कोरोना बनाम रिजर्व बैंक : मांग बनाए रखने की मुहिम

Last Updated 01 Apr 2020 01:10:07 AM IST

रिजर्व बैंक ने 27 मार्च 2020 को मौद्रिक नीति पेश कर दी, रिजर्व बैंक ने इसे तय समय से कुछ दिन पहले ही घोषित कर दिया।


कोरोना बनाम रिजर्व बैंक : मांग बनाए रखने की मुहिम

इससे साफ होता है कि कोरोना वायरस का मुकाबला सिर्फ  केंद्र सरकार ही नहीं कर रही है, रिजर्व बैंक को भी कोरोना वायरस की आर्थिक चुनौतियां का गहरा अंदाज है। तीन हफ्ते के लॉक-डाउन का साफ मतलब है कि तमाम वस्तुओं और सेवाओं की मांग ध्वस्त हो जाएगी तमाम लोग काम धंधों से बाहर हो जाएंगे।

मांग बनी रही रहे, मांग बची रहे, ऐसी उम्मीदें तमाम नीतियों से की जानी  चाहे। ऐसे संकट के समय दो तरह की नीतियों से राहत की उम्मीद रहती है। एक तो राजकोषीय नीतियां, जिनके तहत केंद्र सरकार ने अपना खजाना खोला है और करीब 1.70 लाख करोड़ रु पये के राहत पैकेज की घोषणा 26 मार्च 2020 को की। दूसरी तरह की नीतियों-मौद्रिक नीतियों से यह उम्मीद की जाती है कि उनके चलते बैंकों के पास पर्याप्त धनराशि रहेगी और वह आसान ब्याज दरों पर कर दे सकेंगे।

संकट के वक्त में कर्जदारों को राहत दी जा सके, ऐसे इंतजाम मौद्रिक नीति कर सके, ऐसी उम्मीद की जाती है। रिजर्व बैंक ने अपनी ताजा मौद्रिक नीति में ऐसे कदम उठाए हैं। रिजर्व बैंक ने कैश रिजर्व रेशो यानी नकद आरक्षी अनुपात को घटा दिया है। नकद आरक्षी अनुपात से आशय उस अनुपात से  है, जिस अनुपात में रिजर्व बैंक द्वारा प्रशासित बैंकों को रिजर्व बैंक के पास एक अनुपात में नकदी रखनी पड़ती है। यह अब तक चार प्रतिशत रहा है। 28 मार्च 2020 से शुरू होने वाले पखवाड़े से यह यह चार के बजाय तीन प्रतिशत रहेगा, एक साल की अवधि के लिए। यानी बैंकों के पास ज्यादा रकम होगी, उधार आदि देने के लिए ।

रिजर्व बैंक के आकलन के हिसाब से करीब 1,37,000 करोड़ रु पये बैंकिंग सिस्टम में अतिरिक्त उपलब्ध रहेंगे। इस राशि को बतौर कर्ज दिया जा सकता है। रिजर्व बैंक का आकलन है कि तमाम कदमों के चलते 3.74 लाख करोड़ रु पये की रकम बैंकिंग व्यवस्था में अतिरिक्त  उपलब्ध होगी, जिसे बतौर कर्ज बांटा जा सकता है। जब रकम ज्यादा उपलब्ध होगी तो उसकी लागत भी कम हो होगी यानी ब्याज दर में गिरावट का  रु ख दिखाएंगी। रिजर्व बैंक ने रेपो और रिवर्स रेपो रेट घटाकर यह साफ कर दिया है कि आगामी समय में ब्याज दरों में नरमी देखी जाएगी। रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में दशमलव 75 (.75) प्रतिशत की कटौती का ऐलान किया। नई दर अब 4.4 प्रतिशत हो गई है।

इससे बैंकों के लिए कर्ज सस्ते करने का रास्ता बनता है। बैंकों को अपने दैनिक कामकाज के लिए प्राय: ऐसी बड़ी रकम की जरूरत होती है जो उन्हें छोटी अवधि के लिए चाहिए होती है। इस छोटी अवधि के कर्ज के लिए बैंक रिजर्व बैंक को जो ब्याज दर देते हैं, उसे मोटे तौर पर रेपो रेट कह सकते हैं। इसमें कमी का मतलब है कि कर्ज सस्ती रेट पर मिल रहा है तो उसे आगे भी सस्ती रेट पर जाना चाहिए। रिजर्व बैंक ने रिवर्स रेपो दर में 0.90 प्रतिशत यानी दशमलव 90 प्रतिशत की कमी का भी ऐलान किया है। रिवर्स रेपो दर के हिसाब से बैंकों को रिजर्व बैंक के पास जमा की गई राशि पर ब्याज मिलता है। दोनों दरों में कमी का मतलब है कि अब अर्थव्यवस्था में ब्याज दर कम होनी चाहिए।

