। प्रायोजित तौर से उन्होंने केंद्र सरकार और संविधान का उल्लंघन किया ताकि बाध्य होकर यह निर्णय हो। फिर तुरंत अपने लोगों से कहलवाना शुरू किया कि अब केंद्र  सरकार और एलजी की जिम्मेवारी है कि अब वे यहां की स्वास्थ्य व्यवस्था को देखें। जब हम यह बात करते हैं कि दिल्ली में नागरिकों का क्या होगा तो एक संदर्भ लाना आवश्यक है कि दिल्ली का नागरिक कौन है? अरविंद केजरीवाल का जन्म हरियाणा के भिवानी में हुआ था तो मनीष सिसोदिया का जन्म उत्तर प्रदेश के हापुड़ में। स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन का बागपत, गोपाल राय का उन्नाव उत्तर प्रदेश में जन्म हुआ। जब केजरीवाल अपने को दिल्ली वाला कहते हैं, तब उनका निर्णय अराजकता पैदा करके अपने आप को विरोधाभास की स्थिति में डालने वाला है। यह बड़ा कठोर है कि किसी राज्य के मुख्यमंत्री को उस राज्य की अराजकता के लिए दोषी ठहराएं परंतु मानसिकता के बारे में चर्चा करना उपयुक्त होगा। 20 जनवरी, 2014 को जब केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री थे और उस समय 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर दिल्ली में ऐसी परिस्थिति उत्पन्न कर दी थी कि परेड पर भी काले बादल छाने लगे थे। तब जब इस संदर्भ में उनसे पूछा गया तो उन्होंने  स्वीकारा था कि वे ‘एनारकीस्ट’ हैं। यह भी कहा था कि बिहारी 500 रु पये का टिकट कटवाकर दिल्ली आ जाते हैं और मुफ्त में 5 लाख का उपचार कराकर लौट जाते हैं। उनके इस बयान ने उनकी मानसिकता प्रदर्शित कर दी थी।  कोविड के वैश्विक संकटकाल में उन्होंने जो किया है वो पूर्णत: उनकी उसी मानसिकता को दर्शाता है जो पूर्णत: राजनीति से प्रेरित है। संयुक्त राष्ट्र के कंवेंशन में सभी के लिए स्वास्थ्य और समान अवसर का अधिकार, रोग का उपचार और नियंत्रण का अधिकार दिया गया है। कानून के तहत समानता का अधिकार से सब बराबर हैं। अलग से कोई नियम नहीं बनाया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि दिल्ली का विशेष दर्जा है। 1991 में दिल्ली राज्य बना और संविधान के अनुच्छेद 239 एए और 239 एबी में इसके प्रावधान किए गए। इसमें एक अधिकार है कि राष्ट्रपति कार्यपालिका के अध्यक्ष रहेंगे और अपने आदेशों को उपराज्यपाल के माध्यम से लागू करेंगे। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश लगभग 535 पन्ने का था जिसमें इन विषयों का समावेश है। आपदा में संकट सबके लिए आता है। केंद्र या राज्य सरकार को मिलकर इससे निपटना पड़ता है। इसमें कोई भेद नहीं हो सकता। उदाहरणस्वरूप दिल्ली में भूकंप जैसी कोई बड़ी त्रासदी हो तो क्या केंद्र सरकार पहचान करेगी कि कौन नागरिक दिल्ली का है और कौन अन्य राज्यों का?

राजीव प्रताप रुडी


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