सरोकार : पति या पार्टनर ही सबसे बड़े दुश्मन

Last Updated 23 Feb 2020 12:07:57 AM IST

यूके में 2018 में महिला हत्याओं के आधे से अधिक मामलों में मौजूदा या पूर्व पार्टनर शामिल थे।


सरोकार : पति या पार्टनर ही सबसे बड़े दुश्मन

यूके में हर साल फेमिसाइड्स यानी महिलाओं की हत्या पर अध्ययन किया जाता है। 2018 के अध्ययन में बताया गया है कि उस साल 149 औरतों की हत्या हुई। इनमें 61 फीसद की हत्या करने वाला उनका पति या ब्वॉयफ्रेंड था। यों घरेलू हिंसा की शिकार दुनिया भर की औरतें होती हैं। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन, डिपार्टमेंट ऑफ रिप्रोडक्टिव हेल्थ एंड रिसर्च के 2013 के आंकड़े कहते हैं कि दुनिया भर की 35 फीसद महिलाओं को अपने अंतरंग साथी की यौन या शारीरिक हिंसा का शिकार होना पड़ता है। कुछ देशों में तो 70 फीसद महिलाओं को यह यातना झेलनी पड़ती है। ऐसी महिलाओं की गर्भपात कराने या तनाव में जाने की आशंका दो गुनी और एचआईवी-एड्स का शिकार होने की आशंका डेढ़ गुनी ज्यादा होती है।
इस संबंध में संयुक्त राष्ट्र कहता है कि हालांकि मनोवैज्ञानिक हिंसा पर आंकड़े कम ही मिलते हैं, फिर भी अनुमान है कि यूरोपीय संघ के 28 देशों में 43 फीसद महिलाओं को किसी न किसी प्रकार के मनोवैज्ञानिक शोषण का सामना करना पड़ता है। इसके अतिरिक्त विश्व की 70 करोड़ महिलाओं की शादियां 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती हैं। इतनी उम्र में यौन संबंध से इनकार नहीं कर पातीं। नतीजा, कम उम्र में गर्भधारण और यौन संक्रमण होता है। यूएन वीमेन का आंकड़ा यह भी कहता है का विश्व स्तर पर 12 करोड़ लड़कियों को जबरन यौन संबंध के लिए मजबूर किया जाता है। इसका देह और मन पर क्या प्रभाव पड़ता है, इसका अंदाजा लगाने के लिए भी संयुक्त राष्ट्र तथ्य प्रस्तुत करता है। इसी साल जीरो टॉलरेंस फॉर वीमेन जेनिटल म्यूटिलेशन पर संयुक्त राष्ट्र अंतरराष्ट्रीय दिवस पर जारी रिपोर्ट में कहा गया कि विश्व की लगभग 20 करोड़ महिलाओं को यौन हिंसा के कारण अपनी देह खासकर जननांगों के क्षत-विक्षत होने की यंतण्रा झेलनी पड़ती है। बहुत से देशों में पांच साल से छोटी लड़कियां भी इस तकलीफ से गुजरती हैं।  

भारत में महिलाओं की हालत बदतर है। इसके बावजूद कि यहां वह शक्ति के रूप में उपास्य है। स्त्री के हर रूप को आदर से देखा जाता है-चाहे वह मां हो, बहन या बेटी। किंतु अपराध और हिंसा का शिकार भी उन्हें सबसे ज्यादा होना पड़ता है। दिनोंदिन महिलाओं के लिए असुरक्षित होते जा रहे उप्र में अपराध का ग्राफ भी तेजी से बढ़ा है। 2015 में यह आंकड़ा 35,908 था जो 2016 में करीब 11 फीसद से भी अधिक बढ़ा और अपराध की संख्या बढ़कर 49,262 पर पहुंची जबकि 2017 में महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। आंकड़ा 56,000 पर पहुंच गया है। देश में महिलाओं के साथ हिंसा में अकेले यूपी का 15.6 फीसद का योगदान रहा। महाराष्ट्र 8.9 फीसद और मध्य प्रदेश 8.3 फीसद का योगदान है। एमनेस्टी इंटरनेशनल कहता है कि महिलाओं और बच्चियों के खिलाफ की हिंसा मानवाधिकार का सबसे बड़ा उल्लंघन है। दमन की दास्तां किसी एक देश की आपबीती नहीं है। इसका हल क्या है? इंडियन ह्यूमन डवलपमेट सर्वे कहता है कि औरतों को आत्मनिर्भर बनने दीजिए। उनकी संवेदनशीलता कम करने का सबसे अच्छा तरीका है कि वे घर से बाहर निकलें और काम करें। बाहरी दुनिया से संपर्क बढ़ेगा तो खुद को संभालने में सक्षम होंगी। मनोवैज्ञानिक रूप से ताकतवर भी।

माशा


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