बतंगड़ बेतुक : तलब हमारी कोरोना पर भारी
झल्लन आया और हमारी ओर निहारा, जुहार ददाजू का अभिवादन उछाला और फिर नापकर हम से दो गज की दूरी बनायी, फिर खड़े-खड़े ही अपनी जेब में हाथ डाला, सुरती का डिब्बा निकाला और खैनी मलने लगा।
![]() बतंगड़ बेतुक : तलब हमारी कोरोना पर भारी |
उसे देखकर हमारे मन में कुतुहल जगने लगा। हमने कहा, ‘क्या बात है झल्लन, हम सोचे थे कि तू खैनी से किनारा कर रहा है पर तू तो फिर से खैनी मल रहा है।’ वह बोला, ‘क्या ददाजू, खैनी छोड़ देंगे तो करेंगे क्या, लॉकडाउन में बेमौत मरेंगे क्या? आपको क्या बताएं कि बिना खैनी के हमने कितने कष्ट उठाये हैं, अब पांच के पच्चीस देकर यह पुड़िया जुगाड़ पाये हैं।’ हमने पूछा, ‘तो तूने पांच की पुड़िया के लिए पच्चीस दिया है, तुझे नहीं लगता कि तूने यह गलत काम किया है?’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, इस समय कोरोना चल रहा है और सही-गलत का हर फर्क धूप में रखी बर्फ की तरह गल रहा है। और वैसे भी तंबाकू, गुटका, खैनी स्वर्ग की यही नसैनी। तलबची रोटी के बिना रह सकता है, सुरती के बिना नहीं। और ददाजू, हम मानते हैं कि जो सुरती-खैनी खाते हैं उनके पास कोरोना के डर-भय नहीं आते हैं।’
हमने कहा, ‘तो तू कहना चाहता है कि जो सुरती खाएगा उसके पास कोरोना नहीं आएगा?’ झल्लन ने एक ताल और लगाई, थोड़ी सी रगड़ बढ़ाई और बोला, ‘कोरोना आएगा या नहीं आएगा इसे कौन बताएगा मगर पक्की बात ये है कि सुरती वाले को कोरोना का भय नहीं सताएगा।’ हमने कहा, ‘पहेलियां क्यों बुझा रहा है, सीधे बता तू क्या कहना चाह रहा है?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, जब आप तंबाकू का कोई पाउच उठाते हैं तो उसके ऊपर क्या लिखा हुआ पाते हैं। लिखा होता है कि इसे खाओगे तो बुरी मौत पाओगे। पर बताइए, मौत के डर से कोई तंबाकू खाना छोड़ता है, इस मुंह लगी से क्या कोई मुंह मोड़ता है?’ हम झल्लन की ओर देख मुस्कुराए तो उसके भी दांत निकल आये और वह बोला, ‘ददाजू, यह मृत्युंकारी बात आप भी भली भांति जानते हैं फिर भी जब हम खैनी आपकी ओर बढ़ाते हैं तो आप भी कहां मानते हैं, चुटकी लेकर बिना मौत से डरे तुरंत ओंठ के नीचे दबा लेते हैं।’ हमने कहा, ‘तो तू कहना चाहता है न कोरोना से डरना चाहिए और न खैनी से बचना चाहिए?’ वह बोला, ‘देखिए ददाजू, अब तो कोरोना भी बना रहेगा और सुरती-खैनी भी बनती रहेगी और हमारी ये जिंदगी भी इनके साथ ही चलती रहेगी। अगर डर-डर के जिएंगे तो न तो कोरोना को हरा पाएंगे और न खैनी का मजा ले पाएंगे।’ हमने कहा, ‘तो तुझे किसी से डर नहीं लगता, जिंदगी बचाने की तू कोई चिंता नहीं करता?’ वह बोला, ‘आप तो ऐसे कह रहे हो ददाजू जैसे जिंदगी बचाने की चिंता करेंगे तो फिर कभी नहीं मरेंगे। लोग तो बिना कोरोना के भी मरते हैं और बिना खैनी चखे भी मर जाते हैं, हम चाहे बचने की कितनी भी कोशिश करें पर कहां बच पाते हैं।’
झल्लन की बात में एक ऐसी दाशर्निक सच्चाई थी जो हमारे मन को लुभा रही थी पर थोड़ा सा हमारे दिमाग को भी घुमा रही थी। हमने कहा, ‘देख झल्लन, तू भले ही थोड़ा सा सच कह रहा हो पर बड़ी सच्चाई यह है कि हर इंसान मौत से डरता है और मौत से बचने का हर उपाय करता है। कोई नहीं चाहता कि वह किसी बीमारी की चपेट में आ जाये और वक्त से पहले बेमौत मारा जाये।’ झल्लन की हथेली पर रखी खैनी ठुक-पिटकर तैयार हो चुकी थी सो वह दो गज के फासले को पाटता हुआ हमारे निकट आ लिया और अपना खैनीमय हाथ हमारी ओर बढ़ा दिया। हम चाहते थे कि अभी जो वार्तालाप हुआ है उसकी थोड़ी लाज रख ली जाये और खैनी की चुटकी उठाने से इनकार कर दिया जाये। हमें शशोपंज में देख झल्लन मुस्कुराया, अपनी आंख का एक कोना दबाया और हमारे थोड़ा और करीब चला आया, फिर बोला, ‘देखिए ददाजू, मुल्क के बहादुर लोगों को देखिए, चाहे कैसा भी लॉकडाउन हो, चाहे कैसी भी पाबंदी हो, उन्हें जहां भी जरा भी मौका मिलता है कोरोना को धता बताकर बाहर निकल आते हैं और जिनको भी पान-तंबाकू, गुटका-खैनी के शौक पूरे करने हों वे पूरे करके तुरत-फुरत खिसक जाते हैं। उनके दिल-दिमाग में न कानून रहता है न कोरोना रहता है, जरा सी छूट मिलते ही उनके सारे डर-भय निकल जाते हैं। हमने कहा, ‘देख भाई, जिंदगी जीने के लिए थोड़ा डरना भी जरूरी है और डर के बिना इंसान की जिंदगी अधूरी है।’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, ये जिंदगी भी उल्टी गंगा बहाती है जो सबसे ज्यादा सुरक्षित हैं उन्हें ही सबसे ज्यादा डराती है। असुरक्षित आम आदमी को निडर रहने की आदत होती है सो वह निडर ही रहेगा, न खैनी से डरेगा न कोरोना से डरेगा। कोरोना आया है तो बेचारा चला भी जाएगा, वह चाहे जितना जोर लगा ले हमारे बहादुर लोगों की यह आदत नहीं बदल पाएगा। इस मुल्क के बहादुर लोगों से इतना तो सीख लीजिए, झिझक-संकोच मत कीजिए, खैनी उठाइए और ओठों में दबा लीजिए।’
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