महाराष्ट्र : चमक-दमक की असलियत
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने जब महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री बनने का फैसला किया तब कम ही लोगों को पता था कि उन्होंने कितना बड़ा त्याग किया था।
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ठाकरे परिवार की कभी चुनाव न लड़ने की परंपरा का त्याग किया था। सरकार में कोई पद न लेने की की परंपरा का त्याग किया था। मुख्यमंत्री बनने के लिए अपने कई वर्षो के केसरिया गठबंधन का भी त्याग किया। ऐसे त्यागी राजनीतिज्ञ को मुख्यमंत्री बनने में समस्या नहीं होनी चाहिए थी।
मगर राजनीति जो न करवाए वही कम है। नियमानुसार मुख्यमंत्री बनने से पहले विधायक नहीं हैं, तो उन्हें किसी सदन का सदस्य बनना पड़ेगा। उद्धव ने सोचा यही था कि विधान परिषद चुनाव में कहीं से जीत जाएंगे या विधान परिषद में साहित्यकार आदि रूप में मनोनीत हो जाएंगे। लेकिन यह बात जितनी आसान लगती थी उतनी थी नहीं। राज्यपाल ने उद्धव की वन्य जीवन के फोटोग्राफर होने की योग्यता पर ध्यान नहीं दिया और चुनाव आयोग से विधान परिषद के अपचुनाव कराने का निर्देश दिया। इससे ठाकरे के सामने मंडरा रहा संकट दूर हो गया कि विधान परिषद के सदस्य बनेंगे कैसे।
महाराष्ट्र में नौ राज्य विधान परिषद सीटों पर 21 मई को चुनाव होने जा रहा है। सत्तारूढ़ शिवसेना ने इस चुनाव में उद्धव और पार्टी की वरिष्ठ नेता एवं विधान परिषद की उपसभापति नीलम गोरे की उम्मीदवारी पर मुहर लगा दी है। सो, उद्धव की मुश्किलें कम होती नजर आ रही हैं। बता दें कि ठाकरे न तो विधानसभा के सदस्य हैं और न ही विधान परिषद के। संविधान के अनुसार पद ग्रहण करने के छह माह के भीतर उनका विधानसभा या विधान परिषद, दोनों में से किसी एक का सदस्य निर्वाचित होना जरूरी है अन्यथा मुख्यमंत्री पद त्यागना होगा। पार्टी के एक नेता ने जानकारी देते हुए बताया कि महाविकास अघाड़ी की वर्तमान संख्या को देखते हुए हम ऊपरी सदन में दो उम्मीदवारों को आसानी से चुनवा सकते हैं। बताया कि ठाकरे अगले कुछ दिन में नामांकन दाखिल करेंगे।
चुनाव आयोग की अधिसूचना के अनुसार नामांकन की अंतिम तारीख 11 मई है और नामांकन वापस लेने के अंतिम तारीख 14 मई है। इस बीच, महाराष्ट्र में कोरोना का रोना तेज हो गया है। कोरोना की मातमी चाल ने मुंबई को बैकफुट पर ढकेल दिया है। यही वजह है कि मुंबई में एक दिन पहले दुकान खोलने की दी गई इजाजत 24 घंटे बाद ही वापस ले ली गई। बीएमसी ने साफ कह दिया है कि मुंबई में अगले आदेश तक अब सिर्फ दवा और राशन की दुकानें ही खुलेंगी। शराब की दुकानें भी बंद कर दी गई हैं। इसके अलावा, गैर-जरूरी सामान की दुकानों को दी गई ढील भी वापस ले ली गई है। बीएमसी ने ऐसा फैसला मुंबई में कोरोना के तेज होते हमले के मद्देनजर किया है। गौरतलब है कि बीते 24 घंटे में मुंबई में 26 मरीजों की मौत हो चुकी है, जबकि 635 नये मामले सामने आए हैं। मुंबई में कोरोना के मरीजों की संख्या करीब 10 हजार पहुंचने वाली है और 387 मरीजों की जान जा चुकी है।
