सरोकार : न्यूजीलैंड सरकार खत्म करेगी पीरियड पावर्टी
न्यूजीलैंड की हाई स्कूल में लड़कियों को अब सेनिटरी पैड्स खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वहां की सरकार ने ऐलान किया है कि वह एक ऐसा बिल लाने जा रही है जो पीरियड पावर्टी को खत्म करेगा।
न्यूजीलैंड सरकार खत्म करेगी पीरियड पावर्टी |
पीरियड पावर्टी यानी पीरियड्स के दिनों में सेनिटरी पैड्स न खरीद पाने की स्थिति। वहां की प्रधानमंत्री जेसिंडा ऑर्डर्न का मानना है कि मासिक धर्म में सेनिटरी पैड्स का इस्तेमाल कोई लग्जरी की बात नहीं-एक बहुत जरूरी चीज है। वहां की बहुत-सी लड़कियां पीरियड्स के दिनों में स्कूल जाने से कतराती हैं क्योंकि वे महंगे पैड्स या टैम्पन्स नहीं खरीद पातीं। ऐसी लगभग 95,000 लड़कियां हैं, जिनकी उम्र नौ से 18 साल के बीच है। इसके अलावा न्यूजीलैंड में भी वंचित क्षेत्रों में लड़कियां पीरियड्स के दौरान टॉयलेट पेपर, न्यूजपेपर और कपड़े के टुकड़ों का इस्तेमाल करती हैं।
वैसे यह भारत जैसी ही स्थिति है क्योंकि हमारे यहां भी हर पांच में से एक लड़की पीरियड्स के दौरान स्कूल नहीं जाती यानी महीने के चार से पांच दिन वह स्कूल से अनुपस्थित रहती है। इसके अलावा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़े कहते हैं कि देश में सिर्फ 57 फीसद औरतें पीरियड्स के समय सुरक्षित और साफ-सुथरे उपाय कर पाती हैं। बाकियों को असुरक्षित तरीके अपनाने पड़ते हैं। वैसे लड़कियों को सेनिटरी पैड्स या दूसरी तरह की सुविधाजनक चीजें नहीं मिल पातीं तो यह न सिर्फ शर्म की बात होती है, बल्कि इससे उन पर लैंगिक आर्थिक दबाव भी बनता है। अगर सरकार की तरफ से कोई पहल की जाती है, तो यह एक तरह का निवेश ही होता है।
न्यूजीलैंड एक महिला प्रधानमंत्री वाला देश है। वहां की सत्ताधारी लेबर सरकार बच्चों में गरीबी की स्थिति को भी खत्म करना चाहती है। वहां की महिला मामलों की मंत्री जूली एने जेंटर का कहना है कि मासिक धर्म दुनिया की आधी आबादी के जीवन की सच्चाई है, लेकिन हम इस पर इस तरह से नहीं सोचते। वहां की सरकार ने यूथ 19 सर्वे में पाया था कि 9 से 13 वर्ष की 12 फीसद लड़कियां सेनिटरी पैड्स या दूसरे सुविधाजनक साधन नहीं खरीद पातीं। हर 12 में से एक लड़की इसके कारण महीने के चार से पांच दिन स्कूल नहीं आती। ओटागा यूनिर्वसटिी के कुछ अध्ययन बताते हैं कि जो लड़कियां गरीबी के कारण ऐसा नहीं कर पातीं, उनके स्वास्थ्य, भावनात्मक विकास, शिक्षा और कॅरियर की संभावनाओं पर असर पड़ता है।
न्यूजीलैंड में महिला प्रधानमंत्री हैं, तो यह स्थिति समझती हैं पर आम तौर पर पुरु ष मासिक धर्म को महिलाओं की समस्या के तौर पर ही देखते हैं। लॉकडाउन में बड़ी जद्दोजहद के बाद सेनिटरी पैड्स को अनिवार्य वस्तु माना गया और फिर इसकी मैन्युफैक्चरिंग पर लगा प्रतिबंध हटा। इसके पहले तमाम विरोधों के बाद सरकार ने सेनिटरी पैड्स पर जीएसटी हटाया। लेकिन वह सिर्फ फिनिश्ड प्रॉडक्ट से हटाया गया। इसे बनाने में लगने वाले कच्चे माल से नहीं। इसके कारण पैड्स की कीमतें कम नहीं हुई। दरअसल, सरकार महिला सशक्तीकरण और शिक्षा पर खर्च करना पसंद करती है, मुफ्त सिलिंडर बांटती है, पर मैन्सट्रुएल हेल्थ पर खर्च करने के बारे में नहीं सोचती क्योंकि बाकी की योजनाएं आकषर्क लगती हैं। लेकिन अगर लड़कियों और औरतों की सेहत अच्छी नहीं होगी तो उनका सशक्तीकरण कैसा?; और उनका पढ़ना-पढ़ाना भी कैसा? हां, इसके लिए आपको न्यूजीलैंड से सीखना होगा।
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