सोशल मीडिया : कुछ दिन तो रहें दूर
आज जहां सूचना प्रौद्योगिकी और संचार क्रांति के साथ हम 21वीं सदी में नये-कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं, वहीं चीन के वुहान शहर में निकला कोविड-19 वायरस काल बनकर सारे विश्व में फैल गया है।
सोशल मीडिया : कुछ दिन तो रहें दूर |
इस वायरस ने अपना ग्रास मानव शरीर को बनाया और धीरे-धीरे यह बड़ी चुनौती बनकर हमारे समक्ष खड़ा हो गया। स्वयं को विकसित राष्ट्र का दंभ भरने वाले भी इससे अछूते नहीं हैं।
जिस तरह से विश्व भर के लोग इस वायरस से संक्रमित हो रहे हैं तथा मृत्यु दर का ग्राफ जिस तेजी से बढ़ा है, उसने सभी राष्ट्र और उनके राष्ट्राध्यक्षों की नींद उड़ा डाली है। हमारे देश में भी लोग इस संक्रमण की चपेट में आते जा रहे हैं। आज विश्व के अलग-अलग भागों में घटित घटनाओं के साक्षी हम सोशल मीडिया के कारण बने हैं। देश दुनिया में हो रहे विभिन्न प्रयासों और तकनीकी के विषय में भी जानकारी हमें सोशल मीडिया के माध्यम से ही मिल रही है। वैश्विक स्तर पर फैली इस महामारी के कारण लोग सोशल मीडिया और सोशल डिस्टेंस बनाए हुए हैं फिर भी एक दूसरे से जुड़े हैं। कहीं भी हो रही घटना की जानकारी तुरंत ही सोशल मीडिया पर उपलब्ध हो पा रही है, जन जागरण से जुड़े अभियानों के विषय में सटीक सूचनाएं केवल इसी माध्यम से संभव हो पा रही है। मानव और मशीन के माध्यम यह एक अद्भुत संबंध है, जिसने मानव के विकास में जहां एक और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है वहीं दूसरी ओर इसी सोशल मीडिया ने काफी हद तक मानव जाति को अपना दास बना लिया है।
हाल ही में हार्वड यूनिर्वसटिी के टी. एच. चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में हुए एक शोध ‘एसोसिएशन बिटवीन सोशल मीडिया यूज एंड मेंटल हेल्थ एंड वेल बीइंग’ के निष्कषरे से पता चलता है कि लोग सोशल मीडिया का प्रयोग किस प्रकार कर रहे हैं, जिसका सीधा संबंध उनकी मानसिक सेहत से जुड़ा हुआ है। इसके प्रभाव को प्रत्यक्ष रूप से आज के संदर्भ में देखा जा सकता है। कोविड-19 महामारी के तेजी से फैलते संक्रमण और मृत्यु दर के आंकड़ों को देखते हुए विश्व भर में राष्ट्राध्यक्षों द्वारा एक निश्चित समय के लिए जनता कर्फ्यू तथा लॉक-डाउन घोषित किया गया। आम जनमानस इसकी गंभीरता को समझते हुए अपने-अपने परिवारों के साथ घर में बंद हो गए। सोशल मीडिया के माध्यम से बार-बार ‘सोशल डिस्टेंस मेंटेन’ करने और ‘स्टे-होम; स्टे-सेफ’ आदि के लिए अपील जारी की गई है। परंतु कुछ ही दिनों में आमजन के मन-मस्तिष्क पर घर बंदी का नकारात्मक प्रभाव पड़ने लगा। परिवार में जितने लोग मौजूद हैं, उनके सामने यह एक विकराल प्रश्न है कि इस अनिश्चितता में समय कैसे व्यतीत किया जाए। इसका हाल हाथ में मौजूद मोबाइल और उसमें डाउनलोड की हुई अनिगनत एप्स ने काफी हद तक निकाल दिया। सुबह सवेरे उठते ही सर्वप्रथम मोबाइल का दर्शन और उसमें आए संदेशों को चेक करके प्रतिउत्तर देने में समय बीतता है। एक ही कमरे में बैठे सभी सदस्य अपने-अपने सोशल मीडिया पर एक-दूसरे से बिल्कुल बेखबर होते हैं। यही आलम रात को सोने से पहले का होता है। कोरोना से तो हम लड़ ही रहे हैं पर मनुष्य ने जो खुद से यह लड़ाई छेड़ी है उससे वह बिल्कुल बेखबर है कि कब वह इस वर्चुअल दुनिया में प्रवेश कर गया और भयंकर अवसाद से ग्रसित हो गया । इस अवसाद के कारण मनुष्य ने अपने जीवनचर्या को तो काफी हद तक खराब कर ही लिया है, साथ-साथ अपनी मानसिक सेहत को भी खराब कर लिया है। सोशल मीडिया से प्राप्त फेक न्यूज पर तुरंत उग्र हो जाना, किसी की पोस्ट पढ़कर शाब्दिक कुतर्क करना, एडिटेड वीडियो क्लिप्स देखकर या अप्रिय भाषणों को सुनकर तीखी प्रतिक्रिया करना सब सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रयोग का ही परिणाम है।
हम दिनभर नकारात्मक विचारों से ग्रसित रहते हैं और सोशल मीडिया से प्राप्त आधी-अधूरी जानकारी के बोझ को अपने मस्तिष्क पर ढोते रहते हैं। हमने अपनी सबसे अनमोल संपत्ति यानी अपनी सेहत को ताक पर उठा कर रख दिया। यह समय है शांत मन और मस्तिष्क से सोचने का कि इस वर्चुअल दुनिया की दासता से मुक्त किस प्रकार हुआ जाए। कल्याण का मार्ग अपने घर से प्रारंभ होता है। अपने शौक दुबारा से जिंदा किए जाएं और उन्हें परिवार के अन्य सदस्यों के साथ जिया जाए। बच्चों के साथ वक्त बिताया जाए और उनके संग अपने बचपन की यादों, अपने अनुभवों को साझा करें। घर के कार्यों के निष्पादन में यथासंभव मदद करें। सबसे जरूरी कुछ दिन सोशल मीडिया से भी दूरी बना ली जाए। जिंदगी का फलसफा बस इतना ही है कि ईश्वर के अलौकिक उपहार यानी जीवन हर क्षण को भरपूर जिया जाए।
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