मुंबई के लिए सबसे बड़ी टेंशन एशिया की सबसे बड़ी स्लम धारावी दे रही है। यहां एक दिन में 33 नये मामले सामने आए हैं, जबकि 665 लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं। मुंबई में कोरोना के खतरे को देखते हुए कल्याण डोंबिवली नगर पालिका ने आवश्यक सेवाओं में काम करने वाले लोगों की आवाजाही पर 8 मई से बैन लगाने का फैसला किया है। वहां छह से ज्यादा 552 नये मामले सामने आए हैं और राज्य में संक्रमितों का आंकड़ा 4,200 पर पहुंच गया है। इनमें से मुंबई में ही 456 मामले शामिल हैं। मुंबई में तीन हजार के करीब संक्रमित हो गए हैं। मुंबई की धारावी बस्ती के शाहू नगर थाने के चार पुलिसकर्मी भी संक्रमित पाए गए हैं।
राज्य विधान परिषद में 288 सीटें हैं, जिनमें भाजपा 105 विधायकों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है। इसके बाद शिवसेना, राकांपा और कांग्रेस के क्रमश: 56, 54 और 44 विधायक हैं। उद्धव ने बुधवार को मोदी को फोन कर महाराष्ट्र के राजनीतिक संकट में हस्तक्षेप करने का आग्रह किया था। पीएम ने उन्हें मामले पर गौर करने का भरोसा दिलाया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ठाकरे ने महाराष्ट्र विधान परिषद में अपने मनोनयन को लेकर मोदी से फोन पर बात की और सरकार बचाने के लिए मदद मांगी। कथित तौर पर कहा कि अगर वह उच्च सदन में नामित नहीं होते हैं, तो उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना होगा। ठाकरे ने 28 नवम्बर, 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। महाराष्ट्र जितनी तेजी से कोरोना की चपेट में आ रहा है, उससे यह तो स्पष्ट है कि महाराष्ट्र का मख्यमंत्री पद फूलों की सेज नहीं, कांटों का ताज है। इस मामले में उद्धव के मार्गदशर्क शरद पवार भी कोई मदद नहीं कर पा रहे। उन्हें भी कहां कोरोना जैसी बीमारी से लड़ने का अनुभव है। कहा गया कि वह निष्पक्ष रह कर काम कर रहे हैं। तभी वाधवन का मामला हुआ। उससे साफ हो गया कि सरकार पर ठाकरे की पकड़ कमजोर है। पालघर में साधुओं की हत्या हुई जिसने ठाकरे को बेनकाब कर दिया। हत्या के समय 700 लोग इकट्ठा थे। इतने लोग उस लॉकडाउन में क्या कर रहे थे। इस हकीकत ने ठाकरे की छवि को तार तार कर दिया।
इस बीच उजागर हो गया कि मुख्यमंत्री बनने के लिए उद्धव ने अपनी विचारधारा को तिलांजलि दे दी है। लोगों को लग रहा है कि उद्धव न मराठी मानुस के हो पाए न हिंदुत्व के। हुए तो सिर्फ कुर्सी के। इस बीच कोरोना जिस तेजी से फैल रहा है, उसने उद्धव की असलियत उजागर कर दी कि उन्हें कोई प्रशासनिक अनुभव नहीं है। मुंबई में धारावी जैसी कई विशाल झुग्गी बस्तियां हैं। उन पर स्लमडॉग मिलेनियर जैसे उपन्यास लिखना या गली ब्वॉय फिल्म में अपना टाइम आएगा जैसे गाने लिखना आसान है मगर इन्हीं स्लम के कारण आज मुंबई कोरोना के आग के ढेर पर आ पहुंची है। यह हालत मुंबई के हालात को असह्य बना रहे हैं। आखिर, मुंबई क्या है एक विशाल स्लम। ऊपरी चमक-दमक इस असलियत को कब तक छुपा पाएगी?
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