कोरोना से जंग : पुलिस का करें सहयोग

Last Updated 20 Apr 2020 12:29:58 AM IST

आज जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है, भारत में पुलिसवालों या कहें कोरोना के जांबाजों को एक अलग ही तरह के समस्या का सामना करना पड़ रहा है।


कोरोना से जंग : पुलिस का करें सहयोग

इंदौर हो, पटियाला हो, राजस्थान, या मुरादाबाद हो, जिस तरह से पुलिसकर्मिंयों को कुछ खास इलाकों में जाहिल लोगों के गुस्से का सामना करते हुए अपना फर्ज निभाना पड़ रहा है वो काबिलेतारिफ है।
सोशल मीडिया पर आपको ऐसे कई वीडियो देखने को मिलेंगे, जहां पुलिसकर्मी अपने घर भी नहीं जा पा रहे हैं। यदि वो अपनी ड्यूटी करने की जगह से दोपहर का भोजन करने भी घर जाते हैं तो परिवार से दूर, खुले आंगन में ही भोजन कर तुरंत ड्यूटी पर लौट जाते हैं। उनके छोटे बच्चे उन्हें घर पर कुछ देर और ठहरने के लिए फिर याद करते रह जाते हैं। विश्व के अन्य देशों के मुकाबले अगर हमारे देश में अगर कोरोना के कहर की रफ्तार फिलहाल कम है तो वो केवल मोदी जी के लॉक-डाउन के इस सख्त कदम और उसे लागू करने में इन पुलिसकर्मिंयों की वजह से है। सड़कों पे तैनात इन पुलिसकर्मिंयों को कड़ी धूप में रह कर अपनी ड्यूटी करनी पड़ रही है। कई जगह तो इनके सर पर कनात तक नहीं है। लेकिन सिर्फ  कनात होने से काम नहीं चलता। आने वाले दिनों में पारा और ऊपर जाएगा तो पूरी बाजू की वर्दी पहन कर ड्यूटी करना इनके लिए और कठिन हो जाएगा। आपने पढ़ा होगा कि कुछ जाहिल लोगों ने किस बेदर्दी से पटियाला पुलिस के अफसर हरजीत सिंह का हाथ काटा।

