सरोकार : औरतों साथ काम करने से दुनिया बेहतर बनती है
नौकरियों में भेदभाव खराब बात है। न सिर्फ उनके लिए जिनके साथ भेदभाव होता है, बल्कि पूरे समाज के लिए।
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क्योंकि भेदभाव के जरिए प्रतिभाओं को उभरने नहीं दिया जाता। तो महिलाएं अपने संगठनों में वरिष्ठ पदों पर पहुंचती हैं तो यह लैंगिक समानता का मसला समझा जाता है। लेकिन यह सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं होता। इससे हर मोर्चे पर समानता कायम होती है। हाल ही में न्याय व्यवस्था पर केंद्रित एक शोध में इस बात का पता चला है। अमेरिका में वरिष्ठ न्यायाधीशों द्वारा लॉ क्लर्क्स की भर्तियों पर एक अध्ययन किया गया तो पता चला कि महिला न्यायाधीशों के साथ काम करने वाले पुरु ष न्यायाधीशों द्वारा महिला लॉक क्लर्क की नियुक्ति करने की अधिक संभावना होती है।
महिला न्यायाधीशों के ऐसा करना कोई नई बात नहीं पर पुरु ष न्यायाधीशों द्वारा ऐसा करना साबित करता है कि साथ-साथ काम करके, आप किसी जेंडर की काबलियत पर अधिक भरोसा कर सकते हैं। अध्ययन के अनुसार, अगर विभिन्न कंपनियों के मालिक इस बात को लेकर संशयग्रस्त हैं कि वे नौकरियों पर किस प्रकार विविध प्रकार के लोगों को रखें तो उन्हें अपना जवाब मिल गया होगा। वैसे महिलाओं को ऊंचे पदों पर बैठे देखना लोगों को पसंद नहीं। 2014 में हैरी पॉटर सीरिज की ब्रिटिश एक्ट्रेस एमा वॉटसन ने यूएन विमेन गुडविल एंबेसेडर के तौर पर कहा था कि लोग स्कूल में उन्हें बॉसी कहकर चिढ़ाते थे तो कुछ अजीब नहीं लगा था। ऐसा उन लड़कियों को अक्सर कहा जाता है, जो पहल करती हैं, या जिनमें नेतृत्व का गुण होता है। हमें कुछ इस तरह की लड़कियां पसंद नहीं आतीं। लड़कियां दबी-सहमी, चुपचाप अपना काम करने वाली हों, तो ही अच्छी लगती हैं। कुछ वक्त पहले फिक्की के महिला संगठन एफएलओ के सर्वेक्षण में भी कहा गया था कि भारतीय कंपनियां औरतों को नेतृत्व वाले पदों के लायक नहीं समझतीं।
सर्वेक्षण में शामिल सिर्फ 6 फीसद कंपनियों के इंडिपेंडेंट डायरेक्टरों में औरतों और आदमियों को बराबर का प्रतिनिधित्व मिला हुआ है। 31 फीसद कंपनियों में सीनियर मैनेजमेंट पदों पर 5 फीसद से भी कम औरतें हैं। नेतृत्व वाले पदों पर औरतों की मौजूदगी जरूरी है। मल्टीनेशनल ह्यूमन रिसोर्स कंसल्टिंग फर्म रैंडस्टेड ने 2014 में एक स्टडी की थी। उसमें कहा गया था कि जिन कंपनियों के प्रोफेशनल सीईओ में औरत और मर्द, बराबर संख्या में थे, वहां रिटर्न ऑन इक्विटी (आरओई) यानी लाभपरकता में 4.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी। लेकिन जिन कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में सिर्फ मर्द थे, उनका आरओई सिर्फ 1.8 प्रतिशत था।
मशहूर लेखिका और मैनेजमेंट कंसल्टेंट अपर्णा जैन की किताब है-ओन इट-लीडरशिप लेसंस फ्रॉम विमेन हू डू। इसमें सीनियर पदों पर काम करने वाली औरतों की आपबीती है। उन्हें कैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। पढ़िए और जानिए कि गैर-यौन शोषण कितना खतरनाक हो सकता है। भेदभाव के कितने प्रकार हो सकते हैं- माइक्रोअसॉल्ट, जिसमें नाम लेकर जानबूझकर चोट पहुंचाई जाती है, आपको अवॉयड किया जाता है। माइक्रोइंसल्ट, जिसमें मौखिक या गैर-मौखिक रूप से रूखापन और असंवेदनशीलता दिखाई जाती है। माइक्रोइनवैलिडेशन, जिसमें किसी की सोच, अनुभव या भावनाओं को बार-बार नकारा जाता है। यह किताब उन सबका बहुत अच्छी तरह से खुलासा करती है।
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