कोरोना संकट : बर्बादी के कगार पर किसान

Last Updated 02 Apr 2020 01:09:47 AM IST

दुनियां भर में फैले कोरोना संकट और लॉक-डाउन के बीच पिछले दिनों देश में विभिन्न इलाकों खास तौर से उत्तर भारत में हुई बेमौसम बारिश, तेज हवाएं और ओलावृष्टि किसानों के लिए भारी आफत लेकर आई है।




कोरोना संकट : बर्बादी के कगार पर किसान

इसकी वजह से देश के उत्तरी, मध्य और पश्चिमी क्षेत्र में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है। पूरे उत्तर भारत में गेहूं और सरसों की फसल के अलावा सब्जियों की उपज को भी भारी नुकसान पहुंचा है। ओलवृष्टि से उत्तर भारत में गेहूं, मटर, आलू और तिलहन की लाखों हेक्टेयर फसल बर्बाद हो गई हैं। 
मार्च के महीने में देश के कई में हिस्सों मौसम का मिजाज बदला और इस बदले मौसम का सबसे ज्यादा खमियाजा किसानों को उठाना पड़ा है। देश के कई हिस्सों में ओले गिरने की वजह से गेहूं की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र आदि राज्यों में किसान बर्बादी के कगार पर पहुंच गए हैं। उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड और पूर्वाचल से लेकर पश्चिमी जिलों तक में खेतों में गिरी पड़ी फसलों को देखकर किसान बेहाल हैं।  
कृषि मंत्रालय का अनुमान है कि देश में लाखों हेक्टेयर भूमि में खड़ी फसल बर्बाद हुई है। फसलों की बर्बादी के आकलन के लिए राज्यों ने सर्वे शुरू कर दिया है। राज्यों से नुकसान के प्राथमिक आंकड़े भी आने लगे हैं। जो बारिश के चलते भारी नुकसान की ओर इशारा कर रहे हैं। प्रारंभिक अनुमान के अनुसार राज्यों में सर्वाधिक असर गेहूं, चना, सरसों और आलू की फसल को पहुंचा है। सिर्फ उत्तर भारत की बात की जाए तो यहां बारिश से आलू, सरसों और गेहूं की फसल सर्वाधिक प्रभावित हुई है। 

फसल के साथ-साथ इस सीजन में उगने वाली सब्जियों को भी काफी नुकसान पहुंचा है। असल में जलवायु परिवर्तन और बेमौसम बारिश की मार किसी एक प्रदेश नहीं, बल्कि देश भर में एक साथ पड़ी है। जनवरी से लेकर मार्च तक कई बार देश के अलग-अलग हिस्सों में बेमौसम की बारिश और ओले का यह सिलसिला चल रहा है। फसलों की इस तबाही से किसान कर्ज के दलदल में भी फंसा हुआ है क्योंकि फसल नष्ट होने से उसकी बिक्री नहीं हो पाएगी और वो अपना कर्ज चुकाने में सक्षम भी नहीं होगा। इसी कर्ज के बोझ में दब जाने के बाद किसान आत्महत्या जैसे कदम उठाने पर मजबूर होते हैं। 
दुनियां भर में कोरोना संकट और इस समय देश में लॉक-डाउन होने ने किसानों को जितना चिंतित इस समय किया हुआ है, उतना कभी नहीं हुए। महाराष्ट्र में मराठवाड़ा, खानदेश और विदर्भ में गेहूं, प्याज और आम को नुकसान पहुंचा है। इसके अलावा, गुजरात के सौराष्ट्र और उत्तर गुजरात में कैरी एवं जीरे की अधिकांश फसल खराब हो गई। इसके अलावा, आलू, प्याज, सौंफ, धनिया और इसबगोल की फसल भी बर्बाद हुई।
कोरोना के साथ-साथ इस बिगड़ते और अनियमित मौसम का असर भी अर्थव्यवस्था पर पड़ना तय है, इससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार भी धीमी पड़ेगी। कोरोना के साथ ही मौसम का यह बिगड़ा हुआ मिजाज खाद्यान्न महंगाई को आसमान पर पहुंचा सकता है। 
कुल मिलाकर बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि में देश भर के किसानों को जो भारी नुकसान हुआ है, उसके लिए तत्काल केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर किसानों की मदद करनी चाहिए। स्थानीय स्तर पर उनके लिए कुछ वैकल्पिक प्रबंध किए जाने की जरूरत है। बड़े पैमाने पर हुई फसल बर्बादी पर किसानों को तत्काल समाधान की जरूरत है। किसान इस देश के विकास की सबसे मजबूत और महत्त्वपूर्ण कड़ी है, और अगर किसान कमजोर तथा असहाय होगा तो निश्चित ही इसका सीधा असर देश पर पड़ेगा। इसलिए इस विपदा के समय सरकार के साथ-साथ देश के आम नागरिकों को भी किसानों को यथा संभव मदद देने के लिए आगे आना होगा ।
अनियमित मौसम, लॉक-डाउन और कोरोना संकट की वजह से आगे आने वाले समय में खाद्यान्न संकट होना तय है। साथ ही, खाद्यान्न कीमतों में तेज वृद्धि भी हो सकती है। साथ ही, लॉक-डाउन अगर और आगे बढ़ता है, तो सब्जियों की अनुपलब्धता के साथ-साथ सब्जियों के दामों में भी भारी बढ़ोतरी देखने को मिल सकती है यानी आने वाला वक्त ना सिर्फ  आम आदमी के लिए, बल्कि सरकार के लिए भी चुनौतीपूर्ण साबित होने जा रहा है।

शशांक द्विवेदी


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