मुद्दा : आयुष से सौतेलापन क्यों?

Last Updated 29 Jan 2020 12:55:31 AM IST

दुनिया में भारत ही ऐसा देश है जहां पर चिकित्सा की विविध पद्धतियां विद्यमान हैं, और उनका लगातार विस्तार भी हो रहा है। चिकित्सा की दुनिया में भारतीय ज्ञान परंपरा का लोहा पूरी दुनिया मानती आई है।


मुद्दा : आयुष से सौतेलापन क्यों?

कालांतर में भारत अपनी परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों को भूलकर अंग्रेजी पैथी की ओर अग्रसर हो गया। अंग्रेजी पैथी का इतिहास महज 100-150 सालों का है। अपनी चीजों के प्रति भारतीयों की हीन भावना ने अंग्रेजी पैथी को सर्वेश्रेष्ठ मान लिया और उनने अपने परंपरागत चिकित्सकीय ज्ञान को अवैज्ञानिक कह कर उससे किनारा कर लिया। इसका नुकसान यह हुआ कि अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति का बाजार सुरसा के मुंह की तरह विकराल होता चला गया। भारतीयों को गरीब बनाए रखने का यह प्रमुख कारण बना।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुरूप आज भी हम अपनी स्वास्थ्य सेवा को नहीं ढाल पाए हैं। इसका एक कारण यह भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की परिभाषा में सिर्फ  अंग्रेजी चिकित्सकों एवं सेवाओं को ही शामिल किया जाता है। आयुष के अंतर्गत आने वाले चिकित्सकों व  सेवाओं को नहीं। ऐसे में वैिक स्तर पर हमारे देश की स्थिति बीमारू देश की बनी हुई है। भारत में आयुष मंत्रालय का गठन 9 नवम्बर, 2014 को किया गया। इसके पूर्व भारतीय चिकित्सा एवं होम्योपैथी विभाग (आईएसएमएच) मार्च, 1995 में बनाया गया था और नवम्बर, 2003 में इसका नाम बदलकर आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी विभाग यानी आयुष रखा गया था। देश में आयुष की शिक्षा बढ़ाने की जिम्मेदारी इसी मंत्रालय पर है। आंकड़ों के मुताबिक, देश में आयुव्रेद के 401 आयुर्वेद, सिद्ध के 11 और यूनानी के 53 कॉलेज 59 विश्वविद्यालयों से संबंद्ध हैं। इन कॉलेजों में से 140 आयुर्वेद कॉलेजों, 12 यूनानी कॉलेजों और 3 सिद्ध कॉलेजों में स्नातकोत्तर स्तर तक की शिक्षा प्रदान की जाती है।

होमियोपैथी शिक्षा के गुणवत्ता मानकों में सुधार के उद्देश्य से सरकार ने एक नया कानून होम्योपैथी केंद्रीय परिषद (संसोधन) अधिनियम, 2018 बनाया है, जिसे 13 अगस्त, 2018 को भारत के राजपत्र में 2018 का अधिनियम 23 के रूप में प्रकाशित किया गया है। नये विधायी ढांचे के अंतर्गत 176 कॉलेजों, जिनमें 13 नये होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज शामिल हैं, में बीएचएमएस पाठ्यक्रम आरंभ करने की अनुमति दी गई है। लेकिन एलोपैथी की पढाई करने वालों की संख्या के आगे ये आंकड़े ऊंट के मुंह में जीरा समान दिख रहे हैं। 31 दिसम्बर, 2018 के स्थिति के अनुसार राष्ट्रीय आयुष मिशन (एनएएम) अंतर्गत 27547 आयुष चिकित्सक (सह-स्थापित सुविधाओं के अंतर्गत 11883 आयुष चिकित्सक और आरबीएसके के अंतर्गत 15664 आयुष चिकित्सक) तैनात किए गए हैं। इन आंकड़ों को देखकर आप खुद तय कर सकते हैं कि आयुष चिकित्सकों को लेकर सरकार कितनी उदासीन है। आयुष के इस मद में बजट देने के नाम पर झुनझुना थमाती रही है। 2014 में जब मोदी सरकार का गठन हुआ तब भारतीय चिकित्सा पद्धति के चिकित्सकों में खुशी का माहौल था। उन्हें लगा कि अब भारतीय चिकित्सा पद्धति के दिन लौट आएंगे। लेकिन सही अथरे में देखा जाए तो अभी भी भारतीय चिकित्सा पद्धति को उतना महत्त्व नहीं मिला है, जितना मिलना चाहिए था। एक ओर जहां अंग्रेजी चिकित्सा सेवाओं के नाम पर भारत का वार्षिक बजट 60 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का हो गया है, वहीं भारतीय चिकित्सा पद्धतियों को बढ़ावा देने के नाम पर 2 हजार करोड़ रुपये से भी कम बजट का आवंटन होता आया है। वर्ष 2018-19 मंत्रालय का कुल बजट अनुमान 1626.37 करोड़ रुपये था और संशोधित अनुमान 1692.77 करोड़ रुपये  31 मार्च, 2019 तक कुल खर्च 1606.96 करोड़ रुपये रहा। इस बजट में से 504.43 करोड़ रुपये (31 फीसद) केंद्र प्रायोजित परियोजना राष्ट्रीय आयुष मिशन के लिए था, लेकिन यह भी पूरी तरह खर्च नहीं हो पाया। इस पर 457.26 करोड़ रुपये ही खर्च हुए।
 एक समय था जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे और आज हम अंग्रेजी दवाइयों के गुलाम हैं। अंग्रेजी पैथी भी अंग्रजों की उपनिवेशी संस्कृति का ही एक हिस्सा है। इस बात को हमें समझने की जरूरत है। हमें अपनी चिकित्सा पद्धतियों को प्रमुखता देनी होगी। आयुष के बिना चिकित्सा-सेवा की परिकल्पना भारत के लिहाज से न्यायोचित नहीं की जा सकती। सरकार को आयुष चिकित्सा पद्धतियों को उन्नत करने की दिशा में सबसे पहले ध्यान देना चाहिए।

अशुतोष कुमार सिंह


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