जीवन
मनुष्य के अलावा सभी जीव जानते हैं कि वे यहां जीवन जीने के लिए हैं।
![]() जग्गी वासुदेव |
बात बस यह है कि उनके लिए जीने का अर्थ है- खाना, सोना, बच्चे पैदा करना और मर जाना- उनका जीवन इसी में पूर्ण हो जाता है। पर जब आप एक मनुष्य के रूप में आते हैं तो आप चाहे जितना खा सकते हैं, जितना चाहे उतना सो सकते हैं, चाहे जितने बच्चे पैदा कर सकते हैं-पर फिर भी कुछ है कि जीवन पूर्ण नहीं होता। आप के अंदर के जीवन को कुछ और चाहिए।
अगर वो ‘कुछ और’ नहीं होता तो आप को अधूरापन लगता है। अभी ये जो ‘सप्ताहांत लोग’ हैं-बस सप्ताह के अंत में जीने वाले-वे बस अपने अंदर शराबें उड़ेलते हैं क्योंकि उनके अंदर जीवन का कोई भाव ही नहीं है। मुझमें जीवन का भाव इतना ज्यादा है कि मुझे बाहर से कुछ भी अंदर लेने की जरूरत ही महसूस नहीं होती। सिर्फ वो जिनमें जीवन का भाव नहीं है, खो गया है, उन्हें ही शराब निगलने की जरूरत पड़ती है।
उन्हें छुट्टी की जरूरत है- यह बिल्कुल ठीक है पर यह बात बहुत महत्त्वपूर्ण है कि जीवन और कामकाज में कोई अंतर न रखें। यह समझना महत्त्वपूर्ण है कि जिस क्षण हम पैदा होते हैं, तब से जब तक हम मर नहीं जाते, हम क्या कर रहे हैं-बस, जीवन, जीवन और जीवन-और कुछ नहीं, बस जीवन! आप जो कर रहे हैं वो अगर आप का जीवन नहीं है, तो कृपया इसे मत कीजिए। आप में से अधिकतर लोग अपने परिवार की अपेक्षा अपने काम के साथ ज्यादा समय बिताते हैं। तो फिर ऐसा क्यों है कि वो (परिवार) आप का जीवन है पर यह (कामकाज) नहीं है।
कामकाज भी जीवन है। जीवन का एक आयाम है-वो जीवन का दूसरा आयाम है। समय किस तरह से बांटें, कितना अवकाश आप को लेना चाहिए-ये बातें अलग- अलग लोगों के लिए अलग-अलग हो सकती हैं। यदि आप हर सप्ताहांत में घर पर होते हैं तो शायद आप के परिवार को इससे खुशी मिलती है। किसी और परिवार में शायद वे न चाहते हों कि आप हर सप्ताहांत में घर पर रहें। यह अलग व्यक्तियों, या अलग परिस्थितियों में अलग-अलग हो सकता है। यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि जिस क्षण हम पैदा होते हैं, तब से जब तक हम मर नहीं जाते, हम क्या कर रहे हैं-बस, जीवन, जीवन और जीवन-और कुछ नहीं, बस जीवन!
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