जरा सोचें इसका क्या असर पुलिस फोर्स के मनोबल पर पड़ेगा? ये घोर निंदनीय कृत्य था, जिसका पूरे समाज को ताकत से विरोध करना चाहिए। हमें सोचना चाहिए कि चाहे वो महिला पुलिसकर्मी हों या पुरुष इनका योगदान हमारे जीवन की रक्षा के लिए अतुल्य है। जहां ये पुलिसकर्मी न सिर्फ  सड़कों पर तैनात हो कर दिन रात चैकसी से अपनी ड्यूटी कर रहे हैं वहीं जरूरतमंदों को राशन व अन्य जरूरी सामान भी पहुंचा रहे हैं। महिला पुलिसकर्मी अपने अपने थानों में रहकर न सिर्फ  अपनी सामान्य ड्यूटी कर रही हैं बल्कि जरूरतमंदों के लिए फेस मास्क भी सिल रहीं हैं। कुछ शहरों से तो ये भी खबर आई है कि पुलिसकर्मी बेजुबान जानवरों को भी भोजन दे रहे हैं। इसलिए प्रधानमंत्री हों, आम लोग हों या मशहूर हस्तियां, आज सभी लोग बढ़-चढ़ कर इन जांबाजों की खुलकर तारीफ कर रहे हैं। यहां तक कि कोरोना से लड़ने वाले डॉक्टर भी इन पुलिसकर्मिंयों के सहयोग के बिना कुछ नहीं कर पाएंगे। इसलिए हम सबको, चाहे हम किसी भी धर्म या जाति के हों बिना किसी के उकसाये में आए पुलिस विभाग के इन वीरों को सम्मान देना चाहिए।
जहां तक संभव हो उनकी देखभाल भी करनी चाहिए। आपके घर के पास तैनात पुलिसकर्मी को चाय-पानी पूछना तो मानवता का सामान्य तकाजा है। आज अगर पुलिसकर्मी अपनी ड्यूटी ठीक से न करें तो लॉक-डाउन के बेअसर होने में देर नहीं लगेगी। कौन जाने फिर हमारे देश में भी कोरोना से संक्रमित होने वालों की संख्या अमेरिका से अधिक हो जाए। लिहाजा समय की मांग ये है कि हम सब जब अपने-अपने घरों में आराम से बैठे हैं तो हम से जो भी बन पड़े इन पुलिसकर्मिंयों का सहयोग करना चाहिए। वो सहयोग किसी भी तरह से हो सकता है।
युवा साथी स्वयंसेवकों कि तरह उनसे सहयोग करें। हर मोहल्ले में प्रवेश और निकासी पर कुछ जिम्मेदार नागरिक भी अपनी सेवाएं भी दे सकते हैं। अगर आपके मोहल्ले में या आसपास में कुछ मजदूर या कामगार लोग रहते हैं तो उन्हें भोजन बांटने में भी आप पुलिस का सहयोग करें। इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि अगर ये पुलिसकर्मी, जो अपनी जान खतरे में डालकर हमारी जान बचा रहे हैं, तो इनका आभार प्रकट करने के लिए हमें प्रधानमंत्री मोदी की अपील का इंतजार न करना पड़े बल्कि हम स्वयं ही ये कार्य करें। आज जाहिल जमातियों ने अपने लोगों में ऐसा डर फैला दिया गया है कि जो भी डॉक्टर इनकी जांच के लिए इनके इलाके में आ रहा है वो इन्हें गिरफ्तार करने आए हैं, जबकि ये सत्य नहीं है। इसलिए इसी समाज के चर्चित चेहरों को अपने समाज के लोगों से ये अपील करनी चाहिए कि वो सभी पुलिसकर्मिंयों और डाक्टरों का सहयोग करें और जैसा सिनेस्टार सलमान खान ने भी कहा कि ऐसा न करके वे न सिर्फ अपनी ही मौत का कारण बन रहे हैं बल्कि समाज के लिए भी एक खतरा बनते जा रहे हैं।
जिस तरह से समाज के कई वगरे  से गरीबों व जरूरतमंदों को भोजन व राशन मुहैया कराया जा रहा है ठीक उसी तरह सरकार और समाजसेवी संस्थाओं को कोरोना के युद्ध में जुटे इन सिपाहियों के बारे में भी कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए। गौरतलब है कि 1977 में बनी जनता पार्टी की पहली सरकार ने एक ‘राष्ट्रीय पुलिस आयोग’ का गठन किया था, जिसमें तमाम अनुभवी पुलिस अधिकारियों व अन्य लोगों को मनोनीत कर उनसे पुलिस व्यवस्था में वांछित सुधारों की रिपोर्ट तैयार करने को कहा गया।
आयोग ने काफी मेहनत करके अपनी रिपोर्ट तैयार की पर बड़े दुख की बात है कि इतने बरस बीतने के बाद भी आज तक इस रिपोर्ट को लागू नहीं किया गया। इसके बाद भी कई अन्य समितियां बनी, जिन्हें यही काम फिर-फिर सौंपा गया। आज तक भारतीय पुलिस की जो छवि है वो जनसेवी की नहीं अत्याचारी की रही है। लेकिन कोरोना के कहर के समय जिस तरह पुलिसकर्मी आज जनता के रक्षक के रूप में उभर के आए हैं, लगता है कि सरकार को अब पुलिस सुधार के लिए अवश्य कुछ करना चाहिए। पर लाख टके का सवाल यह है कि क्या हो यह तो सब जानते हैं, पर हो कैसे ये कोई नहीं जानता। राजनैतिक इच्छाशक्ति के बिना कोई भी सुधार सफल नहीं हो सकता। अनुभव बताता है कि हर राजनैतिक दल पुलिस की मौजूदा व्यवस्था से पूरी तरह संतुष्ट है। क्योंकि पूरा पुलिस महकमा राजनेताओं की जागीर की तरह काम कर रहा है। जनता की सेवा को प्राथमिकता मानते हुए नहीं। फिर बिल्ली के गले में घंटी  कौन बांधे?

विनीत नारायण


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