बतंगड़ बेतुक : संविधान रक्षक से जा टकराया झल्लन

Last Updated 23 Feb 2020 12:10:28 AM IST

झल्लन पगला रहा था। जो वह देख-सुन रहा था वह उसे दहला रहा था। इधर हर कोई उसे बरगला रहा था। वह सोच रहा था कि कोई तो उसके पास ऐसा आये जो बिना मुखौटा लगाए अपना असली चेहरा दिखाए, इधर-उधर न घुमाए और बिना लाग-लपेट के सच्ची बात बताए।


बतंगड़ बेतुक : संविधान रक्षक से जा टकराया झल्लन

मुस्लिम महिलाएं खूब मुंह खोल रही थीं, सीएए के विरोध में मुखर होकर बोल रही थीं। बोलों में बार-बार संविधान आ रहा था, बार-बार वे परिकल्पित गरीब आ रहे थे जिन्हें सरकार उजाड़ने वाली थी लेकिन उन्हें निश्चित तौर पर पता नहीं था कि किन्हें उखाड़ने वाली थी। लगता था जैसे सबने एक पाठ पढ़ लिया हो, हर सवाल का एक उत्तर गढ़ लिया हो।
इधर आंदोलन से बार-बार इस्लामियत झांक रही थी मगर धर्मनिरपेक्षता की असफल कोशिश इसे बार-बार ढांक रही थी। एक व्यक्ति खुद को ईसाई बता रहा था और सीएए के विरोध में जोर-शोर से नारे लगा रहा था। सिख नौजवानों का एक समूह लंगर चला रहा था, भूखे आंदोलनकारियों को भोजन खिला रहा था। कुछ गेरूआधारी संतनुमा लोगों का समूह हवन करा रहा था और मोदी के कानून के प्रति गहरा विरोध जता रहा था। इन सबके साथ-साथ कुछ धर्मनिरपेक्षतावादी भी खुली भागीदारी कर रहे थे और संविधान की रक्षा में, धर्मनिरपेक्षता की सुरक्षा में, मोटे-मोटे बयान जारी कर रहे थे। हिंदू-मुसलमान को भाई-भाई बता रहे थे, साथ में सिख-ईसाई को भी ला रहे थे।

झल्लन नहीं जानता था कि धर्मनिरपेक्षता पर इनकी आपस में कितनी सहमति है पर यह अच्छी तरह जानता था कि ये सब किसी न किसी रूप में मोदी विरोधी हैं और मोदी विरोध पर इन सबकी एक मति है। किसी का मोदी से सैद्धांतिक विरोध था, किसी का राजनीतिक विरोध था, किसी का धार्मिक विरोध था तो किसी का विरोध के लिए विरोध था। और ये सब मोदी विरोधी अपने डंडे-झंडे लेकर आंदोलन में आ गये थे पर पता नहीं लग रहा था कि आंदोलन इन पर छा गया है या ये आंदोलन पर छा गये थे। झल्लन के दिमाग में एक अंधड़ चल रहा था जो रह-रहकर उसे जकड़ रहा था। उसे बहुत से मुस्लिम नेताओं के भाषण याद आ रहे थे, बहुत से मौलानाओं की तकरीरें याद आ रही थीं जो इस आंदोलन पर अपना रंग चढ़ा रही थीं और झल्लन की परेशानी बढ़ा रही थीं। किसी ने पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए थे, किसी ने असम को हिंदुस्तान से अलग करने के रास्ते सुझाए थे, कोई अलगाववादी इमाम को सलाम करवा रहा था तो कोई मोदी-शाह की बुनियाद हिलवा रहा था। किसी मौलाना ने कहा कि यह इस्लाम की लड़ाई है। जब तक इस्लाम नहीं जीतेगा तब तक यह लड़ाई जारी रहेगी, सरकार तो क्या सरकार समर्थकों पर भी चढ़ाई भारी रहेगी। झल्लन समझ नहीं पा रहा था कि लड़ाई संविधान के लिए है या इस्लामियत के लिए या इस्लामी विधान के लिए है।
झल्लन एक धर्मनिरपेक्ष किस्म के संविधान रक्षक के पास चला आया, साथ में अपने दो-चार सवाल भी उठा लाया। झल्लन बोला, ‘साथी, आप तो कह रहे हैं कि आप संविधान बचाने के लिए आये हैं, सबको बराबरी का दर्जा देने वाला संविधान खतरे में न पड़ जाये इसलिए आंदोलन पर उतर आये हैं। उधर आंदोलन समर्थक बहुत से मुस्लिम नेता और बहुत से मौलाना सीधे संविधान विरोधी बयान दे रहे हैं। पंद्रह करोड़ के सौ करोड़ पर भारी पड़ने की बात कह रहे हैं, ईट का जवाब पत्थर से दे रहे हैं, क्या ये सब बातें संविधान बचाने के लिए हैं या सैंविधानिक व्यवस्था को मिटाने के लिए हैं?’ संविधान रक्षक ने झल्लन को तीखी नजरों से निहारा फिर उस पर अपना गुस्सा उतारा, बोला, ‘लगता है भाई तू मोदी के खेमे से उठकर आ रहा है तभी इस तरह की फालतू बातें उठा रहा है। हमारे आंदोलन में मौलानाओं और उनकी तकरीरों को क्यों ला रहा है?’ झल्लन ने कहा, ‘भाईजान, मौलाना भी तो आंदोलन का समर्थन कर रहे हैं और वे जो तकरीरें  कर रहे हैं तुम्हारे आंदोलन के लिए ही तो कर रहे हैं।’ संविधान रक्षक जैसे रस्सा तुड़ा गया, झल्लन की बात को हवा में उड़ा गया। बोला, ‘तेरे जैसे लोगों को आंदोलन को बदनाम करने का कोई न कोई बहाना चाहिए और नफरत फैलाने के लिए कोई न कोई निशाना चाहिए। देख, यहां तिरंगा लहरा रहा है, यह संविधान का प्रतीक है जो आंदोलन पर फहरा रहा है; और एक तू है जिसके भीतर सिर्फ शक गहरा रहा है।’ झल्लन बोला, ‘शक और नफरत तो मौलाना लोग पैदा कर रहे हैं और भाईजान, आप हम पर इल्जाम धर रहे हैं। यह तो आप हमारे साथ सरासर नाइंसाफी कर रहे हैं।’ संविधान रक्षक बोला, ‘नफरत तो मोदी-शाह फैला रहे हैं वे ही मौलानाओं को उकसा रहे हैं।’ झल्लन ने कहा, ‘मोदी-शाह नफरत फैला रहे हैं तो आप और ज्यादा नफरत फैलाएंगे और इसी तरह संविधान बचाएंगे? मोदी-शाह तो बहाना है आप साफ-साफ क्यों नहीं कहते कि कहीं और निशाना है।’ संविधान रक्षक तुरंत वार्तालाप से हट लिया और झल्लन को जस का तस छोड़ आगे के लिए कट लिया।

विभांशु दिव्याल


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