कर्ज देने के लिए पर्याप्त रकम उपलब्ध हो, ब्याज दर कम हो, तो फिर बाजार में मांग का सृजन होना चाहिए, ऐसा आम तौर  पर माना जाना जाता है। मांग का मसला बहुत बड़ा मसला है इस समय। रोजगार विहीनता के दौर में व्यक्तियों के पास क्रय क्षमता ही नहीं होगी, तो बाजार में मांग कहां से आएगी। रोजगारविहीनता के दौर में, लॉक-डाउन के दौर में आय में कमी आएगी, तो लोग कर्ज वापसी में भी दिक्कत महसूस करेंगे, इस बात का अंदाज लगाते हुए रिजर्व बैंक ने मार्च, 1 2020 से तीन महीनों के लिए टर्म लोन यानी सावधि कजरे की किश्तों के भुगतान का अधिस्थगन किया गया है।

सरल शब्दों में एक तय अवधि के लिए लिये गए कर्जों की किस्तों का  भुगतान तीन महीनों के लिए स्थगित किया जाता है। कर्ज माफ नहीं किए गए हैं, कजरे का भुगतान स्थगित किया गया है। यह भी एक किस्म की राहत है कि भुगतान अभी नहीं करना है। क्रय शक्ति कमजोर हो ऐसे माहौल में कर्ज भुगतान में कुछ वक्त के लिए राहत भी सकारात्मक ही है। मौद्रिक नीति के साथ दिए गए आकलन में रिजर्व बैंक ने साफ तौर पर चिह्नित किया है कि 2019 के मुकाबले 2020 में सुधार की जो उम्मीद लगाई गई थी, वह अब चकनाचूर हो चुकी है।

रिजर्व बैंक का आकलन है कि विश्व अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से अब मंदी में जा सकते हैं। रिजर्व बैंक को कच्चे तेल-ब्रेंट के भावों में गिरावट से एक उम्मीद की किरण भी दिखती है, ब्रेंट के भाव 18 मार्च 2020 को 25 यूएस डालर प्रति बैरल तक जा चुके हैं। कच्चे तेल के भाव गिरें, तो महंगाई की स्थिति में राहत की उम्मीद की जा सकती है। रिजर्व बैंक के नीतिगत दायित्वों में से एक यह भी है कि महंगाई पर काबू रखा जाए। वह तो कच्चे तेल के भावों में कमी के चलते एक हद तक हो जाएगा। पर कोरोना पर काबू रखना किसी के बस में नहीं है। कोरोना से तबाह धंधे, कारोबार कब तक उबरेंगे किसी को नहीं पता। रिजर्व बैंक के बस में जो है, वह तो रिजर्व बैंक ने कर दिया है। पर सब कुछ रिजर्व बैंक के बस में भी नहीं है। कोरोना वायरस को लेकर दुश्चिंताओं का अंत नहीं है। बहुत संभव है कि सेहत के स्तर पर कोरोना आने वाले एक दो हफ्तों में उतना बड़ा खतरा ना रहे। इसके नये केस सामने आने की रफ्तार में एक कमी हो जाए। पर ठप कारोबार, बंद धंधों को दोबारा राह पर लाना आसान नहीं है।

खास तौर पर यह रेखांकित किया जाना चाहिए कि 2016 से 2020 के बीच भारतीय अर्थव्यवस्था ने तीन ऐसे घटनाक्रमों का सामना किया है, जो  अर्थव्यवस्था के लिहाज से एकदम नई चुनौतियां पेश करते थे। खास तौर पर अर्थव्यवस्था के छोटे उद्योग तो बहुत ही विकट समस्याओं से घिरे रहे। उनके लिए चुनौतियां  ज्यादा गहरी और मारक रहीं। नोटबंदी, जीएसटी व्यवस्था का लागू होना और अब कोरोना वायरस की मार। ये सब असाधारण घटनाक्रम हैं। इनसे पार पाना आसान नहीं है। रिजर्व बैंक ने अपने स्तर  पर मांग को बचाये रखने के लिए अपने स्तर पर व्यवस्थाएं पेश कर दी हैं। अब समय बताएगा कि ये कदम भारतीय अर्थव्यवस्था में तमाम क्षेत्रों के लिए कितने मददगार साबित हो पाएंगे।

आलोक पुराणिक


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